kavita :
अशोक के पुष्प
{बहुत सोच-समझकर कंदर्प देवता ने लाखों मनोहर पुष्पों को छोड़कर सिर्फ़ पाँच को ही अपने तूणीर में स्थान देने योग्य समझा था। एक यह अशोक ही है।-—डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी}
अशोक के फूल
विजय पुष्पम
कहीं पढ़ा था
सुन्दरी स्त्रियों के पदाघात से
खिल उठते हैं
अशोक के पुष्प
घर के सामने लगे अशोक के वृक्ष पर
जाने कितने पदाघात किये होंगे
अपने अलक्तक लगे पावों से
आज तक नहीं खिला नामुराद
मतलब साफ़ हुआ
अब मुझे किसी ने कहा सुंदर
तो बताउंगी
सात पुश्तों तक को नहीं बख्शूंगी
हद है झूठों की
मुंह देखी बात करने वालों की
मैं नहीं आती किसी के कहने में
अशोक ने सच क्या है
बता जो दिया है….विजय