अनिर्भर जीवन का आगमन

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अनिर्भर जीवन का आगमन

एक शहर के हजारों मोहल्ले हैं
धरती उन सबको बराबर प्रेम करती है
अंतरिक्ष सभी के हिस्से में है
मोहल्ले वालों को शुद्ध अशुद्ध
वायुमंडल की कोई खबर नहीं

एक मोहल्ले में लोग
अपनी क़दीमियत पर फख्र करते हैं
वर्तमान के चबूतरे पर उसे रखकर
चूमते हैं फख्र को ओढ़ते बिछाते हैं
कवि गाते हैं गायक कवि हो चुके
नेता अभिनेताओं की तरह
संवाद करते हैं
अभिनेता नेताओं के लिए जान लगा देते हैं
जनता पूजा करती है
अभावों को दूर करने के लिए
जाती है प्रभावों वाले बाबाओं के पास
इस मोहल्ले में अनेक सिद्ध पुरुष हैं
यहां कभी कभी बेरहमी से महिलाओं की हत्या हो जाती है
अभावों में रो रहे लोग
लाठी भांजते हैं सत्य सुनकर
ज़मीनी लोग जो कहलाते हैं
उनके पास जमीन भी नहीं होती
आसमानी लोग खरीदते रहते हैं
समुद्र किनारे की ज़मीन
सत्ताओं के प्रति विभोर होते हुए

लोग इस मोहल्ले को स्वर्ग कहते हैं
दूसरे मोहल्ले में सत्ता ने ठान लिया है कि
सभी को शिक्षा और स्वास्थ्य देंगे मुफ्त
एक घर या वाहन होने पर नहीं खरीदने दिया जाएगा दूसरा घर
कोई अपार धन संचय नहीं करेगा
बचपन और बुढ़ापे की कद्र होगी
न न्यायालय व्यस्त होगी न कचहरी
हर नागरिक बिना मुस्कराते हुए नहीं जिएगा

दो हिस्सों में बंट चुकी है दुनिया
एक हिस्से में गौरव और नेता अभिनेता हैं
अमीर और गरीब हैं
जिम्मेदार यहां राजनीति नहीं नसीब हैं

दूसरे हिस्से में केवल मस्त और व्यस्त जीवन है
कांच की सड़कों के बीच अच्छे दृश्य हैं
खुश लहलहाते वृक्ष हैं।
आदमी और औरत इंसान बन चुके हैं
धन बहुत कम महत्वपूर्ण है

कुछ मोहल्लों में धरती स्वर्ग बन चुकी है
दूसरे मोहल्ले में अभी परिभाषा भी तय नहीं है
अच्छे जीवन की ।
समुद्र की असीम दूरी तय करके मुश्किल ही है
अनिर्भर जीवन का आगमन
अलबत्ता उसकी प्रतिपूर्ति के लिए
गौरव को भेजा जाता है मस्तिष्कों के भीतर

ब्रज श्रीवास्त

Author profile
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ब्रज श्रीवास्तव

जन्म :5 सितंबर 1966 (विदिशा )

शिक्षा :एम. एस. सी. (गणित), एम. ए. हिन्दी, एम ए (अंग्रेजी,) बी. एड.

प्रकाशन
साहित्य की पत्र-पत्रिकाओं, पहल, हंस, नया ज्ञानोदय, कथादेश, बया, वागर्थ, तदभव, आउटलुक, शुक्रवार, समकालीन भारतीय साहित्य, वर्तमान साहित्य,इंडिया टुडे, दुनियां इन दिनों, शत दल, वसुधा, साक्षात्कार, संवेद, यथावत, अक्सर, रचना समय, कला समय, पूर्वग्रह, दस बरस, जनसत्ता, सहित अनेक अखबारों, रसरंग, लोकरंग, सुबह सवेरे, नवदुनिया, सहारा समय, राष्ट्रीय सहारा आदि में कविताएँ, समीक्षायें और अनुवाद प्रकाशित.

कविता संग्रह
पहला संग्रह "तमाम गुमी हुई चीज़ें" म.प्र. साहित्य परिषद् भोपाल के आर्थिक सहयोग से 2003 में रामकृष्ण प्रकाशन विदिशा से प्रकाशित (ब्लर्व, राजेश जोशी)
दूसरा कविता संग्रह, "घर के भीतर घर" 2013 में, शिल्पायन प्रकाशन से प्रकाशित. (ब्लर्व : मंगलेश डबराल)
ऐसे दिन का इंतज़ार बोधि प्रकाशन से 2016 में आया है. आशाघोष एवं समय ही ऐसा है कविता संग्रह। उड़िया में एक संग्रह कहानी रे तुमे प्रकाशित।

कथेतर गद्य का एक संग्रह एवं कविता संग्रह हम गवाह हैं प्रकाशनाधीन।

दूरदर्शन और आकाशवाणी से परिचर्चा और कविता पाठ का अनेक बार प्रसारण.

सहभागिता
मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी के आयोजन में जबलपुर, खंडवा में और भारत भवन के आयोजन परिधि में देवास में कविता पाठ एवं संचालन। प्रगतिशील लेखक संघ के आयोजन में जयपुर और बीना में कविता पाठ। सरोकार प्रकाशन भोपाल के आयोजन में विशेष कविता पाठ।वनमाली सृजन पीठ के आयोजन में बिलासपुर में कविता पाठ। विश्व रंग में कथेतर गद्य सत्र में सहभागिता एवं संचालन। केंद्रीय साहित्य अकादमी दिल्ली में भी वक्तव्य ।

अखिल भारतीय दिव्य पुरस्कार सहित एक दो स्थानीय स्तर के सम्मान।

संपादन:दैनिक विद्रोही धारा के साहित्यिक पृष्ठ का तीन वर्षों तक संपादन. काव्य संकलन, दिशा विदिशा.(वाणी प्रकाशन) से प्रकाशित. नवदुनिया और कला समय में स्तंभ लेखन।साकीबा की स्थापना एवं संगठन।

व्यवसाय
स्कूल शिक्षा विभाग में व्याख्याता

पता : L-40
गोदावरी ग्रींस,
विदिशा।
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Mob.9425034312
7024134312