Minister’s Respect: सम्मान को तरसते प्रभारी मंत्री

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 Minister’s Respect: सम्मान को तरसते प्रभारी मंत्री

 

भले ही मोहन सरकार ने प्रभारी मंत्रियों की नियुक्ति बहुत देर से की हो, किंतु अभी भी लगता है कि प्रभारी मंत्रियों के लिए मौजूद अधिकारियों का सम्मानजनक व्यवहार नहीं रहता। बताया जाता है कि प्रभारी मंत्री अपने जिलों में जिस उत्साह एवं उमंग से पहुंच रहे हैं, वह उमंग सरकारी महकमों और उनके अधिकारियों के चेहरों से गायब दिखाई दे रही है। बात ज्यादा पुरानी नहीं जब एक आदिवासी जिले के प्रभारी मंत्री को नाश्ते में कच्चे केले और कीड़े वाले काजू परोस दिए गए।

हालांकि यह भी समझने वाली बात है की कच्चे केले और कीड़े वाले काजू जानबूझकर पेश नहीं किए गए होंगे! पर, इतनी लापरवाही कैसे हो गई यह भी तो सोचने वाली बात है! अब देखना है कि मोहन यादव अपने प्रभारी मंत्रियों के मान सम्मान के लिए कोई गाइडलाइन जारी करेंगे या ऐसे ही मामलों से प्रभारी मंत्रियों को दो-चार होना पड़ेगा। क्योंकि, अपने मंत्रियों को सम्मान दिलाना भी मुख्यमंत्री का ही काम है।

*मंत्री की अकड़ से अपनों ने बनाई दूरी* 

महाकौशल ने इस बार विधानसभा चुनावों में भाजपा को दिल खोलकर सीटें दी। लेकिन, अब उस क्षेत्र के एक मंत्री के व्यवहार से पराये तो ठीक भाजपा के नेताओं ने न सिर्फ दूरी बना ली, बल्कि वे अब मंत्री जी से मिलना और बात करना भी पसंद नहीं कर रहे। मंत्री जी रीढ़ की कड़क हड्डी करके चल रहे हैं और उनके चेहरे पर ऐसे भाव हैं कि अब पार्टी वाले उनसे दूर ही रहने लगे। यह भी कहा जाने लगा कि वे खुद को हेडमास्टर और पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को स्कूल के छात्र समझने लगे हैं। लेकिन, उनकी रीढ़ की हड्डी झुकने का नाम नहीं ले रही। अब तो इन मंत्री से विधायक तक बात करने में हिचकते लगे हैं और वेसे दूर से राम राम करने में भी कतराने लगे। आपको बता दें कि यह मंत्री किसी समय बहुत पॉवरफूल भूमिका में थे और अपनी इसी अकड़ की वजह से उस बड़े पद से हटाए गए थे। लेकिन, फिर भी उनकी आंखें वैसी ही लाल और भृकुटि अभी भी तनी हुई है।

*EOW खंगाल रहा है आबकारी अधिकारियों की कुंडली !* 

EOW

मध्य प्रदेश सरकार का नंबर एक और नंबर दो का कमाऊ पूत अब बहुत परेशान हैं। आबकारी विभाग में एक तरफ पावर होता है, दूसरी तरफ पैसा! पावर वाले ग्वालियर में बैठे हैं, जबकि पैसे वाले भोपाल और इंदौर में। पावर और पैसे को लेकर फिलहाल घमासान मचा है। पावर वाले गुजरात की लाइन चला रहे हैं। लिहाज़ा लाइन से चलने वाले स्मगलर तथा ठेकेदार बिना रीढ का अधिकारी चाहते हैं। जबकि, पावर वाले दमदार अधिकारियों की पोस्टिंग भोपाल, इंदौर और जबलपुर में कराना चाहते हैं।

आबकारी अधिकारियों का पिछले 4 साल में जो नाम खराब हुआ, उसकी वापसी कराना पावर ग्रुप का मकसद है। जबकि, पैसा समूह या पैसा ग्रुप ठेकेदारों के अधीनस्थ कर्मचारी के तौर पर काम करके जमीनों से लेकर के ठेकों तक में इन्वेस्ट कर चुका है। वल्लभ भवन के पांचवे माले पर बैठे वरिष्ठ अधिकारी ने यह जानकारी जुटाई कि आबकारी के कौन-कौन से अधिकारी और उनके सगे संबंधी कितनी जमीनों के मालिक हैं और कितने ठेकों में शामिल है।

