क्या प्रवचनकार ‘हिन्दू राष्ट्र’ के संविधान पर भी कुछ बोलेंगे?
देश में विशेषकर मध्यप्रदेश में प्रवचनकारों की बाढ़ आई हुई है जिनके पास सारे समस्याओं का हल है। उनमें से कुछ भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना चाहते हैं और अपने मंचों से इसके बारे में बड़ी-बड़ी घोषणाएं भी कर रहे हैं। प्रवचनकारों ने, ऐसा लगता है, हिंदू राष्ट्र बनाने की एक मुहिम छेड़ रखी है और वे भारत को एक हिंदू राष्ट्र घोषित करवा के ही रहेंगे।
इन लोगों को देखने और सुनने भारी संख्या में लोग उपस्थित होते हैं जिनमें हमारे कर्णधार राजनेता भी होते हैं। जब इस तरह की घोषणाएं होती हैं तो उनका तालियों से स्वागत भी होता है। एक प्रवचनकार तो कहते हैं कि दिल्ली अब दूर नहीं है और हिन्दू राष्ट्र की घोषणा होकर रहेगी।
पर इसके पीछे उनकी मंशा क्या है ? क्या भारत के संविधान में उनकी आस्था नहीं है जो वे हिन्दू राष्ट्र बनाने की बात कर रहे हैं और इस बात पर जनता को उद्द्वेलित कर रहे हैं ? और क्या इस तरह कि घोषणा करना भारत के संविधान का अनादर और अवमानना नहीं है ?
भारत का संविधान एक दिन में नहीं बना। इस संविधान के गठन में देश के उन महान विभूतियों का योगदान है जिन्होंने देश को आजादी दिलाने में अपना अप्रतिम योगदान दिया और उन्होंने एक ऐसे संविधान की परिकल्पना की जो कि धर्म , जाति, सम्प्रदाय के नाम पर देश के नागरिकों के बीच भेदभाव नहीं करता है और जिसके आधार पर एक पंथनिरपेक्ष गणराज्य की स्थापना की गयी जिसमें हम रहते हैं।
भारत की शीर्ष अदालत ने अपने कई महत्वपूर्ण फैसलों में जिसमे केशवानंद भारती केस का बार बार उल्लेख आता है , ये स्पष्ट किया है कि संविधान में परिवर्तन तभी मान्य होगा अगर वह संविधान के आधारभूत संरचना को प्रभावित नहीं करता है।
इसलिए इन प्रवचनकारों को ये सोचना भी नहीं चाहिए कि संविधान में परिवर्तन करके भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित किया जा सकता है।
अतः अगर हिन्दू राष्ट्र बनाने की मुहिम सिर्फ भीड़ जुटाने या उनसे तालियां बजवाने के लिए नहीं है तो प्रवचनकारों को ये स्पष्ट करना चाहिए कि वे हिन्दू राष्ट्र कैसे बनाएंगे या बनवाएंगे और इसका संविधान क्या होगा ?
क्या उस संविधान में वर्तमान शासन और प्रशासन की ही पद्धति होगी या कोई और व्यवस्था होगी? क्या वर्तमान न्याय व्यवस्था ही रहेगी या मनुस्मृति आधारित न्याय व्यवस्था होगी। उल्लेखनीय है कि कुछ इस्लामिक राष्ट्रों में शरिया आधारित न्याय व्यवस्था है।
और अगर शासन प्रशासन और न्याय व्यवस्था में किसी परिवर्तन की परिकल्पना नहीं है और सभी नागरिकों को समान अधिकार ही रहना है तो वर्तमान व्यवस्था से क्या तकलीफ है जो हिन्दू राष्ट्र की घोषणा की बात की जा रही है।
क्या वे प्रवचनकार जो हिन्दू राष्ट्र बनाने की बात कर रहे हैं इस बात को भी स्पष्ट करेंगे कि उनका ‘हिंदू राष्ट्र’ (अगर उनका सपना साकार होता है तो ) वर्तमान राष्ट्र से किन मायनों में भिन्न रहेगा? हिंदू राष्ट्र बनने से भारत के समक्ष जो आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक और राजनैतिक चुनौतियाँ हैं उनका समाधान कैसे होगा ? देश में गरीबी कैसे कम होगी ? अमीर और गरीब के बीच खाई कैसे दूर होगी। अपराध विशेषकर ऐसे अपराध जो महिलाओं और बच्चों के खिलाफ हो रहे हैं वे कैसे कम होंगे ? भ्रष्टाचार कैसे ख़त्म होगा? राजनीति का अपराधीकरण कैसे रुकेगा ? धर्म और धार्मिक गुरुओं का शासन और प्रशासन में कोई स्थान होगा या उससे दूर रहेंगे ?
क्या ये सच नहीं है कि जो देश तरक्की कर रहे हैं और आज आर्थिक, शैक्षणिक तथा सामाजिक रूप से हमसे कहीं आगे हैं वे किसी धर्म आधारित राज्य की परिकल्पना में कोई भी विश्वास नहीं करते?
हिन्दू राष्ट्र बनाने की उद्घोषणा कर रहे अगर ये प्रवचनकार भारत के वर्तमान संविधान , उसमें उनका विश्वास और अपने संविधान के ऊपर भी कोई व्याख्या आने वालों प्रवचनों में करें तो लोगों की जानकारी ही बढ़ेगी।