हंगामा क्यों है बरपा… एनकाउंटर जो हुआ है…

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हंगामा क्यों है बरपा… एनकाउंटर जो हुआ है…

देश के अलग-अलग राज्यों में अब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मांग बढ़ रही है। एनकाउंटर की सूची में असद और गुलाम का नाम शामिल होते ही योगी का ग्राफ एकदम हाई हो गया। अब लोगों को लगने लगा है कि योगी को क्यों न कुछ समय के लिए छत्तीसगढ़ का प्रभार दे दिया जाए। हो सकता है नक्सली छत्तीसगढ़ के जंगल छोड़कर शहरों में शांति से जीवन बिताने की भीख मांगने लगें। जिस अतीक अहमद के नाम से कभी अच्छे अच्छे तुर्रम खां की रूह कांप जाती होगी, अब उस अतीक को सपने में भी योगी की परछाई नजर आ रही होगी। अब तो अतीक को खुद ही अपने आप पर गुस्सा आ रहा होगा कि किस घड़ी में उसने अपराध की दुनिया में पहला कदम रखने की भूल की थी। और किस घड़ी में अपने बच्चों के हाथों में पिस्टल थमाने का गुनाह किया था। आखिर असद के एनकाउंटर की खबर सुनकर उसका कलेजा फटा होगा और उसे अहसास हुआ होगा कि उसने जिन निर्दोषों को मौत के घाट उतारा होगा, उनके परिजनों का क्या हाल होता होगा। ऐसे में भी एनकाउंटर को फेक कहकर राजनेता आखिर क्या साबित करना चाहते हैं, यह सोचने वाली बात है। गुनाहगार गवाहों को दिनदहाड़े निर्ममता से मौत के घाट उतारकर अदालतों को निरीह बनाने का घिनौना खेल खेलते रहें, तब यही नेता कानून-व्यवस्था को आइना दिखाते हुए इन गुनहगारों को ही परोक्ष समर्थन देने से बाज नहीं आते। तो एनकाउंटर का यह योगी फार्मूला ही बेहतर है और हिट भी है। आखिर यह धरा इन बेखौफ और ढीट अपराधियों का बोझ कब तक ढोएगी। चाहे असद हो या विकास दुबे हो, निर्दोषों को मौत के घाट उतारकर शेखी बघारने वाले ऐसे मुखौटों को एनकाउंटर की मार का तौहफा मिलना जरूरी है। अच्छा ही है कि शूटर गुलाम के परिजनों के हवाले से यह बात सामने आई कि एनकाउंटर में मारे जाने पर उसके शव को लेने वह नहीं जाएंगे।

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जो एनकाउंटर पर सवालिया निशान लगा रहे हैं, उन्हें देवी अहिल्या के न्याय का वह वाकया समझ लेना चाहिए कि जब एक बछड़े को अपने रथ से कुचलते हुए चले गए अपने पुत्र मालोजीराव को ही उन्होंने मृत्युदंड की सजा सुनाई थी। और उसी तरह रथ‌ से कुचलकर मौत देने का फरमान सुनाया था जैसे उस बछड़े को कुचला गया था। जब वह न्यायप्रिय मां शासक के रूप में ऐसा कठोरतम फैसला ले सकती थी, तब फिर योगी आदित्यनाथ के सूबे में अपराधियों के एनकाउंटर पर विपक्ष को कोहराम मचाने की जरूरत ही क्या है। कहा तो यह जा सकता है कि सूबे के मुखिया आदित्यनाथ का न्याय योग भी देवी अहिल्या की न्यायप्रियता से कमतर नहीं माना जा सकता। इसमें हंगामा बरपाने की आखिर जरूरत ही क्या है? आखिर निर्दोषों और पुलिसकर्मियों का रक्त बहाकर जान लीलने वालों की क्या आरती उतारी जाए कि उनके जैसा शूरवीर दुनिया में कोई दूसरा नहीं है।

बात एनकाउंटर की हो रही है तो मन में एक ख्याल आया कि दुनिया से विदा होने वाले सभी लोग आखिरकार एनकाउंटर का शिकार ही तो होते हैं। बहाना चाहे बीमारी का हो या फिर जर्जर होती काया का, आखिरकार कोई भी मरने को तैयार होता है क्या? फिर भी विदाई लेनी पड़ती है इस दुनिया से। कई एनकाउंटर अस्पतालों में हो जाते हैं, पर कोई उंगली नहीं उठा पाता। कई एनकाउंटर सड़कों पर एक्सीडेंट्स के चलते हो जाते हैं, इसमें किसी को दोषी नहीं ठहराया जाता। कुछ लोग बहुत कम उम्र में दुनिया से विदाई लेने को मजबूर हो जाते हैं। तो कुछ उम्रदराज होकर दुनिया से विदाई लेते हैं। यह सब अपनी अपनी तरह के एनकाउंटर ही तो हैं। आखिर कौन सहज भाव में दुनिया छोड़ने को तैयार होता है। फिर भी सबको एक न एक दिन दुनिया छोड़कर जाना ही पड़ता है। ‌‌यह सब भी तो एनकाउंटर की तरह ही हैं। भगवान के खाते में ही जाते हैं ऐसे एनकाउंटर और फिर मन को शांत करने के लिए बहानों की तकिया परिजनों के सिरहाने रख दी जाती है। कहते हैं कि ईश्वर जो करते हैं वह अच्छा ही होता है। रही बात असद- विकास जैसे धरती पर होने वाले एनकाउंटर्स की, तो यह भी तो अपराध करने वाले मानसिक रोगी हैं। इनका खुले मैदान में एनकाउंटर होने पर आखिर इतना हंगामा बरपाने की बात क्या है?

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में छह साल पहले जेल से भागे सिमी के 8 आतंकियों को एक पहाड़ पर घेर कर पुलिस ने उनका एनकाउंटर कर दिया था। ये आतंकी भोपाल सेंट्रल जेल से रविवार तड़के 2-3 बजे एक हेड कांस्टेबल का गला रेतकर भागे थे। मध्य प्रदेश पुलिस ने भोपाल से 10 किमी दूर खेजड़ी गांव में आतंकियों का एनकाउंटर किया था। इनमें तीन आतंकी ऐसे थे जो तीन साल पहले खंडवा जेल से भागे थे।तब तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान ने एनकाउंटर में मदद करने वाले स्थानीय लोगों और पुलिस फोर्स की तारीफ की थी। और पूरे देश में शिवराज की तारीफ हुई थी। तब भी हंगामा कम नहीं बरपा था। पर एनकाउंटर तो एनकाउंटर ही हैं। बशर्ते निर्दोषों को एनकाउंटर की बलि न चढ़ाया जाए और निर्दोषों की जान लेकर तुर्रम खां बनने वालों के एनकाउंटर से परहेज न किया जाए…।