झूठ बोले कौआ काटे! सनातन विरोधी राग, जला न दे ये आग

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झूठ बोले कौआ काटे! सनातन विरोधी राग, जला न दे ये आग

झूठ बोले कौआ काटे! सनातन विरोधी राग, जला न दे ये आग

– रामेन्द्र सिन्हा

संसद भवन में तमिल गौरव के प्रतीक सेंगोल एवं भारत मंडपम में चोल राजाओं द्वारा निर्मित नटराज मूर्ति की स्थापना और 2024 चुनाव से पूर्व अयोध्या में श्रीराम मंदिर के उद्घाटन की घोषणा से बह चली सनातन की लहर से लगता है कि विपक्ष घबरा गया है। सनातन को मिटाने का राग और गठबंधन या श्रीराम मंदिर श्रद्धालुओं संग, वापसी में गोधरा जैसा कांड होने की आशंका जताना मात्र संयोग नहीं है। तमिल नेताओं और उद्धव ठाकरे की हेट स्पीच तथा सोनिया-राहुल गांधी का मौन सवालों के घेरे में है।

पहले, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन ने ‘सनातन उन्मूलन सम्मेलन’ में बोलते हुए तंज कसा, “कुछ चीजें हैं जिन्हें हमें मिटाना है और हम केवल विरोध नहीं कर सकते। मच्छर, डेंगू बुखार, मलेरिया, कोरोना, ये सब ऐसी चीजें हैं जिनका हम विरोध नहीं कर सकते, हमें इन्हें खत्म करना है। सनातन भी ऐसा ही है।”

तमिलनाडु सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री के पोनमुडी ने उसी सम्मेलन में कहा, “आई.एन.डी.आई.ए गठबंधन का गठन सनातन धर्म के सिद्धांतों के खिलाफ लड़ने के लिए किया गया है। हमारे बीच मतभेद हो सकते हैं लेकिन गठबंधन में शामिल 26 पार्टियां सनातन धर्म के खिलाफ लड़ाई में एकजुट हैं, परंतु इसके लिए हमें राजनीतिक ताकत की जरूरत है।”

पहली फोटो सनातन 1

कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी) और आप ने भले ही तमिल नेताओं के उक्त बयान से पल्ला झाड़ लिया लेकिन कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के बेटे व कर्नाटक के मंत्री प्रियांक खड़गे, पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम के बेटे व तमिलनाडु के कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम सहित कतिपय विपक्षी नेताओं ने उदयनिधि के बयान का समर्थन किया।

राजनाथ सिंह, अर्जुन राम मेघवाल, प्रह्लाद पटेल, धर्मेंद्र प्रधान और अनुराग ठाकुर सहित कई केंद्रीय मंत्रियों ने विपक्षी गठबंधन को आड़े हाथों लिया और उससे हिंदू भावनाओं के साथ नहीं खेलने को कहा। पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद ने कहा, “उदयनिधि स्टालिन ने जो कहा है वह चौंकाने वाला और शर्मनाक है”। जबकि, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र शेखावत ने चेतावनी दी कि जो सनातन धर्म की तरफ आंख उठाकर देखेगा उसकी आंख निकाल देंगे। भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा, “सनातन धर्म के विरुद्ध जो कहा गया है, ये सब गलती से किसी के मुंह से नहीं निकला, बल्कि ये एक डिजाइन है। ये वही डिजाइन है, जिसके जरिए पहले प्रायोजित रूप से राम मंदिर के खिलाफ कहा गया था कि भगवान राम का कोई अस्तित्व नहीं है, भगवान राम तो काल्पनिक हैं!”

उत्तर प्रदेश के फायर ब्रांड मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि जो सनातन रावण, कंस के अहंकार और बाबर, औरंगजेब के अत्याचार से नहीं मिटा, वह इन तुच्छ सत्ता परजीवियों से क्या मिट पाएगा। आज जब पूरा देश सकारात्मक दिशा में बढ़ने के लिए कार्य कर रहा है। अपनी विरासत का सम्मान करते हुए एक नई ऊर्जा से आगे बढ़ने का कार्य कर रहा है। बहुत सारे लोगों को यह अच्छा नहीं लग रहा।

दूसरी ओर, भारत की 262 प्रतिष्ठित हस्तियों ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखकर उदयनिधि स्टालिन के भाषण का स्वत संज्ञान लेने का अनुरोध किया है। उन्होंने कहा है कि उदयनिधि द्वारा दिए गए नफरत भरे भाषण से समाज में सांप्रदायिक हिंसा भड़क सकती है। इसलिए इस मामले का अदालत स्वत: संज्ञान ले।

उधर, शिवसेना (यूबीटी) के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने राम मंदिर के प्रस्तावित उद्घाटन को लेकर विवादित बयान दिया। उन्होंने दावा किया कि राम मंदिर के उद्घाटन के लिए देश भर से उत्तर प्रदेश के अयोध्या में बड़ी संख्या में लोग जुटेंगे, ऐसे में वापसी यात्रा के दौरान गोधरा जैसी घटना हो सकती है और इस तरह की स्थिति के पीछे भाजपा जिम्मेदार होगी।

