
मेरे मन/मेरी स्मृतियों में मेरे पिता-
पिता को लेकर mediawala.in ने शुरू की हैं शृंखला-मेरे मन/मेरी स्मृतियों में मेरे पिता।इस श्रृंखला की 55 th किस्त में आज हम प्रस्तुत कर रहे है इंदौर की सेवानिवृत प्रोफ़ेसर डॉ. सुनीता फड़नीस को ,उनके पिता श्री जगन्नाथ प्रधान की एक कार एक्सीडेंट में असामयिक मृत्यु हो जाने से माँ और घर की जवाबदारियाँ किशोरावस्था पार कर रही छोटी बेटी पर आगे और जीवन के रास्ते बदल गए ,पढ़िए अपने बाबा को पुकारती उनकी व्यथा –यही कथा उनकी भावांजलि हैं —
60. In Memory of My Father-बाबा की असामयिक मृत्यु से “जे जे स्कूल ऑफ आर्ट्स” से आर्टिस्ट बनने का मेरा सपना टूट गया -डॉ. सुनीता फड़नीस
बाबा आप सुन रहे हैं ना ? मेरे मन की व्यथा —
डॉ. सुनीता फड़नीस
अब आपको मेरी छोटी सी दुनिया से जाकर करीब करीब पैंतालीस- छिंयालिस साल हो गए हैं। मैं बिल्कुल नहीं जानती कि आप कहां और कैसे होंगे? लेकिन मैं आपको बताना चाहती हूं कि आज भी आप मुझे, मुझसे अलग नहीं लगते। इतना लंबा समय बीत चुका लेकिन उठते बैठते आपकी याद आती है।
आप जब हमें छोड़ कर गए, मेरी उम्र महज़ साढ़े सत्रह वर्ष की थी। मैं एक ऐसे मोड़ पर खड़ी थी ,जब मैं ना बच्चा थी और न ही ऐसी युवा, जिसके सिर पर परिवार की सारी जिम्मेदारी डाल दी जाए ,क्योंकि कोई भाई नही था। आपका जाना हम दोनों मतलब माँ और मेरे लिए अचानक एक बड़ा धक्का था। मानो हमें किसी ने ऊंचे पहाड़ से धक्का दे दिया हो। एक कार दुर्घटना ने आपको हमसे छीन लिया । दीदी को मेरे जितना फर्क नहीं पड़ा क्योंकि उनका अपना परिवार था,परिवार की जिम्मेदारियां भी और फिर वह हमेशा ही स्वकेन्द्रित रहीं। तो स्वभावनुसार कुछ दिनों पश्चात अपनी सरकारी नौकरी(वे डॉक्टर बन गईं थीं ) की चिंता करती हुई, अपने बच्चों को लेकर चली गई ।
आपके जाने के साथ, मानों खुशियां हमारे जीवन से रूठ गईं। बाबा आप जानते थे, मैं हमेशा से एक आर्टिस्ट बनना चाहती थी। आपकी असामयिक मृत्यु के कारण माँ की नौकरी भी आवश्यक थी ।
इन सब बातों का नतीजा यह निकला कि मुंबई के प्रतिष्ठित कॉलेज “जे जे स्कूल ऑफ आर्ट्स” जहां मेरा एडमिशन हो चुका था । माँ को अकेला छोड़ मैं कैसे जाती । वह एडमिशन कैंसल हो गया और आर्टिस्ट बनने का मेरा सपना सदा के लिए टूट कर चूर-चूर हो गया। बाबा,आपका स्नेहिल ,सुदृढ़ हाथ यदि मेरे करियर बनाने के समय मेरे सिर पर होता तो शायद जिंदगी का एक खूबसूरत ख़्वाब जो मैंने बचपन से देखा था, पूरा हो जाता। यह मेरा ही दुर्भाग्य था कि बचपन और युवावस्था के बीच का वह रूपहला दौर यूं ही गुज़र गया लेकिन आपकी मौत ने मुझे असमय बड़ा बना दिया। दिलों- दिमाग में हर जगह ज़िम्मेदारी का एहसास भर गया था ।आपके समय का जो निडर ,चंचलऔर खुशनुमा व्यक्तित्व था मेरा , वह कहीं खो गया और मैं अपनी उम्र से दस साल बड़ी हो गई। इधर दीदी ने अपने पांच वर्ष के बेटे को हमारे पास पढ़ाई के लिए दस वर्ष रख दिया।
