रविवारीय गपशप: राजघरानों की कार्यशैली का अंदाज ही कुछ और!
– आनंद शर्मा
हमारे देश में स्वतंत्रता के बाद भी अनेक राज परिवार प्रभावी भूमिका में रहे। कुछ राजनीति में आये और सांसद, विधायक और मंत्री भी बने। कुछ ने प्रशासनिक और पुलिस सेवाओं में हिस्सेदारी की। मेरी प्रारंभिक पदस्थापना के जिले राजनांदगांव के खैरागढ़ में जब मैं एसडीएम बना तो वहाँ रश्मि देवी सिंह खैरागढ़ की विधायक थीं। बड़ी विनम्र और लोकप्रिय रश्मि देवी ख़ुद नवागढ़ राजघराने से थीं और खैरागढ़ के राजा रविंद्र बहादुर सिंह की पत्नी थीं। उनके ससुर राजा बहादुर वीरेंद्र बहादुर सिंह भारतीय पुलिस के उस जमाने के अफसर थे। तब इस सेवा को आईपीएस नहीं बल्कि आईपी यानी इम्पीरियल पुलिस कहा जाता था।
उनके बारे में एक मज़ेदार संस्मरण लोग सुनाते थे कि एक बार वे दौरे पर निकले और अपनी कार में सो गए। ड्राइवर को सख्त निर्देश थे कि साहब यदि आराम फरमा रहे हों तो उन्हें डिस्टर्ब न किया जाए, लिहाज़ा ड्राइवर गाड़ी चलाता रहा। चलते-चलते गाड़ी दूसरे राज्य की सीमा में प्रवेश कर गई और तब साहब की नींद खुली। उन्होंने ड्राइवर को पास के थाने में गाड़ी रोकने को कहा और इंस्पेक्शन के लिए अंदर घुस गए। थानेदार ने वर्दी देखकर सेल्यूट तो मारा पर कहा कि ये तो दूसरा राज्य है। तो साहब बोले मैं तो आईपी हूँ, मुझ पर क्षेत्राधिकार का प्रश्न लागू नहीं होता, पूरे देश में कहीं भी जांच कर सकता हूँ और बाकायदा जांच कर उसकी रिपोर्ट उस प्रदेश के मुख्यालय को भेज दी।
यह भी सत्य है कि अपने व्यवहार के कारण राजपरिवार के अनेक लोग आम लोगों में न केवल लोकप्रिय हुए, बल्कि श्रद्धा के पात्र भी रहे। मैं जब उज्जैन में एसडीएम था तो एक बार श्रावण सोमवार में महाकाल की सवारी के दौरान मैंने पाया कि गोपाल मंदिर के समक्ष अनेक नर-नारी लेटकर प्रणाम कर रहे हैं। मुझे अचरज हुआ और मैंने पास खड़े अपने एसडीओपी तिवारी जी से पूछा कि ये क्या माजरा है! हर सप्ताह तो ऐसा नहीं होता था? तिवारी जी बोले ‘अरे आपने ध्यान नहीं दिया, आज गोपाल मंदिर में ऊपर राजमाता बैठी हैं।’
आईएएस में प्रमोशन के कुछ सालों बाद मैं अपने साथियों के साथ इंडक्शन कोर्स के लिए मैसूर गया जो वाडियार राजाओं की राजधानी रहा है। जब हम मैसूर के प्रसिद्ध महल को देखने गए तो हमारे गाइड ने इस महल के बारे में एक बड़ी दिलचस्प घटना सुनाई। उन्होंने बताया कि राजा कृष्णराज वाडियार के परिवार में शादी के दौरान लगी भीषण आग में सन 1897 में ये महल जल गया था। कहते हैं जब महल में आग लगी तो शादी का कार्यक्रम चल रहा था। पर, आश्चर्य था कि आग लगने के बाद लोग महल के अंदर से बाहर भागने के बजाए अंदर भागे और सारी कीमती वस्तुएँ जिनमें हीरे और जवाहरात भी थे, निकालीं और राजा के पैरों में लाकर डाल दी।
राजा ने कहा कि ये तो सब जल जाना था और अब बच गया है तो जिनने बचाया है (जनता ने) ये उन्ही का है। कहते हैं, इन्हीं बेशकीमती वस्तुओं को बॉम्बे स्ट्रीट में बेचकर कृष्णराज वाडियार ने मैसूर राज्य के अपने दीवान श्री मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैय्या को बुलाया, जो एक महान इंजीनियर भी थे। जिनके जन्मदिन को हम इंजीनियर्स डे के रूप में मनाते हैं। उनसे कहा कि इस रक़म से सूखे से जूझ रही हमारी जनता के लिए एक बड़ा सिंचाई बाँध बनाएं। सर विश्वेश्वरैया के निर्देशन में कावेरी नदी पर एक विशाल डेम बनवाया गया और उसका नाम कृष्णराज के नाम पर ‘कृष्णा सागर बाँध’ रखा गया। इसके तट पर बने सुंदर उद्यान को ही हम वृंदावन गार्डन के रूप में जानते हैं। आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि महात्मा गांधी जब 1927 में मैसूर आए थे, तो उन्होंने कृष्णराज वाडियार को राजऋषि कहा था। साथ ही ये भी कहा था कि अंग्रेजो को इनसे सीखना चाहिए कि राज्य कैसे किया जाता है।