World Digestive Health Day : पाचन सही तो सम्पूर्ण स्वस्थता– हृदय, मस्तिष्क और रोग प्रतिरोधक शक्ति सब स्वस्थ

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विश्व पाचन स्वास्थ्य दिवस

World Digestive Health Day: पाचन सही तो सम्पूर्ण स्वस्थता– हृदय, मस्तिष्क और रोग प्रतिरोधक शक्ति सब स्वस्थ

 डॉ. तेज प्रकाश  व्यास

हर वर्ष 29 मई को ‘विश्व पाचन स्वास्थ्य दिवस’ मनाया जाता है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि शरीर का मूल स्वास्थ्य हमारे पाचन तंत्र पर निर्भर है। एक स्वस्थ पाचन तंत्र न केवल भोजन को ऊर्जा में बदलता है, बल्कि यह हमारे हृदय, मस्तिष्क, प्रतिरक्षा प्रणाली और जीवन की संपूर्ण गुणवत्ता और चिर स्वस्थता को प्रभावित करता है। यदि हम इस आधारभूत तंत्र को समझें और संवारें, तो अनेक जटिल बीमारियों से बच सकते हैं।

आयुर्वेद में स्वस्थता

समदोषः समाग्निश्च समधातुमलक्रियः। प्रसन्नात्मेन्द्रियमनाः स्वस्थ इत्यभिधीयते॥
जिसके दोष-वात, पित्त, कफ, अग्नि (जठराग्नि), रसादि सात धातु, सम अवस्था में तथा स्थिर रहते हैं, मल-मूत्र क्रिया ठीक होती है। शरीर की सब क्रियायें समान तथा उचित हैं, व जिसके मन इन्द्रिय तथा आत्मा प्रसन्न रहें, वह मनुष्य स्वस्थ है।

आधुनिक विज्ञान और प्राचीन भारतीय चिकित्सा – दोनों इस बात पर एकमत हैं कि “पाचन ही स्वास्थ्य का प्रवेशद्वार है”। आयुर्वेद में कहा गया है – “जठराग्नि सर्वरोगाणां मूलं उच्यते” – अर्थात् जठराग्नि यानी पाचन अग्नि ही सभी रोगों की जड़ या मुक्ति का मूल कारण होती है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भी इस विचार को प्रमाणित करता है और कहता है कि “गट (आंत) हमारा दूसरा मस्तिष्क है।” दरअसल, आंतों से तंत्रिकाएं मस्तिष्क से निरंतर संवाद करती हैं। हमारे मूड, सोचने की शक्ति, तनाव स्तर, नींद और स्मृति पर भी गट-माइक्रोबायोम का प्रभाव होता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन और ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज रिपोर्ट 2023 के अनुसार, हर वर्ष विश्वभर में 7 अरब से अधिक लोग किसी न किसी पाचन समस्या से पीड़ित होते हैं। भारत में स्थिति और भी चिंताजनक है। तेज़ी से बदलती जीवनशैली, रात को देर से खाना, फास्ट फूड और प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों का अत्यधिक सेवन, कम नींद और शारीरिक निष्क्रियता – ये सब मिलकर हमारी पाचन शक्ति को कमजोर कर रहे हैं।

पाचन खराब होने से जो प्रमुख रोग जन्म लेते हैं, उनमें गैस, कब्ज, अपच, एसिडिटी, अल्सर, फैटी लिवर, बवासीर, क्रोहन डिजीज, इरिटेबल बाउल सिंड्रोम (IBS), और कोलन कैंसर तक शामिल हैं। इसके अलावा खराब पाचन हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, मानसिक अवसाद, डायबिटीज, थकान और मोटापे का भी बड़ा कारण है।

लेकिन क्या हम इस स्थिति को सुधार नहीं सकते? बिल्कुल कर सकते हैं – और इसका उपाय है: प्राकृतिक पोषण, आंतों के अनुकूल जीवनशैली, और आयुर्वेदिक एवं वैज्ञानिक समझ का संतुलन।

सबसे पहले बात करते हैं – उन खाद्य पदार्थों की जो पाचन को बेहतर बनाते हैं।
मिलेट्स यानी मोटे अनाज जैसे ज्वार, बाजरा, कोदो, रागी आदि फाइबर में अत्यधिक समृद्ध होते हैं। ये आंतों की सफाई करते हैं, लिवर को सक्रिय करते हैं और ब्लड शुगर को भी संतुलित रखते हैं। इसी प्रकार हरे सलाद जैसे खीरा, गाजर, मूली, टमाटर और पत्तेदार सब्ज़ियाँ पाचन एंजाइम्स को सक्रिय कर आंतों को सहजता प्रदान करती हैं।

