Ram Mandir In Ayodhya:राम मंदिर फिर से भारत को सनातन राष्ट्र की पहचान देगा

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Ram Mandir In Ayodhya:राम मंदिर फिर से भारत को सनातन राष्ट्र की पहचान देगा

 

वैसे तो यह विशुद्ध सामाजिक,आध्यात्मिक,धार्मिक चेतना का विषय है, फिर भी इसे राजनीतिक रंग दिया ही जायेगा। यूं देखें तो अब राजनीति भी अब हमारी दिनचर्या का ही अंग है और बगैर राजनीति के जीवन का कोई ऱंग संपूर्ण होता भी नहीं तो ऐसा ही सही । अयोध्या में 22 जनवरी को राम मंदिर के उद्घाटन कार्यक्रम के साथ ही एक नया भारत आकार लेने जा रहा है। इसे स्वीकार न करने वाले भी अपना मत प्रकट करने के लिये स्वतंत्र हैं, क्योंकि वे तो रामजी के अस्तित्व पर ही प्रश्न खड़े कर चुके हैं। उन्हें कपोल-कल्पित पात्र घोषित कर चुके हैं । राम सेतु जैसी अवधारणा को स्पष्ट तौर पर नकार चुके हैं। ऐसे में रामलला का अपने भव्य घर में ससमारोहपूर्वक विराजमान होना भला उन्हें कैसे सुहायेगा?

यह मानकर चलिये कि 22 जनवरी 2024 को विश्व परिदृश्य पर भारत फिर से एक बार सनातन राष्ट्र के तौर पर अंकित होने जा रहा है। जैसा कि श्री राम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपत राय ने कहा है कि 22 जनवरी 2024 का उतना ही महत्व रहेगा, जितना स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त 1947 का है तो वे कुछ भी गलत नहीं कह रहे। स्वतंत्रता के संघर्ष और राम मंदिर की पुनर्स्थापना के आंदोलन के बीच साम्य न रहते हुए भी दोनों घटनाओं का मूल चरित्र समान तो है ही, साथ ही भारत के लिये इन दोनों तिथियों का भी अविस्मरणीय योगदान रहेगा। देखा जाये तो दोनों ऐतिहासिक घटनाओं का कालखंड भी साथ-साथ ही चलता है। दुर्भाग्यपूर्ण अगर कुछ है तो यह कि 500 वर्ष पहले जिस मुगल काल में देश पर आक्रमण कर कब्जा कर लिया गया और देश की सांस्कृतिक विरासतों,धार्मिक प्रतीकों,पूजा स्थलों को तोड़कर अपने प्रतीक पूजा स्थल बना लिये गये, उनसे राजनीतिक आजादी तो हमने 15 अगस्त 1947 को हासिल कर ली, लेकिन राम मंदिर जैसे अनगिनत देश की पहचान प्रतीकों और खास तौर से हिंदू धर्म के पूजा स्थलों को अबैध कब्जों से मुक्ति दिलाने की ओर तत्कालीन सरकारों,शासकों ने ध्यान ही नहीं दिया। इसे यूं भी कह सकते हैं कि उन बातों की उपेक्षा की गई और वोटों की खातिर तुष्टिकरण की नीति अपना ली गई।
उन प्रतीकों को उनके मूल स्वरूप में लौटाने का उल्लेखनीय,ऐतिहासिक,आवश्यक और सनातनी पराक्रम विश्व हिंदू परिषद,साधु-संत समुदाय और भारतीय जनता पार्टी ने किया । यह अभी-भी जारी है,अयोध्या तो प्रारंभ है। अभी लंबा सफर शेष है। गुलामी के ऐसे-ऐसे प्रतीक देश में विद्य‌मान हैं, जो हमारी आत्मा को धिक्कारते हैं और आव्हान करते हैं कि हम उनका उद्धार करें,उनके मूल स्वरूप में लौटायें। काशी में ज्ञानवापी और मथुरा में कृष्ण मंदिर इसके अगले चरण हैं। संतोष की बात यह है कि इसे पूरी तरह से वैधानिक तरीके से समुचित धैर्य के साथ समाधान की ओर ले जाया जा रहा है। जिससे भारत में ही तुष्टिकरण समर्थकों,सनातन विरोधियों और विदेश में बैठे उनके सरमायेदारों को चूं करने का भी अवसर न मिले।

अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण केवल कोई पत्थर का भवन निर्माण,मूर्ति की स्थापना का निमित्त निभाने जैसा नहीं है। यह भारत की सांस्कृतिक पहचान,प्रतिष्ठा और परंपरा को पूरी प्रमाणिकता के साथ विराजित करने का ऐसा अतुलनीय और अविस्मरणीय कार्य है, जो इस ब्रह्मांड के अस्तित्व रहने तक गौरव का बोध कराता रहेगा। अब जबकि यह प्रकल्प अपनी पूर्णता के करीब है, राजनीतिक विरोधियों की ओर से अनेक कुतर्क प्रस्तुत किये जा रहे हैं। कभी वे धर्म के राजनीतिक उपयोग की बात कहते हैं तो कभी कहते हैं कि राम किसी दल की बपौती नहीं है,वगैरह-वगैरह। राम तो पहले भी सबके थे ही, लेकिन आप मानते तब ना? आपने तो अदालतों में हलफनामे दे-देकर उन्हें काल्पिनक बताया, क्योंकि आपके लिये ईसाईयत और इस्लामिक मान्यतायें ज्यादा जरूरी थीं। आपको मुगलकालीन आक्रांताओं के प्रतीकों की सलामती में सांप्रदायिक सौहार्द नजर आता था और सनातनी प्रतीकों,हिंदू धार्मिक स्थलों के अस्तित्व की चर्चा फिजूल की बातें लगती थीं। बावजूद इसके कि आपने अपने शासनकाल में कुछ किया-धरा नहीं और न्यायालयों के माध्यम से जब दूध और पानी अलग कर दिया गया तो बगल की छुरी को छुपाकर राम नाप जपने लग गये। जनता ने इसे बखूबी पहचान लिया और 2014 के बाद से वह नीर-क्षीर की तरह तलहटी में बैठा कचरा दिखा रही है तो तकलीफ किस बात की ?