झूठ बोले कौआ काटेः

भारतीय दंड संहिता में विभिन्न धाराएं हैं जो नफरत भरे भाषण पर लागू होती हैं। ये धाराएं नफरत फैलाने वाले भाषण को अपराध मानती हैं और ऐसे अपराध के लिए सजा का प्रावधान करती हैं।

आपको सर्वोच्च न्यायालय का वह रूख तो याद होगा जब पैगंबर मोहम्मद पर विवादित टिप्पणी मामले में जैसे ही नुपुर के वकील मनिंदर सिंह ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उनकी मुवक्किल की जान का खतरा है। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि उन्हें खतरा है या वह सुरक्षा के लिए खतरा बन गई हैं? उन्होंने जिस तरह से पूरे देश में भावनाओं को भड़काया है, देश में जो हो रहा है उसके लिए वह अकेले जिम्मेदार हैं। कोर्ट ने कहा कि नुपुर को टीवी पर आकर माफी मांगनी चाहिए।

इसी अगस्त में नूंह हिंसा से संबंधित मामले में समुदायों के बीच “सद्भाव” और “सद्भाव” बनाए रखने की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम समुदाय के सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार का कथित आह्वान “अस्वीकार्य” था। “इस तरफ या उस तरफ” नफरत फैलाने वाले भाषण देने वाले सभी लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए।

अप्रैल 2023 में एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि जब भी कोई नफरत भरा भाषण दिया जाए, तो वे बिना किसी शिकायत के भी एफआईआर दर्ज करने के लिए स्वत: कार्रवाई करेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि भाषण देने वाले व्यक्तियों के धर्म की परवाह किए बिना ऐसी कार्रवाई की जाएगी ताकि संविधान की प्रस्तावना में परिकल्पित भारत के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को संरक्षित रखा जा सके। विभिन्न निर्णयों में भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की बहुत उदारतापूर्वक व्याख्या की गई है। लेकिन साथ ही इस मौलिक अधिकार पर उचित प्रतिबंध भी लगाया गया है, जिसका दुरुपयोग नफरत भरे भाषण के दायरे में आ सकता है।

सनातन 2

अब देखने की बात है कि शीर्ष न्यायालय सनातन को मिटाने की बात को हेट स्पीच मानता है या नहीं। हालांकि, भावनाएं आहत नहीं हुईं होतीं तो इंदौर के एक मंदिर की सीढ़ियों पर श्रद्धालुओं के पैरों से रौंदे जाने के लिए उदयनिधि स्टालिन के चित्र नहीं लगाए गए होते।

उदयनिधि ने अपने भाषण में सनातन को समानता और सामाजिक न्याय के खिलाफ बताया। दूसरी ओर, मान्यता है कि श्रीराम का आचरण ही मूल सनातन धर्म है। तभी तो, हस्तलिखित मूल संविधान का भाग 3, जिसमें हमारे मौलिक अधिकार पर चर्चा है, में श्रीराम, सीता जी एवं लक्ष्मण जी का चित्र है। यह समझना आवश्यक होगा कि क्यों संविधान के इस भाग में श्रीराम का चित्रण ही सबसे उपयुक्त चयन है? भारतीय संविधान के लागू होते ही, समस्त अधीन प्रजा जनों को उनके मौलिक अधिकार प्राप्त हुए। मौलिक अधिकारों के लागू होते ही सभी नागरिकों को देश में विभिन्न प्रकार के भेदभावों से मुक्ति मिली। श्रीराम का दयालु एवं निष्पक्ष व्यक्तित्व सर्वविदित है, साथ ही उनके राम-राज्य की परिकल्पना में भी मानव जीवन के ये भाव आत्मसात है।

श्रीराम ने उस समय जातिगत भेदभाव किये बिना अपने से निम्न जाति के निषादराज से मित्रता की। उन्हें वही सम्मान दिया जो उनके बाकी राज मित्रों को मिला। रंगभेद या नस्ल भेद को अस्वीकार करते हुए रघुनन्दन ने एक भीलनी शबरी माता के जूठे बेर स्वीकारे। उन्होंने अपने शत्रु एवं मानवीय प्रवित्ति के विरोधियों (रावण और ताड़का) का युद्ध में वध करने के पश्चात् उनका ससम्मान अंतिम संस्कार सुनिश्चित किया। जब श्रीराम को यह पता चला कि महाराज दशरथ ने उनका राज्याभिषेक घोषित कर दिया है, तो यह बात सुनते ही उनका पहला प्रश्न था कि उनके तीन भाइयों के लिए क्या सुनिश्चित किया गया है? वे मानते थे की उनके भाइयों का भी अयोध्या राज पर समान अधिकार है और उन्हें भी बराबर राज्य मिलने चाहिए।

