कहानी {परामनोविज्ञान की कथा}
अनसुलझे सवाल
स्वाति तिवारी
यह कोई काल्पनिक हवाई कथा नहीं है, ना ही सांगोपांग कथा या कहानी है, ना ही यह कोई समाज शास्त्रीय अध्ययन है? तो फिर क्या है यह किस्सा? क्यूँ यह कुछ अजीब सी घटना है? मैंने जिज्ञासा ओर कौतूहल के भय मिश्रित भाव से गुरुजी से पूछा था “बताइये ना गुरुदेव, मैं अचानक गिरी कैसे? मेरे ऊपर चढ़ती कार एन मेरे सिर के पास आकर रुक कैसे गई? जानते हैं आप? ऐसा लगा था जैसे किसी ने मुझे कार से उतरकर पीछे से जाते वक्त जमीन पर आराम से लेटा दिया क्योंकि गिरते हुए मुझे कोई अहसास ही नहीं हुआ?”
गुरुजी हंसने लगे- “होता है कभी कभी।”
“पर कार के पहीये बिलकुल इस तरह रुके जैसे किसी ने रोक दिए हों?” क्या आपको अजीब नहीं लगता गुरुदेव?
वे कहीं दूर आसमान मेँ कुछ देख रहे थे फिर बोले- “चमत्कारों का तात्विक विश्लेषण करने पर जो निष्कर्ष सामने आता है वह यह है कि बुद्धि की पकड़ की सीमा में जो घटनाएं नहीं आतीं वे चमत्कार मालूम पड़ती हैं। शायद यह संवेदी बोध का मामला है।”
नहीं गुरुजी, यह संवेदी बोध नहीं हो सकता? जरूर कोई शक्ति मेरे पीछे थी बल्कि दो तरह की शक्ति थी वहाँ उस शहर मेँ जो मेरे चारों तरफ हर वक्त मेरे आसपास रही।
गुरुजी ने ध्यान से निकल कर मेरी तरफ देखा। फिर पूछने लगे- “यह तुम्हें चमत्कार नहीं लगता?”
वही तो यह घटना भी अजीब है ओर बच जाना भी चमत्कार जैसा है। ओर वो लिफ्ट का रुक जाना? बंद लिफ्ट का बिजली ना आने पर भी खुल जाना सब चमत्कार ही है? या तो अजीबोगरीब घटनाएँ? ये बताते हुए एक बार फिर मेरे रोंगटे खड़े होने लगे थे। शरीर मेँ एक हलका सा कंपन भी हुआ था। गला फिर सूखने लगा था बिलकुल उस दिन की तरह जैसे बस दो बूंद पानी के अभाव मेँ जीभ तालु से चिपक गई थी। आज कई दिनोंबाद यह घटना फिर से मुझे याद आई ओर अचानक दिमाग की बत्ती जली, तो क्या गुरुजी ?तो क्या वो अदृश्य शक्ति—कोईब्रह्मांड में व्याप्त असामान्य शक्तियों से थी ?
मैं एक विज्ञान की छात्रा रही हूँ| जादू-टोने, भूत-प्रेत नहीं मानती थी, लेकिन अब इस बात से इंकार नहीं कर सकती कि परिचित ज्ञान, विचार संक्रमण, दूरानुभूति, पूर्वाभास, अतींद्रिय ज्ञान, मनोजनित गति या साइकोकाइनेसिस आदि कुछ ऐसी प्रक्रियाएं हैं, जो एक भिन्न कोटि की मानवीय शक्ति तथा अनुभूति की ओर संकेत करती हैं। यह बात सौ फीसदी सत्य है। इन घटनाओं की वैज्ञानिक स्तर पर घोर उपेक्षा क्यों की गई है और इन्हें बहुधा जादू-टोने से जोड़कर, गुह्यविद्या का नाम देकर विज्ञान से अलग क्यों समझा गया है?
