BJP: पुराने नेताओं की नाराजी कहीं भारी न पड़ जाए!

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Pachmarhi
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BJP: पुराने नेताओं की नाराजी कहीं भारी न पड़ जाए!

हेमंत पाल की राजनीतिक टिप्पणी

विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में जमीनी स्तर पर असंतोष उभरता दिखाई दे रहा है। यह भाजपा जैसी अनुशासित पार्टी के लिए अच्छा संकेत नहीं है। विधानसभा चुनाव के 6 महीने पहले पार्टी खेमों में बंटने लगी है। पार्टी के पुराने नेताओं ने अपनी उपेक्षा नाराज होकर एक तरह से मोर्चा खोल दिया। इंदौर से लगाकर देवास, सागर और कटनी तक में असंतोष का धुआं दिखाई दिया। जहां ये दबा हुआ है, वहां भी जल्द दिखाई दे सकता है। देवास में पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के तीन बार के विधायक बेटे दीपक जोशी ने तो पार्टी छोड़ ही दी। इंदौर के भंवरसिंह शेखावत ने भी अपने इरादे जाहिर कर दिए।

BJP: पुराने नेताओं की नाराजी कहीं भारी न पड़ जाए!

सागर में मंत्री भूपेंद्र सिंह के खिलाफ स्थानीय विधायकों ने मोर्चा खोल दिया। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक मंत्री सरकार पर सीधा हमला कर चुके हैं। जबकि, कटनी में भी पूर्व विधायक ध्रुव प्रताप सिंह ने संगठन पर आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ने का एलान कर दिया। इससे पहले जबलपुर के पूर्व विधायक हरेंद्रजीत सिंह बब्बू और इंदौर के सत्यनारायण सत्तन ने भी बगावती तेवर दिखाए थे। इससे स्पष्ट होता है कि भाजपा में नाराज नेताओं की संख्या बढ़ रही है।

चुनाव की नजदीकी के साथ भाजपा में बढ़ती खींचतान के ये किस्से नए हैं। पार्टी के पुराने नेताओं की अवहेलना, अनदेखी और उन्हें हाशिए पर रख देने से बनी स्थिति ने मामला पैचीदा कर दिया। भाजपा के पुराने और अनुभवी नेताओं का कहना है कि उन्हें पार्टी संगठन ने दरकिनार कर दिया। न तो उनसे कोई बात की जाती है, न कभी उन्हें किसी मीटिंग में बुलाया जाता है। यह सब पिछले दो ढाई साल से होने लगा। अब पार्टी का कोई ऐसा प्लेटफार्म नहीं बचा, जहां नए और पुराने नेताओं एक जगह इकट्ठा हों।

इसके पहले के पार्टी अध्यक्षों ने भी नए पुराने नेताओं को एक जाजम पर बैठाकर इसे जारी रखा था। लेकिन, संगठन के नए ढांचे ने पुराने अनुभवी नेताओं को किनारे कर दिया। पिछले दो महीने से भाजपा में जो अंतर्कलह बढ़ी, उसका सबसे बड़ा कारण पार्टी के अनुभवी और नए चेहरों के बीच बढ़ी दूरी। इस वजह से करीब दर्जन भर नेताओं ने इस मुद्दे पर अपनी जुबान खोली, जो अभी तक घुटन में थे। हाल ही में कटनी के एक पूर्व विधायक भी पार्टी संगठन के खिलाफ बोले पार्टी छोड़ने की घोषणा कर दी। इसके बाद कटनी के ही कुछ और पूर्व विधायकों ने पार्टी संगठन पर अपनी उपेक्षा और हाशिए पर रखने का आरोप लगाया।

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पिछले दिनों राज्यसभा के पूर्व सांसद और भाजपा के वरिष्ठ नेता रघुनंदन शर्मा ने भी इसी मुद्दे पर अपना रोष व्यक्त किया था। उन्होंने तो उन पांच संगठन मंत्रियों पर भी उंगली उठाई, जिनकी छत्रछाया में पार्टी का संगठन चल रहा है। उन्होंने कहा था कि ये द्रोपदी के चीरहरण जैसी स्थिति है, जो संगठन मंत्री कर रहे हैं। जबकि भारतीय जनता पार्टी की सबसे बड़ी ताकत उसकी संगठनात्मक क्षमता और अनुशासन रहा है। लेकिन, पिछले दो महीने में सारी असलियत सामने आ गई। जो सतह पर दिखाई दे रहा है, वो सिर्फ दिखावा है। जबकि, अंदर ही अंदर पार्टी का अनुशासन दरक रहा है।

