दिल्ली विधानसभा चुनाव: गारंटियों पर निर्भर राजनीतिक दल 

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दिल्ली विधानसभा चुनाव: गारंटियों पर निर्भर राजनीतिक दल 

अजय कुमार चतुर्वेदी की विशेष रिपोर्ट

इस बार होने जा रहे दिल्ली विधानसभा चुनाव मे सभी प्रमुख राजनितिक दल केवल गारंटीयो पर ही निर्भर है. दलों मे गारंटीयां देने की होड़ लगी हुई है. एक बात तो समान है कि सभी दलो की मुफ्त गारंटीयो मे महिलाओ को प्राथमिकता दी गई है.  दूसरे नम्बर पर स्वास्थ्य सुविधाएं हैँ. इसमें पांच लाख रूपये से ले कर दस लाख रूपए का आश्वासन दिया गया है. स्वस्थ बीमा की घोषणा मे कांग्रेस ने राजस्थान का फार्मूला अपनाया और इसकी घोषणा भी अशोक गेहलोत से करवाई. यह बात अलग है कि स्वस्थ बीमे की घोषणा के बावजूद राजस्थान मे कांग्रेस को सत्ता गवानी पड़ी थी.बेरोज़गारी भत्ता देकर युवाओं को भी लुभाया गया है. इसमें भी कांग्रेस अपनी पार्टी के शासित राज्यों की योजनाओं का हवाला दे रही है. हालांकि कांग्रेस इस बार आप और उसके मुखिया अरविन्द केजरीवाल के खिलाफ ज्यादा आक्रामक है. पार्टी दिल्ली के शराब घोटाले को उजागर करने का श्रेय भी ले रही है. आप के नेता और केजरीवाल कांग्रेस और  भाजपा दोनों पर ही हमलावर हैँ. वे दिल्ली के विकास मे अवरोध खड़ा करने के दोनों दलों को ज़िम्मेदार ठहरा रहे है लिए कांग्रेस से तो वे इतने नाराज है कि इंडिया ब्लॉक से कांग्रेस को निकलवा देने की धमकी तक दे चुके थे लेकिन इस मुद्दे पर उन्हें सहयोगी दलों का साथ नहीं मिला लेकिन ममता बनर्जी और अखिलेश यादव ने दिल्ली के चुनाव मे आप को समर्थन देने की घोषणा कर दी.केजरीवाल की पार्टी तो पूरी तरह से मुफ्त की रेवड़ियों और गारंटीयो पर  ही  चुनाव मैदान मे उतरी है.  बुधवार को केजरीवाल ने मिडिल क्लास के कल्याण और अगली बार सत्ता मे आने पर युवाओं को भरपूर रोज़गार देने का वायदा किया है.भाजपा ने मुफ्त की रेवड़िया बाटने मे सावधानी बर्ती है. आप पार्टी केजरीवाल और उनकी पार्टी को शराब घोटाले, सी ए जी की रिपोर्ट को सात साल तक विधानसभा पटल पर ना रखने और दर्ज कथित भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया है.इस बार चुनाव मे केजरीवाल के मुख्यमंत्री निवास की मरम्मत पर खर्च  हुवे करोड़ो रुपयों का मुद्दा भी काफ़ी गरम है.दिल्ली के चुनाव मे इस बार बहुजन समाज पार्टी, रिपुब्लिकन पार्टी, ओवैसी की पार्टी ने भी अपने अपने उम्मीदवार उतारे है.राजनितिक गलियारों मे यह भी चर्चा है कि आप को हराने के लिए कई दल साथ है, लेकिन सभी दल के नेताओं ने इसका खंडन किया है.आप की सरकार 2014 से दिल्ली की सत्ता पर काबिज है. शुरू से ही उसका अधिकारों को लेकर केंद्र की भाजपा सरकार से झगड़ा चल रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली को संघ शासित प्रदेश मानते हुवे उप राज्यपाल को प्रशासनिक प्रमुख माना है लेकिन केजरीवाल की मुश्किल ये है कि वे केंद्र सरकार को अपना बॉस नहीं मानते, जो कि सच्चाई है और अपने बॉस को हमेशा बुरा भला कहते रहते है. जानकारों का कहना है कि संघ शासित राज्य मे चुनी हुई पार्टी के मुख्यमंत्री को सिमित अधिकार होते है. यह सच्चाई दिल्ली के सभी पूर्व मुख्यमंत्री जानते थे. उनका कभी भी केंद्र सरकार से अधिकारों को ले कर झगड़ा नहीं हुआ.  बहरहाल अब जनता को सारे झगडे मिटाने के लिए 5 फरवरी को तय करना है कि सत्ता की चाभी किसे सोपी जाय. दिल्ली विधानसभा के रिजल्ट 8 फरवरी को घोषित होंगे.