उस शहर से लौटने के बाद मैं अप्रत्याशित घटनाओं ओर चमत्कारों के प्रति कुछ ज्यादा ही संवेदी होने लगी हूँ। मैं अब दावे के साथ कहती हूँ, हाँ, मैंने अनुभव किया है कि ये विलक्षण प्रतीत होने वाली घटनाएं घटित होती हैं। वैज्ञानिक उनकी उपेक्षा कर सकते हैं, पर घटनाओं को घटित होने से नहीं रोक सकते। मैं सतत इस विषय पर कुछ अध्ययन कर निष्कर्ष देना चाहती हूँ। हो सकता है मेरे रुझान को इस तरफ टर्न करने मेँ भी कोई शक्ति काम कर रही हो? वरना मैं भौतिक विज्ञान की प्राध्यापक होकर इन पर कभी भरोसा नहीं करती थी।
गुरुजी जो मेरे आध्यात्मिक गुरु हैं वे मुझे समझाने की कोशिश करते रहे हैं कि हमारी दृष्टि हमारी आंखों से प्रत्यक्ष नहीं है कि हम क्या देख रहे हैं, इसके बारे में हमारी जागरूकता ही हमारी दृष्टि है। मनोविज्ञान में उभरती हुई समझ यह प्रतीत होती है कि हमारी पाँच भौतिक इंद्रियों की जानकारी सबसे पहले हमारे अचेतन मन में जाती है। जो कहीं जमा होती है ओर किसी गहन अचेतन अवस्था मेँ मानस पटल पर कोई अनुभूति दे जाती है बस और कुछ नहीं।
मैं गुरुजी को प्रणाम कर घर लौट रही हूँ, बीच रास्ते अचानक कार बंद हो गई? भय की एक लहर पूरे वजूद पर फ़ैल गई। दर असल हुआ यह था कि गुरुजी का आश्रम शहर से किले तक जाने वाली सड़क पर कोई दस किलोमीटर दूर एक पुरानी सी हवेली मेँ बना था, यहाँ पहुँचने के लिए पहले बाजार, फिर नाहर चौक से होते हुए पुरानी इमारतों के खंडहर से होकर माई के चबूतरे को पार कर फिर पुरानी घुडसाल के आगे घंटाघर के सूनेपन से साक्षात्कार कराते हुए चिड़ी खो बागान तक जाकर फिर दो घुमावदार रास्तों से होकर पुलिया से आगे लाल नहर से सीधे सघन वृक्षों से आच्छादित सड़क पर चलते हुए बायीं तरफ है। थोड़ा आगे दाईं तरफ पुराना कब्रिस्तान है। पर आश्रम उसके पहले ही आ जाता है तो जब आप आश्रम से वापस लौट रहे होंगे, तब भी ये सब वीराने, उजाड़, भय के नाले पार करके ही शहर से सटे बाजार ओर घर के पहले वाले चोगान तक पहुँचेंगे।
जब मैं आश्रम से बाहर निकली तो अंधेरा बस उतरने की तैयारी मेँ था। शाम का यह गोधूली धुंधलका आश्रम के दूर तक फैले पुरानी इमारतों के अवशेषों पर एक सिंदूरी आभा बिखेर कर अब समेट रहा था| सुंदर और लुभावना सा वातावरण, लोभान और अगरबत्ती की सुगंध से मन को प्रफुल्लित कर रहा था, लेकिन चिड़ी खो तक जब गाड़ी पहुँची तो शाम काली चादर मे लिपट कर रात बन गई थी। यह कालापन कुछ ज्यादा ही काला लगा, गाड़ी का अपने आप रुक जाना दिलो दिमाग को कंपकंपा गया. मैंने बार बार चाबी घुमाई कि नीचे ना उतरना पड़े. पर गाड़ी घरघरा कर फिर बंद हो गई. अब क्या करूँ? पैर एक्स्लेटर पर थर थर कांप रहे थे. लाईट जलाई पर सब कुछ जैसे बंद, फोन की लाईट में गुरूजी को फोन लगाया पर घंटी जाती रही. अचानक अगले प्रयास में गाड़ी आसानी से स्टार्ट हो गई. स्पीड पकड़ मैंने मन ही मन गुरूजी को धन्यवाद दिया. उनके स्मरण मात्र से गाड़ी स्टार्ट हो गई थी, लेकिन मैं बस चिड़ी खो से आगे बढ़ी और एक टॉर्च लिया साया गाड़ी के सामने से सड़क क्रॉस कर रहा था. मैंने पूरी ताकत से ब्रेक लगाया, गाड़ी चरमराती हुई झटके के साथ रुक गई. मैंने डर के मारे आँखे बंद कर ली. मेरी धड़कन बुरी तरह से मुझे सुनाई देने लगी, सारा शरीर पसीने से भीग गया. मुझे लगा कोई व्यक्ति गाड़ी के नीचे आ गया है. मैं भयभीत कांप रही थी. बाहर निकल कर देखने की हिम्मत नहीं थी अब? हे भगवान! क्या करूँ? हनुमान चालीसा का पाठ बुदबुदाने लगी.