जिंदगी ने कैसा रुख बदला , यह आपकी मृत्यु से पता चला। हम दोनों माँ बेटी ने यह दुख भरा समय ,एक दूसरे की चिंता, परवाह करके काटा । मुझे आगे की पढ़ाई के लिए एक ऐसा विषय लेना पड़ा ,जो मुझे जरा भी अच्छा नहीं लगता था और साथ ही कठिन भी लगता था। परीक्षा में फ़ेल होने का डर बैठ गया था । मेरी रातों की नींद उड़ गई थी। लेकिन माँ के साथ के कारण मैं मेरिट में आई।
माँ ने मुझे बताया था कि मेरे जन्म की खबर मिलते ही आपके हाथ से चाय से भरे छह कप प्लेट रखा हुआ ट्रे गिर गया था। बेटी वह भी दूसरी! यानी आप बहुत ही दुखी थे। खैर , बाबा जो कुछ हुआ उसे पर आपका कुछ बस नहीं था।
बाबा , आप बहुत ही सुदर्शन व्यक्तित्व के मालिक थे ,और आपकी और माँ की कृपा से हम दोनों बेटियां भी अच्छी खासी
थी । लेकिन आप दीदी को ज्यादा लाड़ करते थे ।उन्हें ही सुंदर मानते थे । जबकि मैं, माँ के आसपास घूमती रहती। उन्होंने मुझे एकआदर्श वाक्य हमेशा बताया – सुंदर वही है जो सुंदर कार्य करता है इस सिद्धांत पर में आज भी चलती हूं।
‘आपकी बेटियां नाम कमाऐं ,खूब पढ़े-लिखें’ ।आपका यह सपना मैंने बड़ी विपरीत परिस्थितियों में पूरा कर दिखाया। पी एच डी करके कॉलेज में प्रोफेसर बनी। लेकिन आपकी मृत्यु ने मुझे संघर्षों के एक ऐसे पथरीले, कांटेदार पथ पर चलने पर मजबूर कर दिया। जहां से मानसिक रूप से निकलने में मुझे बरसों लग गए ।
बाबा आप मेरी जगह बेटा चाहते थे न? तो एक बेटे का कर्तव्य मैंने शादी के बाद भी बखूबी निभाया। माँ को उनके आंखों में तकलीफ़ के कारण नौकरी चलते रहने में भी मैंने पूरी पूरी मदद करी। इसी कारण से मैंने ज़िद पकड़ ली थी कि मैं शादी करूंगी तो इंदौर में ही, क्योंकि मुझे माँ का ख्याल रखना था । बाबा आपकी इस अनचाही बेटी ने अपने क्षेत्र में सर्वोच्च पद पर जाकर बहुत अच्छा नाम कमाया।
आपको पता है बाबा? आज खूब लिखती हूं, खूब पढ़ती हूं जीवन में सफल हूं।
मेरे पास आपकी एक बहुत पुरानी कॉलेज की मैगज़ीन रखी है। जिसमें आपने एक बहुत ही सुंदर कहानी अंग्रेजी में लिखी थी । आप थे भी अंग्रेजी साहित्य के। मुझे ऐसा लगता है कि आप से ही वंशानुक्रम में मैंने लेखन की प्रतिभा पाई है । धीरे धीरे आगे बढ़ रही हूँ। आपके सुंदर ,सलीकेदार अक्षर भी आपके सुदर्शनीय व्यक्तित्व के परिचायक थे।आपके हस्ताक्षर वाली अंग्रेजी के सुप्रसिद्ध कवि Shelley की पुस्तक आज भी कई बार देखती रहती हूं ।
बाबा , कितनी यादें , कितने वाक़ये आपसे जुड़े हैं। एक प्यारा सा वाक़या-उस समय के क्रिकेट के कप्तान सुनील गावस्कर जी (जो आपकी ही कंपनी में थे) आफिस में आमंत्रित थे , मेरी ज़िद के कारण आप मुझे भी ले गए, उन्होंने मुझे गोद मे उठाकर दुलारा भी, और हस्ताक्षर भी दिए । जो काफी समय संभाल कर रखे थे।
