Silver Screen :जीवन और करियर दोनों जगह ‘तुला’ जैसा संतुलन बनाए रखा!  

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Silver Screen :जीवन और करियर दोनों जगह ‘तुला’ जैसा संतुलन बनाए रखा!  

    जिनकी राशि ‘तुला’ होती है, वे जीवनभर दो पलड़ों पर सवारी करते हैं और दोनों के बीच सामंजस्य भी बनाकर रखते हैं। राज बब्बर इसके अपवाद नहीं हैं। उन्होंने करियर और जीवन के हर क्षेत्र में दोनों पलड़ों पर अपना आधिपत्य बनाकर रखा! फिल्मों में वे नायक भी बने और खलनायक भी! जीवन में दो शादियां की और सामंजस्य बनाकर रखा। इसके बाद अभिनय के साथ राजनीति में भी उनका बैलेंस बना हुआ है। वे पहले ऐसे अभिनेता हैं, जिन्होंने सिनेमा के साथ राजनीति में भी लम्बी पारी खेली! क्या ये तुला राशि का ही कमाल है! दरअसल, कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो न केवल बनी बनाई धारणा को खंडित करते हैं, बल्कि अपनी नई इबारत गढ़ते हैं। ये ऐसे लोग हैं, जो इस धारणा को भी झूठलाते हैं जिसमें कहा गया है कि नाम में क्या रखा है! जबकि, राज बब्बर ने बता दिया कि जो कुछ है सब नाम में है। ऐसे लोगों में फिल्म और राजनीतिक की दुनिया का भी एक शख्स शुमार होता है, जिसने कुछ मिथक तो तोड़े ही, नए मिथक भी जोड़े हैं। नाम से पता चलता है, यह शख्स ‘राज’ करने के लिए ही पैदा हुआ है और ‘बब्बर’ उसका सरनेम हैं, जो उनकी शख्सियत को दर्शाता है।

 

Silver Screen :जीवन और करियर दोनों जगह 'तुला' जैसा संतुलन बनाए रखा! 

देखा जाए तो कुछ नाम अपने लिए विशेषण साबित होते हैं। ‘राज’ नाम भी ऐसा ही है, जिसने उसे ‘राज’ करने की काबिलियत दी। चाहे वह राज कपूर हो, राजकुमार हो, युवराज हो या फिर अपने राज बब्बर। ज्योतिषीय दृष्टि से भी राज बब्बर का नाम अपनी राशि की सार्थकता को साबित करता है। राज नाम तुला राशि में आता है। संयोग की बात यह भी कि जिस फिल्म से राज बब्बर ने अपने सफल करियर की शुरुआत की, उसका नाम भी ‘इंसाफ का तराजू’ है। इसके निर्माता-निर्देशक बलदेव राज चोपड़ा के नाम के साथ भी ‘बल’ के साथ ‘राज’ जुड़ा है। 1975 में ‘नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा’ से अभिनय के बाद उनका करियर कोई आकार नहीं ले सका। तब भी उनका अभिनय स्टेज और फिल्मों के दो पलड़ों के बीच सामंजस्य बनाता रहा। दोनों ही क्षेत्रों में उन्होंने अपने अभिनय की धाक जमाई। 1977 में ‘किस्सा कुर्सी का’ से अभिनय करियर शुरू करने का मौका मिला। लेकिन, फिल्म कमाल नहीं दिखा सकी। इसके बाद ‘इंसाफ का तराजू’ जब प्रदर्शित हुई, तो पलड़ा राज बब्बर का भारी रहा! देखते ही देखते फिल्मी दुनिया पर उनका राज चलने लगा।

इसके बाद फिर उनका करियर दो पलड़ों के बीच झूलता रहा। ये पलड़े थे नायक और खलनायक की भूमिकाओं वाले! पहली ही फिल्म में बेदर्द खलनायक बनने के बाद उनके पास ऐसी फिल्मों के ऑफर आने लगे। खलनायक से नायक बनने की कल्पना को पहले विनोद खन्ना और शत्रुघ्न सिन्हा साकार कर चुके थे। किंतु, ‘इंसाफ का तराजू’ में जिस तरह का किरदार राज बब्बर ने निभाया, वे महिला दर्शकों की नजरों से उतर चुके थे। उसे देखते हुए उनका नायक बनना संभव नहीं था। लेकिन, बलराज चोपड़ा ने इस असंभव को ‘निकाह’ में संभव कर दिखाया और राज बब्बर खलनायक के पलड़े से उतरकर नायक के पलड़े पर चढ़ गए।

Silver Screen :जीवन और करियर दोनों जगह 'तुला' जैसा संतुलन बनाए रखा! 

राज ने फिल्मों में निगेटिव और पॉजिटिव दोनों तरह के किरदार निभाए। जिद्दी, दलाल, दाग: द फायर जैसी फिल्मों में उन्होंने विलेन का रोल बखूबी से निभाया। उन्होंने लगभग 200 फिल्मों में अभिनय किया। ‘इंसाफ का तराजू’ में राज बब्बर अभिनय इतना जीवंत था कि फिल्म की स्क्रीनिंग के समय शामिल उनकी मां घबरा सी गई थी। जब वे फ‍िल्‍म देखकर लौट रहे थे, तो उनकी मां कार में रोने लगी और बोली ‘बेटा हम कम खा लेंगे, पर तू ऐसा काम मत कर।’ कहा जाता है कि इस किरदार के लिए कोई अभिनेता तैयार नहीं था, तब बीआर चोपड़ा ने उन्हें यह रोल ऑफर किया। राज बब्बर के लिए तो यह रोल जैकपॉट जैसा साबित हुआ।

Silver Screen :जीवन और करियर दोनों जगह 'तुला' जैसा संतुलन बनाए रखा! 

