क्या भारतीय मतदाता अपरिपक्व है?

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क्या भारतीय मतदाता अपरिपक्व है?

भारतीय मतदाताओं को लेकर दिल्ली में इन दिनों जोरदार बहस चल रही है। एन सी पी के वरिष्ठ नेता शरद पवार के हाल के बयान ने इस बहस को ओर हवा दे दी है। बयान के अनुसार महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार के लिए जहां जहां प्रधानमंत्री मोदी गये वहीं भाजपा युति को हार का सामना करना पड़ा और मतदाताओं ने शरद पवार और उनके गठबंधन पर भरोसा जताया।

पवार के बयान से एक बात खुलकर सामने आई है कि लोकसभा चुनावों में राष्ट्रीय कम, स्थानीय मुद्दे ज्यादा हावी रहे। जातिवाद और क्षैत्रीयता ने भी इस राष्ट्रीय चुनाव को खूब प्रभावित किया। लगभग यही स्थिति अन्य राज्यों में भी रही विशेष तौर पर उत्तर प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल जहां भाजपा को हार का सामना करना पड़ा।

उत्तर प्रदेश में स्थिति बिल्कुल विपरीत रही। सभी ८० लोकसभा सीटें जीतने दावा करने वाली भाजपा वहां 35 से ज्यादा सीटों पर हारी है। सबसे ज्यादा बवाल फैजाबाद लोकसभा सीट को लेकर है। फैजाबाद सीट के तहत ही अयोध्या भी आती है जहां भाजपा ने श्री राम मंदिर बनवाकर हिंदुओं के वोट एक मुश्त मिलने की आशा लगा रखी थी। बताया जाता है कि फैजाबाद जिला प्रशासन और साधु संतों के बीच चल रही आपसी खींचतान के अलावा भाजपा के तत्कालीन स्थानीय सांसद के प्रति चल रही गुस्सा के कारण भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा और समाजवादी पार्टी के अवधेश प्रसाद इस सीट से जीत गए। वाराणसी में भी पिछले बार की तुलना में इस बार भाजपा प्रत्याशी नरेंद्र मोदी की जीत कम मतों से हुई है। राज्य की अन्य सीटो पर भी स्थानीय मुद्दे हावी रहे। इनके आगे भारत की अर्थव्यवस्था के पांचवें नंबर पर पहुंच जाने, डिजिटल लेनदेन का चलन व्यापक होने, देश के आधारभूत ढांचे में सुधार के दावों और आश्वासनों का मतदाताओं पर ज्यादा असर नहीं पड़ा।

अब बात राजस्थान की करते हैं जहां 6 महीने पहले सत्ता में वापसी करने वाली भाजपा को 10 लोकसभा सीटों का नुकसान उठाना पड़ा। जानकारों का कहना है कि राजस्थान में भाजपा के मुख्यमंत्री, मंत्रियों और संगठन के बीच आपसी समन्वय ना होना हर का एक मुख्य कारण भी कारण रहा। बताया जा रहा है कि राजस्थान के बडे नेता किरोड़ी लाल मीणा राजनीति से सन्यास लेने की सोच रहे हैं। स्थानीय मुद्दे ने राजस्थान में भी छाए रहे।

विशेषज्ञों का मानना है कि स्थानीय मुद्दों ने लोकसभा जैसे राष्ट्रीय चुनावों को काफी हद तक प्रभावित किया है लेकिन बंगाल, तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश जेसे राज्यों में मतदाताओं ने राष्ट्रीय दलों की अपेक्षा क्षेत्रीय दलों पर अधिक भरोसा जताया। अब यह बहस का ही मुद्दा बना रहेगा कि भारतीय मतदाता अपरिपक्व है या परिपक्व।