What is the caste of politicians?:अप्रासंगिक मुद्दों और निरर्थक बहस की राजनीति … आखिर कब तक ?

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What is the caste of politicians?: अप्रासंगिक मुद्दों और निरर्थक बहस की राजनीति … आखिर कब तक ?

– डॉ . श्रीकांत द्विवेदी

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हाल ही में सत्ता पक्ष के एक सदस्य द्वारा नेता प्रतिपक्ष से उनकी जाति क्या पूछ ली , लोकसभा में बवाल मच गया । कांग्रेस समेत विपक्षी दलों के सदस्यों ने तख्तियां लहराई , पर्चे फाड़े । जमकर हंगामा हुआ । हंगामा तो होना ही था । मुद्दा कोई भी हो । कारण बिना हंगामे के सदन की कार्यवाही स्थगित नहीं होती ।

पब्लिक को लगना चाहिए कि विपक्ष भी कोई चीज है । हां तो बात चल रही थी , एक नेता से उसकी जात पूछने की । समझ में नहीं आता कि राजनीति में लोग एक – दूसरे की जाति क्यों पूछते हैं ? यह जानते हुए भी कि राजनेताओं की कोई जाति नहीं होती है । फिर भी राजनीति में जाति होती है ।और बिना जाति के कोई राजनीति नहीं होती है । यहां तो माहौल देखकर जाति तय होती है । सारे चुनावी समीकरण जातिगत वोटों पर आधारित होते हैं ।

बिना जातीय पतवार के कोई भी उम्मीदवार जीत की वैतरणी पार नहीं कर सकता । उम्मीदवार तो ठीक देश की राजनीति में कई दलों का भविष्य भी जातीय संख्याबल पर टिका हुआ नजर आता है । सम्भवतः इसीलिए महात्मा कबीर को बरसों पहले लिखना पड़ा था कि – ‘जाति न पुछो साधु की , पूछ लीजिए ज्ञान ‘ । तय है कि महात्मा कबीर ने केवल सज्जन से उसकी जाति पूछने का मना किया था ।

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गैर सज्जन से तो उनकी जाति तो पूछने में क्या हर्ज है । देश को यह जानने का अधिकार है कि आखिर राजनेताओं की जाति क्या है ? कारण राजनेता सदन के भीतर जातिगत मसलों पर खुद को साफ-सुथरा रखना चाहते हैं जबकि सदन के बाहर जातिगत जनगणना की आवाज उठाते हैं , साथ ही वे यह भी जानना चाहते हैं कि जजों , सैनिकों तथा प्रशासनिक अधिकारी के पद पर किस जाति के सर्वाधिक लोग पदस्थ हैं । इस तरह से व्यर्थ के मुद्दों को उछालकर सदन का कीमती समय बर्बाद कर देना सदन के माननीय (? ) सदस्यों के स्वभाव में शामिल होता जा रहा है । सच पूछो तो सदन के भीतर तथा सदन के बाहर भी इस तरह के अप्रासंगिक सवाल – जवाब केवल खबरों में बने रहने तथा अपने खेमे की सहानुभूति बटोरने से ज्यादा कुछ भी नहीं है । इसी आपाधापी में जनहित के मुद्दों पर तो बात ही नहीं हो पाती ।

कुल मिलाकर आजादी से पूर्व भी जाति और धर्म की नौटंकी चलती रही , परिणाम में मिली हमें आधी-अधूरी आजादी । देश विभाजन की पीड़ा आज तलक भोगी जा रही है । आजादी के पचहत्तर साल बाद आज भी तथाकथित धर्मनिरपेक्षता का आवरण ओढ़कर धर्म और जाति के नाम पर राजनीति हो रही है । इस आंच में वोटबैंक बनाए रखने के लिए हर कोई अपनी रोटी सेंक रहा है । परिणाम आज भी सबके सामने है ।

पहले देश बंटा , अब समाज बंट रहा है । देशहित की किसी को चिंता नहीं । ऐसे लोग जाति ,धर्म , सम्प्रदाय तथा अगड़ा – पिछड़ा के मुद्दों को हवा दे देकर मजहब तथा जातिगत खेमों , कबीलों के सरदार तो हो सकते हैं , मगर राष्ट्र को एक सूत्र में पिरो कर रखने वाले लोहपुरुष वल्लभ भाई पटेल जैसे सरदार नहीं हो सकते । साथ ही ध्यान में लाए स्वामी विवेकानंद का वह कथन , जो उन्होंने लाहौर प्रवास के दौरान अपने उद्बोधन के दौरान कहा था ।

स्वामीजी का कथन यूं कि -” यद्यपि मैं हिन्दू जाति में एक नगण्य व्यक्ति हूं , तथापि अपनी जाति और अपने पूर्वजों के गौरव से मैं अपना गौरव मानता हूं । अपने को हिन्दू बताते हुए , हिन्दू कहकर अपना परिचय देते हुए मुझे एक प्रकार का गर्व सा होता है । साथ ही विश्व धर्म सम्मेलन शिकागो में दृढ़ता के साथ विवेकानंदजी ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि – मुझे उस धर्म का अनुयायी होने का गौरव प्राप्त है , जिसने जगत को समदर्शी बनने तथा सार्वभौम धर्म को अंगीकार करने की शिक्षा चिरकाल से प्रदान की है ।

मुझे उस देश का नागरिक होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है , जिसने इस धरा की समस्त व्यथित तथा शरणागत जातियों तथा विभिन्न धर्मों को आश्रय प्रदान किया है । हम मात्र धर्मों में ही विश्वास नहीं करते , बल्कि सब धर्मों में से सत्य को समझकर उस सत्य में विश्वास करते हैं । ” ऐसे ही चिंतन से प्रभावित होकर सुप्रसिद्ध निबंधकार एवं आलोचक डॉ . हजारी प्रसाद द्विवेदी ने भी एक जगह पर लिखा है कि – अगर निरंतर व्यवस्थाओं का संस्कार एवं परिमार्जन नहीं होता रहा तो व्यवस्थाएं तो टूटेगी ही , अपने साथ धर्म को भी तोड़ देगी । ” आज राष्ट्र को जरूरत है ऐसे चिंतन को आत्मसात करने की । साथ ही राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के इस सूत्र वाक्य -‘ हम कौन थे , क्या हो गए हैं और क्या होंगे अभी……’ पर भी गौर करें तभी भारत अपने सांस्कृतिक पुनर्निर्माण की दिशा में अग्रसर हो सकेगा ।

– डॉ . श्रीकांत द्विवेदी   

महावीर मार्ग , धार

लेखक -चिन्तक ,प्रखर वक्ता ,शिक्षाविद और साहित्यकार हैं 

जनादेश के सात चरण 

प्रेमचंद जयंती: पंडित दीनानाथ व्यास स्मृति प्रतिष्ठा समिति भोपाल द्वारा रचना पाठ आयोजित /