कुछ देर में ही पीछे से मुझे कोई लाईट दिखी, कोई गाड़ी थी शायद, हिम्मत आने लगी, कोई सहायता मिल सकती है, हॉर्न भी बजाया मैंने.पर गाडी मेरी गाडी को देखे बिना ही जैसे निकल गयी ,क्या गाड़ीवान को एक बार भी सुनसान सडक पर बंद गाड़ी के बारे में विचार नहीं आया होगा ?हो सकता है बहुत जल्दी में हो वह क्योंकि गाड़ी बहुत स्पीड में थी, बिना रुके चली गई. तो क्या मेरी गाड़ी से वह घायल सडक पर पड़ा व्यक्ति भी नहीं देखा होगा उसने ? तभी मुझे सड़क के दूसरे किनारे अँधेरे में जाती वही टॉर्च की रोशनी दिखी. दूर निकल चुकी थी वह ,तो वह जो भी था सड़क क्रॉस कर चूका था. लेकिन मन अब भी भय से भरा था कोई इतने पास से गुजरा था एक पल में कैसे सडक के उस किनारे ?जो भी हो ,राहत की सांस ले मैंने गाड़ी स्टार्ट की और गाड़ी में हनुमान चालीसा का पाठ लगा दिया. जब मैं घंटा घर से आगे वाली पुलिया तक पहुँची तो भीड़ लगी थी. रुक कर पता किया, क्या हुआ है? तो पता चला जो गाड़ी मेरे सामने से निकली थी वो पुलिया से नीचे पलट गई थी और वाहन चालक की मृत्यु हो चुकी थी .सब कुछ रहस्यमय क्यों लग रहा हैं , मैं बिना रुके घर पहुँची, भय मेरे वजूद पर व्याप्त था. आजी और बाबा मुझे देख समझ गए कुछ हुआ है. आजी चाय लेकर आई और मेरे तपते सर पर हाथ रखा, क्या हुआ श्रुति?”
मैंने उनका हाथ कस कर पकड़ लिया “बाबा मैंने जो कुछ देखा वह विश्वास नहीं हो रहा. फिर वह एक्सीडेंट? अगर मेरी गाड़ी रुकती नहीं तो?”
बाबा ने पास बैठ कर हाथ थामा, आजी ने नजर उतारी. चाय पी लो पहले. फिर बात करते हैं. आजी ने कहा- कपड़े बदल लो धुले साफ कपड़े पहनो. यह सब करने में थोड़ा रिलेक्स होने लगी थी. बाबा ने कहा- “वो कोई शक्ति थी, जो तुम्हें रोक रही थी. दुर्घटना को होना था, निश्चित समय पर काल वहां व्याप्त था पर तुम बीस मिनट लेट पहुँची तब तक वह गाड़ी पहुँच गई, सोचो, इसका क्या अर्थ हुआ? उस अदृश्य शक्ति ने तुम्हें रोक लिया था, जब अन्य कार निकल गई तो रोशनी ने कहा- जाओ.” तो क्या गुरूजी वहां —? एक पल को यह बात मन में आई भी और प्रश्न चिन्ह सी अटक गयीअनसुलझी पहेली की तरह .
बाबा जब मैं दिल्ली गई थी तब मासी के घर बाहर टैक्सी से उतर कर जैसे ही मैं कार के पीछे से निकलने लगी, मैंने खुद को जमींन पर पड़े हुए पाया. पलक झपकते यह कैसे हुआ? मुझे नहीं पता लेकिन कार रिवर्स में आ रही थी. मेरी आवाज नहीं निकल रही थी, गला जैसे चिपक गया था| एक पल में मैंने मौत को आते देखा, पहिया मेरे सर से गुजरने वाला ही था कि गाड़ी रुक गई. मासी बालकनी से यह देख दौड़ी और नीचे आई तब तक मैं उठ कर खड़ी हो गई थी. मासी ने कहा- “इस टैक्सी को जाने दो. तुम ऊपर चलो. ” मैंने कहा भी कि “मासी मुझे वापस जाना है, रोक लेते हैं.” मासी ने मना किया, इसमें नहीं.
जब हम ऊपर आए तो कुछ देर बाद मासी ने कहा “वो टैक्सी ड्राइवर कुछ अजीब था. मेरे सिक्सेंस ने कहा इसे जाने देना चाहिए.”