राम मंदिर का निर्माण अयोध्या में श्री राम के जन्म स्थल पर करने के लिये राम के देश में ही स्वतंत्रता के बाद भी 76 वर्ष लग गये। इसके राजनीतिक कारण ही थे तो अब इसमें राजनीति की उपस्थिति पर बखेड़ा खड़ा करना खिसियाहट ही तो कही जायेगी। इसके निर्माण के लिये कितने बलिदान हुए,कितने आंदोलन चले, कितनी पीढ़ियां खप गईं,कितने अवरोधओं का सामना करना पड़ा,ये अब अतीत के गर्भ में ससम्मान मौजूद रहेगा। अब तो यह देखना है कि कैसे भारत राष्ट्र अपनी नई पहचान कायम करता है । देश बेहद उल्लास और जिज्ञासा के साथ उन पलों की प्रतीक्षा कर रहा है,जब वह अपने राम को,अपने आराध्य को संपूर्ण सम्मान के साथ अयोध्या की पुण्य भूमि पर विराजित करेगा।

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रमण रावल

 

संपादक - वीकेंड पोस्ट

स्थानीय संपादक - पीपुल्स समाचार,इंदौर                               

संपादक - चौथासंसार, इंदौर

प्रधान संपादक - भास्कर टीवी(बीटीवी), इंदौर

शहर संपादक - नईदुनिया, इंदौर

समाचार संपादक - दैनिक भास्कर, इंदौर

कार्यकारी संपादक  - चौथा संसार, इंदौर

उप संपादक - नवभारत, इंदौर

साहित्य संपादक - चौथासंसार, इंदौर                                                             

समाचार संपादक - प्रभातकिरण, इंदौर      

                                                 

1979 से 1981 तक साप्ताहिक अखबार युग प्रभात,स्पूतनिक और दैनिक अखबार इंदौर समाचार में उप संपादक और नगर प्रतिनिधि के दायित्व का निर्वाह किया ।

शिक्षा - वाणिज्य स्नातक (1976), विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन

उल्लेखनीय-

० 1990 में  दैनिक नवभारत के लिये इंदौर के 50 से अधिक उद्योगपतियों , कारोबारियों से साक्षात्कार लेकर उनके उत्थान की दास्तान का प्रकाशन । इंदौर के इतिहास में पहली बार कॉर्पोरेट प्रोफाइल दिया गया।

० अनेक विख्यात हस्तियों का साक्षात्कार-बाबा आमटे,अटल बिहारी वाजपेयी,चंद्रशेखर,चौधरी चरणसिंह,संत लोंगोवाल,हरिवंश राय बच्चन,गुलाम अली,श्रीराम लागू,सदाशिवराव अमरापुरकर,सुनील दत्त,जगदगुरु शंकाराचार्य,दिग्विजयसिंह,कैलाश जोशी,वीरेंद्र कुमार सखलेचा,सुब्रमण्यम स्वामी, लोकमान्य टिळक के प्रपोत्र दीपक टिळक।

० 1984 के आम चुनाव का कवरेज करने उ.प्र. का दौरा,जहां अमेठी,रायबरेली,इलाहाबाद के राजनीतिक समीकरण का जायजा लिया।

० अमिताभ बच्चन से साक्षात्कार, 1985।

० 2011 से नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने की संभावना वाले अनेक लेखों का विभिन्न अखबारों में प्रकाशन, जिसके संकलन की किताब मोदी युग का विमोचन जुलाई 2014 में किया गया। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को भी किताब भेंट की गयी। 2019 में केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के एक माह के भीतर किताब युग-युग मोदी का प्रकाशन 23 जून 2019 को।

सम्मान- मध्यप्रदेश शासन के जनसंपर्क विभाग द्वारा स्थापित राहुल बारपुते आंचलिक पत्रकारिता सम्मान-2016 से सम्मानित।

विशेष-  भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा 18 से 20 अगस्त तक मॉरीशस में आयोजित 11वें विश्व हिंदी सम्मेलन में सरकारी प्रतिनिधिमंडल में बतौर सदस्य शरीक।

मनोनयन- म.प्र. शासन के जनसंपर्क विभाग की राज्य स्तरीय पत्रकार अधिमान्यता समिति के दो बार सदस्य मनोनीत।

किताबें-इंदौर के सितारे(2014),इंदौर के सितारे भाग-2(2015),इंदौर के सितारे भाग 3(2018), मोदी युग(2014), अंगदान(2016) , युग-युग मोदी(2019) सहित 8 किताबें प्रकाशित ।

भाषा-हिंदी,मराठी,गुजराती,सामान्य अंग्रेजी।

रुचि-मानवीय,सामाजिक,राजनीतिक मुद्दों पर लेखन,साक्षात्कार ।

संप्रति- 2014 से बतौर स्वतंत्र पत्रकार भास्कर, नईदुनिया,प्रभातकिरण,अग्निबाण, चौथा संसार,दबंग दुनिया,पीपुल्स समाचार,आचरण , लोकमत समाचार , राज एक्सप्रेस, वेबदुनिया , मीडियावाला डॉट इन  आदि में लेखन।