

मेरे मन/मेरी स्मृतियों में मेरे पिता-
पिता को लेकर mediawala.in में शुरू की हैं शृंखला-मेरे मन/मेरी स्मृतियों में मेरे पिता। इस श्रृंखला की 61st किस्त में आज हम प्रस्तुत कर रहे है छत्तीसगढ़ कोरबा से भारत की 100 वूमन अचीवर साधना शर्मा से ,साधना आदिवासियों के लिए काम करती है और आदिवासी बालिका शिक्षा के लिए कार्यरत है .वे अपने पिता स्व. बालकृष्ण तिवारी जी की अनुशासन प्रियता को याद करते हुए उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित कर रही है –
61.In Memory of My Father: मेरे पिता ने अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना सिखाया
अनुशासन जीवन में चयनात्मक, स्वतंत्र, समयनिष्ठ, केंद्रित, प्रोत्साहित और संगठित रहने के लिए एक अच्छा आधार स्थापित करता है। इसी तरह, एक छात्र के जीवन में अनुशासन बहुत महत्वपूर्ण है। अनुशासन में रहने से समय पर पढ़ाई करने में मदद मिलती है जिससे वे तनाव मुक्त रहते हैं। अनुशासन काम को योजनाबद्ध तरीके से करने में मदद करता है.और संतान के लिए पिता का अनुशासन हमें अच्छे संस्कार वान बना देता है ।पिता घर की शान होते हैं।वो कभी भी अपने बच्चों को किसी भी चीज की कमी होने नहीं देते हैं ।घर परिवार की नींव को मजबूत और रिश्तों को बॉध के रखने में सहयोग करते हैं ।यदि कोई समस्या आ जायें तो समाधान भी पिता ही करते है।पिता के रहने मात्र से घर अनुशासित हो जाता है । वो अपनी हर ख़ुशी के आगे बच्चों की ख़ुशी को हंसते हंसते स्वीकारते हैं, और मेरे पापा बहुत ही अनुशासन प्रिय थे।
तो चलिए आज मिलते हैं मेरे पापा स्व बालकृष्ण तिवारी जी से। हमारे घर में पापा दो भाइयों में छोटे थे। थोड़े ज़िद्दी थोड़े अनुशासित और पढ़ाई के लिए हमेशा प्रोत्साहित करने वाले में से एक मेरे पापा ने हमें पढने के लिए प्रोत्साहित किया। स्पष्टवादी और दिल दिमाग़ और जबान में एक ही प्रतिक्रिया देते थे। जो मेरे जिंस में भी ये गुण आया है। आज के ज़माने में ऐसे लोग सबको पसंद नहीं होते ,और वे लोग मुश्किलों का सामना करते हैं ।
हम लोग तीन भाई बहन हैं , मैं बड़ी फिर मेरा भाई मुझे से दो साल छोटा और मेरी बहन मुझे से दस साल छोटी। पापा पश्चिम बंगाल के कांकिनाडा के पेपर मिल में काम करते थे।बहुत ही साधारण सी नौकरी पर परिवार की ज़िम्मेदारी को उन्होंने बख़ूबी निभाया ।शिक्षा के क्षेत्र में असाधारण थे। मेरे पापा एक अच्छे फुट बॉल प्लेयर भी थे। मेरे दादा जी स्व माधव प्रसाद तिवारी बैरिस्टर थे, और बनारस विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई पूरी किये थे। हम तीनों भाई बहन की परवरिश कम में भी अच्छे से हुई। मेरी मम्मी भी मेरे पापा के कदम से कदम मिला कर रहतीं। इस तरह हमारा परिवार ख़ुशी से अपना जीवन व्यतीत कर रहा था। फिर पापा पश्चिम बंगाल से नौकरी छोड़कर रायपुर में बस गए। आज के पापा जैसे मेरे पापा से बात करना बहुत ही मुश्किल होता था तो हम अपनी बात को मम्मी के माध्यम से पापा तक पहुँचाते थे ।जब आज की पीढ़ी को देखती हूँ तो लगता है ये कैसे संभव है कि अपनी बात पापा से सीधे कह देते हैं, पर चलिए क्या करना इसे ही पीढ़ी के बीच अंतर कहते है।इस तरह मैं तो बाहर रह कर अपने रिश्तेदारों के साथ पढ़ाई की हूँ, पर जब भी छुट्टियों में पापा के पास आती तो कुछ नया सीख कर जाती।
एक बार की बात है हमारे वार्ड के पार्षद को पापा ने अन्याय के ख़िलाफ़त कुछ कह दिया तुरंत दूसरे दिन निगम से हमारे घर कुछ लोग नाप जोख करने आ गये, पर सब कुछ ठीक था कोई भी गलती नहीं निकाल पाये और जैसे आये थे वैसे ही वापस चले गए। पिताजी के पास सब दस्तावेज व्यवस्थित मिले .वे हमेशा अपने उसुलों में रहें कोई चापलूसी नहीं की और ना ही किसी से डरें क्योंकि वे न्यायप्रिय थे। इसलिए ऐसे लोगों को कम लोग पसंद करते थे। पर वे समाज के लिए एक मिसाल थे, कि कोई झूठ फ़रेब करने वाले उनसे बात करने में कतराते थे ।