प्रोबायोटिक आहार जैसे ताज़ा दही, मट्ठा, खमण, इडली, डोसा आदि में जीवित लाभकारी बैक्टीरिया होते हैं जो हमारे गट-माइक्रोबायोम को संतुलित रखते हैं। अंकुरित अनाज जैसे मूंग, मोठ, चना न केवल सुपाच्य होते हैं, बल्कि इनमें जीवंत प्रोटीन और एंजाइम्स भी भरपूर होते हैं। नींबू, सौंठ, जीरा और धनिया का पानी लिवर को डिटॉक्स करता है और पाचन रसों की गुणवत्ता को बेहतर बनाता है।

यदि सुबह खाली पेट त्रिफला चूर्ण या हरड़ का सेवन करें, तो आंतों की सफाई और कब्ज से राहत मिलती है। साथ ही यह पेट की सूजन, गैस और भारीपन को भी कम करता है। वहीं दिनभर भरपूर गुनगुना जल पीने से न केवल शरीर की विषाक्तता घटती है, बल्कि पाचन रसों की प्राकृतिक लय भी बनती है।

अब बात करें जीवनशैली की – तो पाचन शक्ति को बनाए रखने के लिए सबसे ज़रूरी है समय पर भोजन करना। यदि हम हर दिन एक ही समय पर संतुलित भोजन करें, तो शरीर उसे पहचानता है और पाचन रस समय पर निकलते हैं। भोजन से पहले शांत भाव से बैठकर प्रार्थना करना या 2 मिनट आंखें बंद करके गहरी सांस लेना, मन को शांत करता है और पाचन क्रिया अधिक सशक्त होती है।

भोजन को चबा-चबाकर धीरे-धीरे खाना, भोजन के बाद 100 कदम चलना, रात्रि में 10 बजे तक सो जाना, और भोजन के समय मोबाइल से दूरी बनाए रखना – ये सभी छोटी-छोटी आदतें पाचन तंत्र को दीर्घकालीन रूप से मजबूत करती हैं।
हां, प्रतिदिन 45 मिनिट , प्रातः सूर्योदय उपरांत सूर्य की धूप में प्रदूषण रहित मार्ग पर वॉक करना श्रेष्ठ हैं । वरिष्ठों के लिए सुझाव है कि 15 मिनिट वॉक के बाद 5 मिनिट विराम ले लेना चाहिए । कुल वॉक का पूरा लाभ मिलेगा।

पाचन केवल पेट का मामला नहीं है – यह हमारे मस्तिष्क (गट-ब्रेन एक्सिस), हृदय (गट-हृदय एक्सिस) और इम्यून सिस्टम (गट-इम्यून एक्सिस) को गहराई से प्रभावित करता है। खराब पाचन से मस्तिष्क में न्यूरोट्रांसमीटर का असंतुलन होता है, जिससे डिप्रेशन, चिंता, और नींद की कमी होती है। इसी प्रकार जब पाचन बिगड़ता है, तो लिवर में वसा जमने लगती है जो आगे चलकर हृदय रोगों की नींव रखती है। यही नहीं, आंतों में 70% प्रतिरक्षा कोशिकाएं होती हैं, और उनका संतुलन बिगड़ते ही एलर्जी, सूजन और ऑटोइम्यून रोग जन्म लेते हैं।

इसलिए हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम अपने भोजन और जीवनशैली को पाचन के अनुकूल बनाएँगे। इंद्रधनुषी रंगों वाले फल और सब्जियाँ, पारंपरिक देसी भोजन, प्राचीन स्वास्थ्य नियम और नियमित योग-प्राणायाम को अपनाकर हम न केवल पाचन शक्ति को सुदृढ़ कर सकते हैं, बल्कि जीवन की ऊर्जा, दीर्घायु और आनंद को भी पा सकते हैं।

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आदर्श भारतीय शाकाहारी भोजन थाली
(स्वास्थ्य, पोषण और पंचतत्त्व के संतुलन पर आधारित)