राज बब्बर फिल्मों आने से पहले ही शादीशुदा थे। उन्होंने थिएटर की जानी-मानी अभिनेत्री और निर्देशक नादिरा बब्बर को जीवन साथी बनाया। लेकिन, यहां भी तुला राशि के दो पलड़ों ने उनके जीवन में हस्तक्षेप कर उनके वैवाहिक जीवन के दो पलड़ों में दो नारियों को बैठा दिया। इसमें एक पलड़े पर नादिरा बब्बर पहले से थी, दूसरे पलड़े पर उस दौर की सबसे समर्थ और सशक्त अभिनेत्री स्मिता पाटिल ने अपनी जगह बनाकर तुला राशि के इस शख्स की राशि के लिए नई इबारत रच दी। दूसरी शादी के बाद भी राज बब्बर ने दोनों पत्नियों के बीच सामंजस्य बनाए रखा, वरना पहली पत्नी से तलाक लिए बिना दूसरा विवाह संभव नहीं था।

राज बब्बर की जिंदगी में आने से पहले स्मिता ने काफी फिल्मों में काम कर लिया था। 1982 में आई फिल्म ‘भीगी रातें’ की सेट पर राज बब्बर की पहली बार स्मिता पाटिल से मुलाकात हुई। इस मुलाकात के बारे में राज बब्बर ने एक साक्षात्कार में बताया था कि ओडिशा के राउरकेला में फिल्म की शूटिंग के दौरान स्मिता से वे मिले थे। पहली मुलाकात के वक्त ही दोनों के बीच मजाक-मजाक में थोड़ी तकरार भी हुई थी! राज बब्बर ने कहा था कि उस वक्त स्मिता पाटिल की जुबान से निकले शब्द ‘जाओ’ से मैं काफी प्रभावित हुआ। राज बब्बर इस अभिनेत्री को दिल दे बैठे और फिर दोनों ने शादी करने का फैसला लिया। जबकि, नादिरा बब्बर की रंगमंच की दुनिया में अपनी अलग ही पहचान थी।

बॉलीवुड में ‘लिव-इन रिलेशनशिप’ का जो माहौल है, उसके प्रणेता राज बब्बर ही हैं। यह बात अलग है कि उनके जमाने में इस तरह के रिलेशनशिप में रहना किसी बड़ी घटना से कम नहीं था। राज बब्बर उन शख्सियतों में हैं, जिन्होंने अपनी युवावस्था में समाज के बंधनों को दरकिनार कर स्मिता पाटिल के साथ लिव-इन में रहने का साहस दिखाया। तब इस बात के लिए राज की दबी जुबान में आलोचना भी हुई, लेकिन उन्होंने कभी इसकी परवाह नहीं की। इसकी परिणति विवाह में हुई, पर यह साथ ज्यादा दिन कायम नहीं रह पाया। यह स्मिता और नादिरा के साथ राज बब्बर का सामंजस्य ही था, कि स्मिता की मौत के बाद नादिरा ने न केवल राज बब्बर को फिर अपने जीवन में जगह दी, बल्कि स्मिता के बेटे प्रतीक बब्बर को भी बेटे के समान स्नेह दिया।

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राज बब्बर की राशि की तुला ने उनके लिए अभिनय के अलावा एक नए पलड़े का इंतजाम कर दिया! वे अभिनय के साथ राजनीति के पलड़े पर भी सवार हो गए। यहां भी उन्होंने एक तरह से अपने नाम को सार्थक करते हुए मतदाताओं के दिलों पर राज किया। राजनीति में राज बब्बर की सफलता का सबसे बड़ा कारण यह भी है, कि नायक के पलड़े से उतरने के बाद जब उन्होंने चरित्र अभिनेता के पलड़े को थामा। उन्हें अधिकांश भूमिकाएं भी राजनेता और सरकारी अधिकारियों की ही मिली। दर्शक परदे पर उन्हें एक राजनेता के रूप में  स्वीकार कर चुके थे। जब उन्होंने यही रूप राजनीति में अपनाया तो यहाँ भी जनता ने उन्हें हाथों हाथ लिया।

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देखा जाए तो आज राज बब्बर आज राजनीति और फिल्म दोनों में सक्रिय हैं। राजनीति में आने के बाद उन्होंने कॉरपोरेट, बॉडीगार्ड, कर्ज, फैशन, साहब बीवी और गैंगस्टर-2, बुलेट राजा और ‘तेवर’ जैसी फिल्मों में शिद्दत से अभिनय किया। अभी उनका अभिनय और राजनीति का सफर जारी है। परदे पर चरित्र अभिनेता के रूप में उनका कोई सानी नहीं! उधर, राजनीति में भी वे उत्तर प्रदेश में अपना जलवा दिखा ही रहे हैं। उनसे पहले भी कई अभिनेता राजनीति के मैदान में उतरे, पर सिवाय सुनील दत्त के कोई लम्बी पारी नहीं खेला। राज बब्बर ने अभी न तो फिल्मों से नाता तोड़ा है और न राजनीति से, अपनी पकड़ भी ढीली नहीं की। दोनों ही क्षेत्रों में उनका अश्वमेध तेजी से कुंचाले भर रहा है। अभिनय में तो उन्होंने अपने आपको चरित्र भूमिकाओं तक सीमित कर लिया, पर राजनीति में अभी उन्हें अपनी काबिलियत के अनुरूप ऊंचाई नहीं मिली। इसलिए कहा जा सकता है कि अभी राजनीति में राज के दिन आना बाकी है।