अपने रायपुर प्रवास के दौरान उनकी एक महाविद्यालय के ज़िम्मेदार कोषाध्यक्ष के पद पर नियुक्ति थी किसी भी बिल को पास करवाने के लिए सही प्रक्रिया से गुजरना पड़ता था, तो कुछ लोगों को गुरेज नहीं होता था, पर जब तक वो इस पद पर थे महाविद्यालय के सभी लोग निश्चिंत थे। ऐसे ही अपने शर्तों पर जीते रहे और वही संस्कार हमें भी दे कर गये। सच सोचती हूँ कि पापा ने हमें क्या दिया , पर हॉ पापा ने हमें संस्कार दिये अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना सिखाया, अनुशासन में रहना सिखाया जो आज हमारे जीवन में बहुत काम आ रहा है।
मैं कभी सोचती हूँ पापा ने हमें भौतिक सुख या विरासत में विलासिता नहीं दिये पर जो दे कर गये वो भौतिक सुखों से कहीं बेहतर है ।आज हमारे पास जो कुछ भी है इन सभी भोग विलासिता से उपर है। हॉ हमारे पास जो हैं उससे हम विलासिता को नहीं ख़रीद सकते है पर अनुशासन व्यवहार आचार विचार को हम अपने देश के अच्छे कार्यों को करने में लगा सकते है। कई बार अपने इस स्वभाव के कारण नुक़सान भी उठाना पड़ा।हम सभी भाई बहन उनका कहना मानते थे।वे जब कभी हमें सुबह फ़ोन करते और पूछते कि क्या कर रही हो तो काम या बच्चों के साथ हूँ ये बोलने पर ख़ुश होते पर अगर गलती से किसी दिन देर से उठतीं तो बोलते थे कि ये उठने का समय हैं। इतना कहना ही हमारे लिये बहुत बड़ी बात होती थीं , मेरे कहने का तात्पर्य ये कि हम बड़े हो कर भी उनसे डरते थे या कहें कि सम्मान करते थे, कि जो उन्हें नहीं पसंद है उसे न करें। और आज तक वो आदत बन गई है कि हम सुबह जल्दी उठ जाते है।
मुझे अच्छे से याद है कि जब मैं छोटी थीं ऐसे ९ वीं कक्षा में रहीं होंगी तब हम पश्चिम बंगाल के २४ परगना के नौइहाटी में रहते थे, वहॉ स्कूल में ही लड़कियों को साड़ी पहन कर स्कूल आना पड़ता था पश्चिम बंगाल में स्कूल में साड़ी यूनिफ़ॉर्म है। मेरे पापा हमेशा कहीं भी जाने पर साड़ी ही पहनने को कहते थे, पर मेरा मन नहीं होता था पर उनकी बातों का सम्मान करने के लिए मैं साड़ी पहनतीं थी पर मेरी बहन कभी साड़ी पहनने के पक्ष में नहीं रहती तब मैं पापा से कहती कि मोना साड़ी नहीं पहन रहीं हैं पर आप उसे नहीं बोलते तब वो कहते कि जो कहना मानता है उसे ही बोलते हैं।मेरी शादी १९८३ में हुई थी तब विदाई के समय मेरे पापा ने मेरे ससुर जी से कहा कि मैं अपनी बेटी आपको दे रहा हूँ कुछ भी गलती करें तो आपको डाँटने का अधिकार देता हूँ।तब मेरे ससुर ने कहा कि कितने सज्जन व्यक्ति है।और क्या चाहिए जीवन में ये छोटी छोटी बातें बड़ी बन जाती हैं और अपनी छाप छोड़ जाती हैं।
सन् 2008 में मेरे भाई के घर विशाखापट्टनम गये वो वहॉ पर नेवी में कप्तान है , और एक दिन समुद्र के किनारे सड़क पर सुबह की सैर कर रहे थे कि पीछे से एक बस ने ठोकर मार दी और वो कॉमा में लगभग 20 दिन रहें फिर परिवार के सदस्यों द्वारा सेवा कर उन्हें स्वस्थ कर लिया गया पर उनके दिमाग़ में ज़ोर पड़ने की वजह याददाश्त कमजोर हो गई । मम्मी दिन रात अपनी सेवा से उन्हें ठीक करने में सक्षम रहीं ।रायपुर में दोनों रहने लगे और मैं बीच बीच में जा कर उनके साथ रहती और पुरानी बातें साझा करतीं।ऐसे बहुत सी बातें हैं जो हमेशा हमें उनकी याद दिलाती है।आज मैं जो भी हूँ उनके आशीर्वाद से हूँ।जब २०१६ में जनवरी में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी जी के हाथों #100 सशक्त महिलाओं में एक मैं भी सम्मानित हुई , इसी कड़ी में स्वाति जी से परिचय हुआ, तब मेरे पापा बहुत खुश हुए थे, और गर्व से बोले कि तुम हमारे ख़ानदान समाज में पहली महिला हो जो हमें राष्ट्रपति भवन तक पहुँचा दिए।वो मेरे आदर्श थे हैं और रहेंगे।स्मृति शेष मेरे पापा !
साधना शर्मा
पीजीडीसीए, एमएससी (आईटी),
एम फिल (सीएस), एमबीए और अभी पीएचडी के लिए नामांकित
भारत की 100वूमन अचीवर्स ,सामाजिक कार्यकर्ता ,शिक्षा के क्षेत्र में सक्रीय .
पता -एम आई जी ८५ ,नेहरू नगर कोरबा छत्तीसगढ़
पिन ४९५६७७ मोबाइल ९८२६५४१२१९
56 . In Memory of My Father-Shri Kalyanmal Chowdhary: मेरे पापा ने मेरे कांधे पर आखरी सांस ली!