परिचय: भोजन नहीं, ब्रह्म है यह थाली

भारतीय संस्कृति में भोजन को केवल पेट भरने का साधन नहीं माना गया, बल्कि “अन्नं ब्रह्म”, अर्थात अन्न को ब्रह्म की उपाधि दी गई। भारतीय शाकाहारी थाली केवल स्वाद या परंपरा का प्रतिबिंब नहीं, बल्कि यह वैज्ञानिक, संतुलित, सात्विक, और पंचतत्त्व आधारित जीवनशैली का प्रतीक है। यह थाली शरीर के पाँच मूलभूत तत्वों – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश – के बीच संतुलन बनाए रखती है, साथ ही ऊर्जा, रोग प्रतिरोधक क्षमता और मानसिक शांति भी प्रदान करती है।

आदर्श थाली का उद्देश्य

इस थाली का उद्देश्य केवल भूख मिटाना नहीं है, बल्कि शरीर को आवश्यक सभी पोषक तत्व संतुलनपूर्वक देना, पाचन को सुधारना, वात-पित्त-कफ का संतुलन बनाए रखना, रोगों से लड़ने की शक्ति देना और भोजन के माध्यम से मानसिक व आत्मिक संतुलन प्राप्त करना है।

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आदर्श भारतीय शाकाहारी थाली में क्या-क्या हो ?

सबसे पहले, थाली में मुख्य अनाज अवश्य होना चाहिए जो शरीर को ऊर्जा प्रदान करते हैं। इसमें गेहूं, ज्वार, बाजरा, रागी जैसे मोटे अनाज शामिल हो सकते हैं। रोटी, फूले हुए फुल्के या बाजरे की भाकरी इस रूप में ली जा सकती है। साथ ही एक कटोरी चावल भी शामिल किया जा सकता है, जिसमें सादा चावल, ब्राउन राइस या मिलेट्स से बनी खिचड़ी जैसे विकल्प उपयोगी हैं। मात्रा संतुलित होनी चाहिए — लगभग दो से तीन रोटियां या एक कटोरी चावल।

इसके बाद थाली में दाल या अंकुरित अनाज आवश्यक होते हैं, जो प्रोटीन का उत्कृष्ट स्रोत हैं। मूंग दाल, मसूर दाल, अरहर की दाल, राजमा, चोले, लोबिया जैसे विकल्पों के साथ सप्ताह में दो बार अंकुरित चना, मूंग और मोठ को भी शामिल किया जा सकता है। दाल हल्के मसालों से युक्त हो और हींग, जीरा, हल्दी, अदरक के साथ पकाई जाए तो वह सुपाच्य और स्वास्थ्यवर्धक बनती है।

थाली में सब्जियाँ – विशेषतः हरी पत्तेदार और मौसमी सब्जियाँ – आवश्यक होती हैं। लौकी, तोरई, पालक, मेथी, सहजन की पत्तियाँ, गाजर, बीटरूट, मूली, परवल आदि मिलाकर दो प्रकार की सब्जियाँ – एक सूखी और एक तर – शामिल करनी चाहिए। ये सब्जियाँ शरीर को आयरन, कैल्शियम, फाइबर, विटामिन्स और जल तत्व प्रदान करती हैं।

दही या मट्ठा इस थाली का एक अनिवार्य हिस्सा है। यह न केवल गट माइक्रोबायोम को संतुलित करता है बल्कि पाचन में भी सहायता करता है। एक कटोरी ताजा, घर पर जमा दही या मट्ठा दिन के भोजन के साथ अत्यंत लाभकारी है। दही खट्टा नहीं होना चाहिए और रात्रि में लेने से बचना चाहिए।

सलाद – जैसे खीरा, गाजर, मूली, टमाटर, चुकंदर, पत्ता गोभी, नींबू और हरा धनिया – भोजन से पहले लेना सबसे अच्छा माना जाता है, क्योंकि ये एंजाइम्स और फाइबर से भरपूर होते हैं। सलाद को सेंधा नमक और नींबू रस के साथ लेना अधिक उपयोगी होता है।

मौसमी फल, जैसे पपीता, अनार, सेब, अमरूद, केला, संतरा, जामुन और आंवला, एंटीऑक्सीडेंट्स और विटामिन्स का खजाना होते हैं। इन्हें भोजन के एक से दो घंटे बाद लेना चाहिए ताकि उनका पाचन भी सही ढंग से हो और वे शरीर को पूर्ण लाभ दे सकें।