उस रात मैं मासी के घर ही रुकी. अगले दिन मासी ने कहा- “तुम फोन कर दो, आज नहीं जाओगी. मैं रुक गई वहीं मासी के घर. फिर अगले दो दिन अवकाश के थे. तो मैं चार दिन मासी के घर पर ही रही. फिर अपने नए ऑफिस में ज्वाइन कर गेस्ट हाउस चली गई थी. एक हफ्ते में ही मुझे पोस्टिंग मिल गई और मैं अपने शहर में ही आ गयी थी. लेकिन एक दिन गेस्ट हाउस में भी अचानक लिफ्ट बंद हो गई. मैं अकेली थी लिफ्ट में. फिर जाने कैसे लिफ्ट खुल गई, मैं भागी सीढ़ियों से, वार्डन के कमरे में घुस गई, उन्हें बताया. वहीं बैठी रही लाइट आने तक, और उस रात जैसे मैंने मौत को साक्षात देखा था. बोलते बोलते मैं चुप हो गई थी. बाबा कहीं परेशान ना हो जाएँ यह सोच कर.
बाबा ने मेरे पास आकर सर पर हाथ रखा “क्या कोई भयावह सपना था वह?”
आजी चाय का प्याला लिए खड़ी थी. बाबा ने कप मुझे पकड़ाते हुए एक कप खुद लिया. आजी भी वहीं बैठ गई. तभी मेरे फोन की घंटी जैसे बजी और बंद हो गई. गुरूजी का नंबर फ़्लैश होने लगा. लेकिन इनकमिंग कॉल रिकॉर्ड में उनका नंबर दिखाई नहीं दिया? भय ने फिर रोंगटे खड़े कर दिए. बाबा ने मेरे माथे पर पसीना देखा तो पूछा- “क्या हुआ?”
“बाबा, आपने अभी फोन की घंटी सुनी ना?”
“नहीं तो?”
बाबा का उत्तर सुनते ही मैं काँपने लगी. “तो गुरूजी का नंबर फ़्लैश कैसे हुआ?”
बाबा ने पहली बार गुरूजी के लिए पूछा- “ये गुरूजी कौन हैं? तुम इन्हें कैसे जानती हो? कैसे, क्या दीक्षा ली है?”
“नहीं दीक्षा नहीं ली, पर वे समस्याओं के समाधान बताते हैं तो जानने लगी हूँ.”
बाबा ने चाय का कप रखते हुए पूछ लिया- “हाँ! तुम कोई सपना बता रही थी.”
“जी, बाबा उस रात बहुत देर बाद मुझे नींद लगी. थोड़ी देर बाद मुझे लगा कोई मेरे आसपास है, मुझे रस्सी से लपेट रहा है. भय और अन्धकार से मेरी घिग्गी बंध गई, आँख खुल गई पर बंधे होने का अहसास बना रहा, फिर हिम्मत करके मैंने चादर से पैर बाहर निकाले. लाईट का स्विच टटोला और खट करके लाईट जला दी. लेकिन डर गया नहीं. लगा, वो जो भी है, आसपास है, देख रहा है मुझे. मैंने आई फोन में फेसबुक खोल लिया. कुछ लोग आधी रात तक ऑन लाईन दिखे. मैंने हेलो हाय लिखना शुरू किया. कुछ देर चैट करती रही, फिर थकान लगी तो फोन बंद कर आँखें बंद की लेकिन फिर वही सब हुआ, कोई बाँध रहा था मुझे अर्थी की तरह. मैं फिर लैपटॉप खोल कर हनुमान चालीसा का वीडियो देखती रही, सुबह सुबह जाने कब नींद लग गई. मैंने वह जगह भी छोड़ दी. मासी के ही घर रही एक हफ्ते.
कोई ख़ास बात नहीं है बेटा, डरना नहीं आज हम सब इसी कमरे में सोते हैं, ठीक है?
मैं आजी के पास सो गई, नन्ही बच्ची सी, नींद आ गई. आजी मेरी धार्मिक प्रवृत्तियों वाली हैं. पढ़ी लिखी कहने लगी “डरना नहीं चाहिए, यही एक समाधान है वरना ये शक्तियां कमजोर को निशाना बनाती हैं.”
“क्या सच में अदृश्य शक्तियां होती हैं आजी?”