युद्ध की परिस्थितियों में भी उन्होंने शत्रु राज्य से आये अनुयायियों को शरण दे कर उनकी रक्षा का आश्वासन दिया था। जब विभीषण श्रीराम से मिलने आये तो सुग्रीव ने उन्हें चेताया कि विभीषण शत्रु का भाई है। श्रीराम ने उन्हें समझाते हुए कहा कि उनसे न्याय मांगने आये हर व्यक्ति के पक्ष को सुनने और उसकी रक्षा करना उनका स्वभाव व धर्म दोनों है।

उस समय की व्यवस्था के अनुसार वह स्वयं भी अपने राज धर्म एवं मानव धर्म से प्रतिबद्ध थे, जिसकी तुलना आप आज के ‘रूल ऑफ़ लॉ’ से कर सकते हैं। शक्तिशाली, लोकप्रिय एवं राजा होने के बाद भी कभी श्रीराम ने निर्धारित नियमों का उल्लंघन नहीं किया न ही स्वयं को धर्म से ऊपर रखा। हमारा संविधान एक ‘प्रजा केंद्रित’ राज्य को स्थापित करता है। एक ऐसा सकारात्मक व प्रगतिशील राज्य जिसकी परिकल्पना राम के आदर्शों का प्रतिबिम्ब ही है।

दरअसल, दक्षिण की राजनीति में द्रविड़वाद कुछ इस तरह पनपा कि इसे ब्राह्मणवादी सोच के खिलाफ आंदोलन का रूप दे दिया गया। माना जाने लगा कि आर्य यानी ब्राह्मण हैं जो गैर-ब्राह्मण संस्कृति के खिलाफ हैं। लिहाजा एक आंदोलन चल निकला, जिसकी अगुआई ईवीके रामास्‍वामी ‘पेरियार’ ने की थी। बाद में इस सोच को द्रमुक ने ले लिया और द्रविड़ आंदोलन के जरिए ही राजनीति में पैर जमाए। लेकिन, अब ‘इंडिया’ या ‘इंडी’ गठबंधन का गठन सनातन धर्म के सिद्धांतों के खिलाफ लड़ने के लिए दावा करने से अधिकतर शामिल दलों को न उगलते बन रहा न निगलते।

उधर, अयोध्या में श्रीराम मंदिर के उद्घाटन तिथि की घोषणा से लोकसभा चुनाव तक माहौल सनातनमय होने का भय भी विपक्ष को अवश्य सता रहा है। सनातन के विरूद्ध अनावश्यक बयानबाजी और गोधरा कांड की पुनरावृत्ति का डर दिखा कर विपक्ष एक विशेष वोट बैंक का ध्रुवीकरण भी कर लेना चाहता है तो उसे हिंदुओं की नाराजगी का भी डर है। संसद के विशेष सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कौन सा पत्ता खोलने वाले हैं, विपक्ष के लिए अलग सिरदर्द का विषय है। आगे-आगे देखिए होता है क्या?

और ये भी गजबः

संविधान की मूल प्रति भारतीय संसद की लाइब्रेरी में हीलियम से भरे केस में रखी गई है। संविधान की मूल प्रति हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में हाथ से लिखी गई है। इसमें किसी भी तरह की टाइपिंग या प्रिंट नहीं है। संविधान की इस हस्तलिखित मूल प्रति में कई दुर्लभ तस्वीरें हैं। ‘मौलिक अधिकार’ के तृतीय भाग में श्रीराम, सीता और लक्ष्मण की तस्वीर है। इसके अतिरिक्त अर्जुन को उपदेश देते भगवान श्रीकृष्ण का भी चित्र है। महात्मा गांधी, सुभाष चन्द्र बोस, टीपू सुल्तान, लक्ष्मीबाई की भी तस्वीर है। प्रसिद्ध चित्रकार नंदलाल बोस और विश्व भारती शांति निकेतन के कलाकारों की बनाई तस्वीरों में मोहनजोदड़ो, वैदिक काल, रामायण, महाभारत, बुद्ध के उपदेश, महावीर के जीवन, मौर्य, गुप्त व मुगल काल, हिमालय से लेकर सागर आदि के चित्र भी शामिल हैं।

और ये भी गजब

भारतीय संविधान के हर पन्ने को बहुत ही खूबसूरत इटैलिक अक्षर में लिखा गया है, जिसे प्रेम बिहारी नारायण रायजादा ने पेन होल्डर निब से लिखा था। इस मूल प्रति में प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के भी हस्ताक्षर मौजूद हैं। संविधान को बनाने में दो साल 11 महीने और 18 दिन लगे थे, लेकिन उसे लिखने में छह महीने लगे। संविधान लिखने के लिए रायजादा ने कोई पारिश्रमिक नहीं लिया था। हर पेज पर अपना नाम लिखने की शर्त रखी थी, जो सभी पेजों पर दिखता है। संविधान की मूल प्रति देखने से भारतीय परंपरा, धर्म और संस्कृति को महसूस किया जा सकता है।