थाली में थोड़ी मात्रा में ताजे और आयुर्वेदिक मसाले जैसे हींग, सौंठ, हल्दी, अजवाइन, तुलसी, कड़ी पत्ता, नीम की कोमल पत्तियाँ, पुदीना आदि का उपयोग भी किया जाना चाहिए। ये मसाले न केवल पाचन को सुधारते हैं, बल्कि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाते हैं।

शुद्ध देसी गाय का घी भी इस थाली का एक दिव्य हिस्सा है। रोटी या दाल में एक या दो चम्मच घी डालकर सेवन करना मस्तिष्क, पाचन अग्नि, नेत्र और त्वचा के लिए अत्यंत लाभकारी होता है। घी को ओज, तेज और स्निग्धता का प्रतीक माना गया है।

इसके अतिरिक्त, थोड़ी मात्रा में बादाम, अखरोट, भुना तिल, मूँगफली जैसे मेवे या बीज सप्ताह में तीन से चार बार शामिल करने चाहिए। ये ओमेगा-3 फैटी एसिड, प्रोटीन, मैग्नीशियम और जिंक जैसे खनिजों से भरपूर होते हैं।

भोजन के समय के नियम और विधि

भोजन करते समय मन शांत और सजग होना चाहिए। ध्यान रहे कि भोजन करते समय मोबाइल, टीवी, या बहस न हो। भोजन बाएँ पैर मोड़कर बैठकर करना सबसे उपयुक्त होता है क्योंकि यह पाचन अंगों को विश्राम की स्थिति में लाता है। भोजन से पूर्व हाथ, पैर और मुख धोना आवश्यक है। भोजन की प्रक्रिया में पहले सलाद, फिर रोटी-सब्जी, उसके बाद दाल-चावल और अंत में दही लेना सर्वोत्तम है। हर कौर को लगभग 32 बार चबाने से भोजन अमृत बन जाता है और पाचन तंत्र चमत्कारी रूप से कार्य करता है।

ऋतु के अनुसार आवश्यक परिवर्तन

वर्ष के विभिन्न ऋतुओं के अनुसार थाली में भी थोड़ा परिवर्तन होना चाहिए।
ग्रीष्म ऋतु में मट्ठा, खीरा, तरबूज, सत्तू और नींबू पानी को प्राथमिकता दें।
वर्षा ऋतु में त्रिफला, सौंठ, नीम, उबला हुआ पानी और सुपाच्य खिचड़ी का सेवन करें।
शीत ऋतु में गाजर, शलजम, अदरक-तुलसी काढ़ा, गोंद के लड्डू जैसे ऊष्ण और बलवर्धक पदार्थ शामिल करें।
हेमंत और शिशिर ऋतु में बाजरा, तिल, मूंगफली, मेथी के पराठे और घीयुक्त दलिया विशेष लाभकारी होते हैं।

थाली में छुपा है जीवन का संतुलन

भारतीय शाकाहारी भोजन थाली शरीर के सभी आवश्यक पोषक तत्व — कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फाइबर, वसा, विटामिन्स, मिनरल्स, एंजाइम्स, प्रोबायोटिक्स और एंटीऑक्सीडेंट्स — को एक साथ संतुलित रूप में प्रदान करती है। यह न केवल बीमारियों से बचाती है, बल्कि दीर्घायु, मानसिक स्थिरता, उत्साह और आत्मिक ऊर्जा का भी स्रोत है।

आज, जब दुनिया प्राकृतिक और शुद्ध आहार की ओर लौट रही है, हमें गर्व से पुनः अपनी थाली को अपनाना चाहिए, और कहना चाहिए:
“हमारी थाली ही हमारी औषधि है।”
“Let food be thy medicine, and medicine be thy food.” — हिप्पोक्रेट्स

आज, विश्व पाचन स्वास्थ्य दिवस पर हमें यह समझने की आवश्यकता है कि रोगों की जड़ कहीं बाहर नहीं, बल्कि हमारी थाली और आदतों में छिपी है। आइए, पाचन को केवल शारीरिक प्रक्रिया नहीं बल्कि आध्यात्मिक शुद्धि का माध्यम मानें – और स्वयं को और समाज को रोगमुक्त, सशक्त और ऊर्जा से भरपूर बनाएं।

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