मोदी की अमेरिका यात्रा – एक विश्लेषण

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मोदी की अमेरिका यात्रा – एक विश्लेषण

मोदी की अमेरिका यात्रा फ़ोटो सेशन के अतिरिक्त भी भारत के लिए सफल रही है। भारत जो कुछ भी इच्छा कर सकता था वह उसे प्राप्त हुआ है। अमेरिका को भारत से कोई विशेष प्रेम नहीं है, परंतु अमेरिका चीन से अपनी प्रतिद्वंद्विता के लिए भारत को आगे करना चाहता है। लद्दाख के गलवान में जिस तरह भारत ने दृढ़ता के साथ चीन का सामना किया उससे अमेरिका आश्वस्त हुआ है कि भारत चीन का अवरोध बन सकता है। गलवान युद्ध के बाद अमेरिका ने तत्काल भारत को अत्यधिक सामरिक महत्व के अपाचे और चिनूक हेलीकॉप्टर दिए थे तथा लगातार महत्वपूर्ण इंटेलिजेंस प्रदान की। अब अमेरिका की ये आवश्यकता है कि वह भारत को आगामी वर्षों में सुदृढ़ करने के सभी संभव उपाय करें जिससे भारत और शक्तिशाली होकर एशिया में चीन के प्रभाव को रोक सकें। यह ध्यान रखने योग्य तथ्य है कि अमेरिका ने जो भी हमें अभी सौगातें दी है वे तात्कालिक न होकर अगले कुछ वर्षों में या दशकों में फलीभूत हो सकेंगी। सैनिक शक्ति बढ़ाने के लिए जेट फाइटर के शक्तिशाली GE414 इंजन का भारत में निर्माण तीन वर्ष बाद ही हो सकेगा। अद्भुत क्षमता वाले 31 MQ-9B ड्रोन भी छह सात साल में ही पूरे आ सकेंगे। भारत अमेरिका की नौसेना तथा वायु सेना को भारत में अनेक सुविधाएँ देगा।

सैन्य उपकरण के अतिरिक्त अमेरिका ने बहुत से महत्वपूर्ण क्षेत्रों में क्रिटिकल और इमर्जिंग टेक्नोलॉजी के भारत में विकास के लिए सहयोग करने का निर्णय लिया है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण सेमीकंडक्टर चिप का भारत में निर्माण है। माइक्रोन कंपनी ने भारत में इसका कारख़ाना लगाने की घोषणा की है। नए युग की बैटरी के निर्माण के लिए लीथियम मिनरल के खनन और एक्सट्रैक्शन के लिए तकनीक देना स्वीकार किया है।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, 6G, क्वांटम में सहयोग, फ़ाइबर लाइन, दवा निर्माताओं के लिए चीन पर निर्भरता समाप्त करने के लिए एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रेडियंट जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अमेरिका भारत की सहायता करेगा। अब यह भारत की औद्योगिक और राजनैतिक सूझ-बूझ पर निर्भर करेगा कि इस टेक्नोलॉजी के सहयोग वह कितना लाभ उठाता है। यदि कुछ दशकों तक इस टेक्नोलॉजी का पूरा दोहन किया जाएगा तो भारत एक विश्व शक्ति के रूप में उभर सकता है।

अमेरिका भारत में दो काउंसलेट और भारत अमेरिका में एक नया काउंसलेट खोलेगा। इससे दोनों देशों के लोगों का आवागमन और सुविधाजनक हो सकेगा। H1B वीज़ा के तीन साल बाद नवीनीकरण के लिए किसी भारतीय को अमेरिका से वापस भारत न आकर इसका नवीनीकरण वहीं करने की सुविधा दी जा रही है। अमेरिका के लिए भारत बहुत बड़ा खुला बाज़ार भी है। वहाँ की अनेक कंपनियों ने भारत में निवेश करने की मंशा व्यक्त की है। कुछ भारतीय कम्पनियों ने अमेरिका में अपने उद्योग स्थापित करने की सहमति दी है। भारत को टेक्नोलॉजी और निवेश में मदद करके अमेरिका निश्चित रूप से भारत को सुदृढ़ करने की राह पर चल पड़ा है, क्योंकि यह उसकी बाध्यता है। अमेरिका विश्व की सप्लाई चेन सुनिश्चित करने के लिए चीन से बाहर भी औद्योगिक संरचना खड़ी करने के लिए भारत को उपयुक्त स्थान मानता है।टेक्नोलॉजी में काफ़ी पिछड़ा हुआ भारत भी अमेरिका की ओर आशा लगाए बैठा है।

भारत अमेरिका का किसी संधि के अंतर्गत बँधा हुआ मित्र देश नहीं है। क्वाड में रहते हुए भी भारत ने यूक्रेन युद्ध में अमेरिका की निंदा करने से इनकार कर दिया है जो अमेरिका को अच्छा नहीं लगा। रूस पर लगे प्रतिबंधों के बावजूद भी भारत बहुत बड़ी मात्रा में पेट्रोलियम क्रूड रूस से ले रहा है। भारत-चीन सीमा पर आक्रामक स्थिति बनी होने के बावजूद भारत चीन के साथ ब्रिक्स और शंघाई कोआपरेशन आर्गेनाइजेशन में बिना किसी हिचक के सम्मिलित होता है। भारत चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का विरोध करता है परंतु चीन द्वारा संचालित एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इंवेस्टमेंट बैंक में सहर्ष सम्मिलित है। यद्यपि भारत ने अब अमेरिका से सैनिक उपकरण ख़रीदना प्रारंभ कर दिया है परन्तु वह रूस से भी हथियार ख़रीदता रहेगा। भारत पूरी आस्था से बहुध्रुवीय विश्व का समर्थक है और भविष्य में स्वयं एक सशक्त ध्रुव के रूप में विश्व में उभरना चाहता है।

अमेरिका में भारतीय समुदाय उद्योग, व्यापार और राजनीति में बहुत प्रभावशाली है। फिर भी Pew के एक सर्वेक्षण के अनुसार 40% अमेरिकियों ने मोदी का नाम भी नहीं सुना है। 44% अमेरिकी भारत को पसंद नहीं करते हैं। वहाँ के मीडिया का बहुत बड़ा वर्ग और अनेक प्रभावशाली राजनेता भारत में मानवाधिकारों के पालन, मीडिया की स्वतंत्रता तथा अल्पसंख्यकों की स्थिति को लेकर भारत के आलोचक हैं। फिर भी दोनों देशों के शीर्ष नेतृत्व ने वर्तमान और भविष्य की वैश्विक परिस्थितियों को बहुत गहराई से समझा है तथा इसी कारण से एक दूसरे का सहयोग करने का दृढ़ निश्चय किया है। मोदी ने सही समय पर वैश्विक जियोस्ट्रैटजिक स्थिति को समझ कर बाइडन के साथ मिलकर ( दोनों अगले साल चुनाव लड़ रहे हैं) इस राजकीय यात्रा को एक बहुत यादगार शो बना दिया है।