बाबा , मुझे आप कितने शौक से गणेश चतुर्थी की झांकियां दिखाने ले जाते थे , कहीं मैं भीड़ भरे रास्तों पर गुम न जाऊं इस भय से मेरी यह अनोखी यात्रा आपके कंधों पर बैठ ही पूर्ण होती थी , बाबा अब आपको बताऊं- मेरे घर के ठीक सामने वाली सड़क से झांकियां गुजरतीं हैं ,आपकी बिटिया और आपके नातियों को सड़क पर भी नहीं जाना पड़ता। आपको आश्चर्य होगा कि मैं जहां रहती हूं , उस बहुमंझिला इमारत का नाम आपका ही नाम है ।जगन्नाथ अपार्टमेंट पढ़ते ही गाहे बगाहे आपका चेहरा आंखों के सामने आ जाता है।
आपकी मेरे लिए चिंता ,दुलार का एक उदाहरण और है ।बचपन ( ४/५वर्ष) की थी मैं , जब मैं और मेरी सहेली गुम गए थे।ढूंढने में आपने ऐड़ी चोटी का जोर लगाकर हमे ढूंढ ही लिया, और सबसे पहले एक चांटा लगाया और फिर गोद मे लेकर खूब लाड़ किया ।
१९७७ के अप्रैल में आपने मां को बताया- उषा , मैंने अपने इस बंगले के पूरा कर्ज़ चुका दिया है , अब मैं चैन से मर सकता हूं । मां ने तुरंत अशुभ न बोलने के लिए उन्हें टोका , लेकिन किसे मालूम था कि ईश्वर ने तथास्तु कह दिया था। आपको एक ज़ोरदार ब्रेन हेमरेज का अटैक आया आपको अस्पताल में भरती किया गया , उस समय मेरी BSc फाइनल की परीक्षाएं चल रहीं थी , और अंतिम पेपर था। आप वेंटीलेटर पर थे। डॉक्टर ने ज़वाब दे दिया था, लेकिन आपने अंतिम सांस तब ही छोड़ी जब मैं पेपर दे कर घर लौट आई। बाबा, पिता का ये कर्तव्य अपने बखूबी निभाया।
कॉलेज में वृक्षारोपण के समय आप जैसा , आपका पसंदीदा पेड़ गुलमोहर लगवाया था।
छोटी मोटी हजारों घटनाएं , यादें मेरे ज़ेहन में घूम रही हैं।
अकेली जब भी होती हूं,
वह खूबसूरत ,सलोना घर याद आता है।
वही खिड़की, वही दरवाज़ा,
वही आंगन याद आता है।
अमरूद,नींबू, पपीते के पेड़ ,
हरा मीठा नीम याद आता है।
भरी भरी पीली बटन शेवंती ,
पीला गुलाब याद आता है ।
छत तक चढ़ी फैली हुई,
लौकी की बेल याद आती है ।
रविवार शाम नमक मिर्ची संग, अमरुद खिलाना याद आता है।
अब बसे हो यादों में ,
और तस्वीर में नज़र आते हो ।
आपकी छोटी
डॉ सुनीता फड़नीस
एम.एससी. पीएच.डी .
अवार्ड—देश की सर्वश्रेष्ठ फ़ेलोशिप CSIR
सेवानिवृत्त प्राध्यापक (रसायन शास्त्र) एवं पर्यावरण चिंतक
प्रकाशित पुस्तकें —
02 (Bsc 1st नर्सिंग)
02 ( Bsc 1st रसायनशास्त्र
साझा संकलन)
शोध पत्र — 30 -32,पीएचडी छात्र — 0 9 छात्रों को पीएच.डी करवाई
प्रकाशन — विभिन्न पत्र पत्रिकाओं – मधुरिमा, अहा! जिंदगी, पत्रिका, प्रकृति दर्शन(पर्यावरण आधारित), साहित्य सांदीपनि , श्री सर्वोत्तम( मराठी) तथा मीडिया वाला साइट पर लेख, कहानी, कविताऐं प्रकाशित
चित्रकला — कई प्रदर्शनियों में भागीदारी।
विभिन्न लोक चित्रकलाऐं जैसे गोंड, मधुबनी, वारली ,ऐपन आदि में सिद्धहस्त ।
क्विलिंग नमक हस्तशिल्प में निपुणता।