भाजपा नेता और पूर्व विधायक भंवर सिंह शेखावत

इंदौर के पुराने भाजपा नेता और पूर्व विधायक भंवर सिंह शेखावत ने भी इसी मुद्दे पर अपना रोष व्यक्त किया। उनका कहना भी यही था कि हमें कभी किसी मीटिंग में नहीं बुलाया जाता और न कभी बात की जाती है। पार्टी के एक और पुराने और अनुभवी नेता का कहना है कि भाजपा विधान के अनुसार जब भी कार्यकारिणी गठित होती है, तो सिर्फ 20% लोगों को ही बदला जाता है। 80% पुराने लोग उसमें बने रहते हैं। लेकिन, अब तो 100% लोगों को बदला जाने लगा। इसका सीधा सा मतलब है कि अब अनुभवी पुराने नेताओं के लिए पार्टी में कोई जगह नहीं बची। अब कोई ऐसा प्लेटफार्म भी मौजूद नहीं है, जहां पुराने नेता अपने अनुभव बता सकें और परिस्थिति के अनुसार सही सलाह दे सकें। क्योंकि, पिछले दो-ढाई साल में पार्टी में जो बदलाव आए हैं उससे पार्टी की वो पहचान खत्म होने लगी, जिसके लिए पार्टी को जाना जाता था।

पार्टी के पुराने नेताओं की नाराजी का सबसे बड़ा कारण है संवादहीनता! पार्टी में जब कोई किसी से बात नहीं करेगा, तो एक स्थिति में घुटन बढ़ेगी और नेता अपनी बात बोलेगा। उसे मंच नहीं मिलेगा तो वो सड़क पर खड़े होकर बोलेगा! वो ये चाहेगा कि उसकी बात पार्टी तक पहुंचे और आज वही सब हो रहा है। संगठन में बात नहीं सुनी जा रही, तो उसे मीडिया कान में फूंका जा रहा है। जो बातें बंद कमरों में चंद लोगों के सामने होना चाहिए वो मीडिया के सामने हो रही है और उससे असंतोष पनप रहा है।

govind singh rajput  sindhiya

सिंधिया के साथ आए गोविंदसिंह राजपूत जब कांग्रेस में थे, तब उनके खिलाफ सुरखी क्षेत्र से भाजपा से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे राजकुमार सिंह धनौरा ने अब मोर्चा खोला। उनके प्रतिद्वंदी गोविंद सिंह राजपूत अब भाजपा में शामिल आ गए, जिससे राजकुमार को बड़ा राजनीतिक नुकसान हुआ। ऐसे में गोविंद सिंह को चुनाव में खतरा समझ आ रहा है। जबकि, कटनी के पूर्व विधायक और पूर्व जिला अध्यक्ष ध्रुव प्रताप सिंह ने तो बगावत ही कर दी। उन्होंने अपने तेवर दिखाते हुए अपने बयान का एक वीडियो भी शेयर किया। इसमें उन्होंने पार्टी संगठन के कामकाज के तरीके पर ही सवाल उठाए। उनके निशाने पर भी पार्टी अध्यक्ष ही थे। उन्होंने यह भी तंज किया कि अध्यक्ष वीडी शर्मा कहीं मिल जाएं, तो वे शायद हमें पहचान भी नहीं सकेंगे। ध्रुव प्रताप सिंह ने तो यह भी कहा कि अभी हम आउट डेटेट नहीं हुए। जिस पार्टी में हैं, वहां कोई पूछ नहीं रहा, तो स्वाभाविक रूप से हमें जाना पड़ेगा। अभी हमारी राजनीति खत्म नहीं हुई है, न इतनी उम्र हो गई कि कोई हमें घर में बैठा दे।

अब तो यह कहा जाने लगा कि भाजपा अब  नहीं रही, इसके तीन हिस्से हो गए। एक हिस्सा भाजपा है, दूसरा महाराज और तीसरा नाराज! पार्टी में वे नेता विद्रोह पर उतर आए जिन्हें सत्ता और संगठन दोनों जगह सम्मान नहीं मिल रहा। इनमें ज्यादातर वे नेता हैं, जिन्होंने पार्टी को खड़ा किया और आपातकाल में जेल गए। अभी के ज्यादातर नेताओं में इक्का-दुक्का को छोड़कर कोई इतना सीनियर और अनुभवी नहीं है! पार्टी मानना है कि अंतर्कलह बढ़ने की वजह बड़े नेताओं के बयान हैं। पुराने नेता खुलकर पार्टी और संगठन की आलोचना करने लगे। लेकिन, इसका दोष उन नेताओं पर नहीं लगाया जा सकता। पार्टी के पास बड़ा संगठनात्मक ढांचा है। प्रदेश के पार्टी अध्यक्ष के अलावा अलग-अलग पदनाम वाले संघ से आए पांच बड़े नेता हैं, पर कोई भी पुराने नेताओं को साधने की कोशिश नहीं कर कर रहे। अकेले मुख्यमंत्री ही इस दिशा में समय-समय पर प्रयास करते रहे हैं लेकिन संगठन स्तर पर ऐसा कोई ठोस प्रयास दिखाई नहीं दे रहा कि अंतर्कलह की आंच को ठंडा किया जा सके। यदि जल्द ही हालात को संभाला नहीं गया, तो फिर नई मुश्किलें खड़ी हो सकती है।