आजी कहने लगी- “भूत प्रेत और परामनोविज्ञान की अवधारणा उतनी ही पुरानी है, जितना मनुष्य जीवन। नया नहीं है? हमारे बचपन में भी खूब किस्से होते थे. इमली के पेड़ और नींबू के नीचे से निकलने के. वैश्विक स्तर पर देखें तो लोक कथाएँ, प्राचीन साहित्य, दर्शन और धर्म ग्रंथ अदृश्य जगत और अलौकिक शक्तियों के आभास की पुष्टि करते हैं.
बाबा हमारी बात सुन रहे थे बोले- “शरीर और मन दोनों कहीं ना कहीं आकाश, वायु, जल को माध्यम बनाते हैं अपनी गतिविधियों के लिए, तो मनुष्य शरीर पाँच तत्वों यानी धरती, आकाश, वायु, अग्नि, जल का समुच्य है। इनमें आकाश तत्व सूक्ष्म आत्मा के साथ जुड़ा है। मृत्युपरांत आत्म तत्व को छोड़ सभी नष्ट हो जाते हैं। माना गया है कि नई देह प्रवेश तक यह आत्म तत्व वायु मण्डल में तैरता रहता है. तभी तो हम मरणोपरांत मुक्ति मार्ग अपनाते हुए निर्धारित विधान करते हैं. आत्मा मुक्त हो जाए और भटके नहीं. चलो, अभी सब सो जाओ. कल इनका समाधान करवाते हैं. तुम शनि का छल्ला ऊँगली में डालो, उन्होंने एक लोहे की रिंग दी. आजी ने सरसों के दाने तकिये के नीचे रख दिए. कहा भय नहीं लगेगा.
अगले दिन बाबा ने भैरव नाथ मंदिर के नाथबाबा को बुलाया.
सब किस्सा बताया तब नाथ बाबा ने कहा- “दो शक्तियां हैं आसपास एक कोई रक्षक सकारात्मक शक्ति है, जो बचा लेती है, जिसने पहिया रोक दिया, जिसने टॉर्च की रोशनी दिखाकर रोक दिया वरना एक्सीडेंट हुआ ही, क्या पता उसमें बिटिया आ सकती थी? एक ने लिफ्ट बंद की पर दूसरे ने खोल दी. ”
“हाँ, ये तो सच है. आजी बोली- नकारात्मक शक्ति जान गई थी कि इसके साथ कोई पवित्र आत्मा रक्षक है. कोई दैवीय शक्ति है, जो उसके प्रयासों को विफल कर रही है. जो घेर रही है वह अज्ञात है.”
नाथ बाबा ने पूछा- “क्या कोई नया व्यक्ति इन दिनों में मिला था?” तब बातचीत में गुरूजी का जिक्र आया.
“एक दिन बस में पास की सीट पर बैठे थे, बातचीत में प्रभावित किया,मुझे आध्यात्म और धर्म के लिए जैसे कोई मार्गदर्शक मिल गया ,मैं उनसे इतनी प्रभावित थी कि अपनी पढाई नौकरी सबकी बातें बताने लगी थी ,कहाँ जा रही हूँ क्यों जा रही हूँ सब ,फिर मैं उनके आश्रम भी जाने लगी.जाने कैसे इतनी दूर चली जाती थी, मंत्रो के अर्थ जानने .”
नाथ बाबा मुझे ध्यान से देख रहे थे ,मुझे थोड़ा अटपटा लगा मैंने झट से कहा “शायद मैं उनसे बहुत प्रभावित हूँ ?”
नाथ बाबा ने धीरे से कहा “प्रभावित नहीं ,आप उनसे सम्मोहित हुई ,वे आपको hypnotized कर रहे थे .यह खतरनाक हो सकता था.’
“कहाँ रहते हैं वे,कहाँ है आश्रम ? इस प्रश्न के उत्तर ने चौंका दिया उन्हें ! जो जगह मैंने बताई थी, नाथ ने कहा- “मैं देख रहा हूँ जगह. उस पुरानी हवेली में कोई नहीं रहता, जंग लगे ताले लगे हैं.वह वीरान है .सालो साल से .वहां कुछ नहीं है . भरोसा ना हो तो चलिए, चल कर देख लेते हैं.
बाबा नाथ और हम वहां पहुँचे वो एक उजड़ी वीरान इमारत थी. जिसके बाहर कचरे, पत्ते और मरे हुए चमगादड़ पड़े हुए थे.मैं अचम्भीत भय से कांपती हुई ,ये कैसे हो सकता है ? वैसा कुछ नहीं था जैसे मैं देखती रही थी.जैसा मैंने देखा था .
स्वाति तिवारी