गुरु पूर्णिमा: अखंड विश्व समा जाऐ एक शब्द गुरु में

गुरु को सम्बोधित करती 4 कविता -

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गुरु पूर्णिमा: अखंड विश्व समा जाऐ एक शब्द गुरु में

गुरु पूर्णिमा को वेद्यास पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है जिसे वेदव्यास के जन्मदिन पर मनाया जाता है। दोस्तों आज इस अवसर पर प्रस्तुत है गुरु को सम्बोधित करती 4 कविता —-

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1.गुरु चरणों में नमन करूं मैं

तोहरे शरण ज्ञान मैं पाऊ।
इस जगत मेंअलख जगाऊ।
ज्ञान का सागर मेरे गुरुवर ।
प्रकाश की जोत मेरे गुरुवर।
चंदन तिलक लगाऊ मैं।
आशीष तुम्ही से पाऊ मैं।
जीवन के हर संकट में।
तोहरे भजन ही गाऊ में।
हर घड़ी,हर पल मुस्काऊ मैं।
मेरे गुरुवर ज्ञान तुम्ही से पाऊ मैं।
         -वंदना पुणतांबेकर

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           2  गुरु पूर्णिमा

महा ईश गुरुवर, आपने, दिया हमें सदज्ञान ,
जीवन भर उर बसो,करूँ धोक , सम्मान।

जिनवाणी के ज्ञानसे,मिला आपसे तत्व,
आध्यात्मिकता की देन,सुख शांति गन्तव्य।

जीवन की पाठशाला में, ,सफल रहूं हर वक्त,
प्रभु आपका दर्शन, शांत चित्त मूरत।

मात पिता मेरे गुरु,करूँ सदा चरण स्पर्श,
गुर सिखाये जगत ने,कैसे दूर हो अंधकार से प्रकाश।

इस मातृभूमि को सादर नमन,जन्म लिया अनमोल,
परिस्थियां गुरु बने,सकारात्मकता से अडोल।

एक दूसरे की गुरु सीख से,सारा जगत आगे बढ़े,
एक दूजे को सम्मान प्यार,सफल जीवन गुर बड़े।
 –प्रभा जैन इंदौर

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   3 गुरू नमन
      हे गुरु
कंहा से करूँ शुरू
तुम एक नहीं हो
अनेक रूप
जन्म दायिनी माँ है गुरु
जग में लाये हे पिता गुरू
पाल पोस कर बड़ा किया
व्यवहारिकता सिखा दिया
अध्ययन शाला में मिले गुरू
शिक्षा से काबिल हमें किया
भाई बहन मित्र सहेली
ये थे गुरू अबूझ पहेली
गठबंधन से पति मिले
सीखा सब कुछ ससुराल तले
सास ससुर थे पूज्य गुरू
कितना मैं आभार करूँ
जब संतति जीवन में आई
वर्तमान जगति दिखलाई
पुत्र पुत्री ने सिखलाया
जो उनको मैं न सिखा पाई
“गुरु मंत्र “जीवन देता है
जीने का लक्ष्य सिखाता है
इन सबसे ऊपर प्रभु गुरु है
जो मेरे महागुरू और हैं ग़रूर
इस सकल विश्व का गुरू रूप
जो मेरे हैं संज्ञान रूप
शत शत उनको मेरा प्रणाम
न लगे शिक्षा पे कभी विराम
……..,,,,,……………..
 कुसुम सोगानी, इंदौर
4  महत्ता गुरु की

,
संपूर्ण देवता समा जाऐ एक शब्द गुरु में।

किसे करूं नमन प्रथम ईश्वर या गुरु को ,
ईश्वर का मार्ग दिखाए ,प्रथम प्रणाम गुरु को ।

राह में खड़क सौ पथ संचालित करे गुरु ही ,
अथाह समुद्र , नैया पार लगाऐ गुरु ही ।

मैं ऋणी प्रकृति माँ, जन्मदाता और गुरु की ,
नतमस्तक हूं जीवन भर आभारी हर गुरु की ।

इस कलयुग में भी ईश्वर समान गुरुजी,
सत मार्ग दिखाएं पथरीली राह में गुरुजी ।

भक्ति करूं जब दे बल अपार गुरुजी ,
शिष्य ईश्वर के बीच सेतु बने गुरुजी ।

सातों जन्म सफल पीठ पर हाथ रहे गुरु का,
ज्ञान भास्कर ,शांति सागर वंदन करूं गुरु का।

                              —सुनीता फडनीस

चित्रकार-वंदिता श्रीवास्तव

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