भोपाल के आर्थिक अपराध ब्यूरो के नवागत पुलिस अधीक्षक प्रमुख को भी यह जानकारी साझा की गई है। इस अधिकारी ने इंदौर में रहते हुए आबकारी विभाग को लगभग हिला दिया था। आर्थिक अपराध ब्यूरो में भी एक स्टेट टीम बनाई जा रही है, जिसके कर्ताधर्ता भोपाल के पुलिस अधीक्षक रहेंगे और उन्हें पूरे राज्य में कहीं भी डंडा फटकारने का अधिकार होगा। आने वाला समय आबकारी विभाग के लिए राहु-केतु और शनि के बीच में यात्रा करने वाला समय रहेगा। क्योंकि, भोपाल संभाग के नवागत पुलिस अधीक्षक ने कुंडली तैयार करना शुरू कर दी है। अब इसकी जद में कौन-कौन आएगा यह किसी से छिप नहीं सकेगा।

*PHQ में ADG अधिकारियों मे पोस्टिंग का मुकाबला* 

PHQ

इन दिनों पुलिस मुख्यालय में सबसे अधिक भरमार अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक स्तर के अधिकारियों की है। बताते है कि हालात यहां तक है कि इन अधिकारियों में तो पुलिस अधीक्षक स्तर के अधिकारियों जैसी प्रतिद्वंदिता दिखाई देने लगी है। ताजा जानकारी यह बताती है कि लोकायुक्त के महानिदेशक, आर्थिक अपराध ब्यूरो के महानिदेशक और पुलिस हाउसिंग कारपोरेशन के अध्यक्ष बनने के लिए इन लोगों की दौड़ संघ कार्यालय, भाजपा कार्यालय, मुख्यमंत्री निवास की और प्रतिदिन जारी है।

इंदौर में पदस्थ एक अधिकारी ने तो नागपुर तक का दौरा कर लिया। दिल्ली की सियासत में दखल रखने वाले पिछड़े वर्ग के एक अधिकारी ने उपमुख्यमंत्री के माध्यम से दिल्ली की सियासत को इस तरह से संतुष्ट कर दिया कि उन्हें लोकायुक्त या आर्थिक अपराध शाखा का प्रमुख बनाया ही जाएगा! अब देखना यह है कि क्या यह अधिकारी अपनी कवायद में सफल हो पाएंगे!

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*नागर सिंह के नटखटपन में मंत्री पद खतरे में* 

अलीराजपुर के आदिवासी विधायक और अब छोटे ओहदे वाले मंत्री नागर सिंह ने जो करना था, वो कर लिया। वन एवं पर्यावरण विभाग छीने जाने पर उन्होंने जितना नटखटपन दिखाया, वो किसी से छुपा नहीं है। उन्होंने पार्टी के भोपाल से लगाकर दिल्ली दरबार तक को हिलाने की कोशिश की! पर, न तो ऐसा होना था और न ही हुआ। यहां तक कि दिल्ली का कोई नेता उनसे मिला तक नहीं। बाद में उनकी उछलकूद भी ठंडी पड़ गई। देखने में भले ही यह प्रसंग ठंडा लग रहा हो, पर वास्तव में ऐसा है नहीं।

वन एवं पर्यावरण विभाग की फाइलों को खंगालकर उन सारी खामियों को खोज लिया गया जो नागर सिंह ने 6 महीने कार्यकाल में की थी। अब ये मामला पार्टी के ऊपरी दरबार तक पहुंच चुका है। बताया जा रहा कि अगले उलटफेर में उनका पत्ता कट सकता है। क्योंकि, उन्होंने जिस तरह का काला-पीला किया और फिर अनुशासनहीनता की, वो किसी से छुपा नहीं है। भाजपा में सामान्यतः कोई नेता ऐसी उच्श्रृंखलता करने का साहस नहीं करता, पर जब कोई करता है, तो उसके नटखटपन पर नकेल डालना भी जरूरी हो जाता है, ताकि आगे कोई ऐसी गलती न करे।

 

 *दावेदार हुए सक्रिय* 

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अब बात धार की। मुख्यमंत्री मोहन यादव निगम मंडल की नियुक्ति के लिए दिल्ली दरबार क्या गए धार के नेताओं में भी उत्साह और उम्मीद जाग गई। धार जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष बनने के लिए कम से कम आधा दर्जन नेता कतार में है। संगठन से भी नाम बुलवाये गये है। लिहाजा जो नेता अपने आपको दावेदार बता रहे है उनमें प्रभु राठौर, रमेश धाडीवाल, विनोद शर्मा, चाचू बना, दिलीप पटोंदिया, मुकाम सिंह किराड़े, उमेश गुप्ता और संजय वैष्णव के नाम चर्चा में हैं। ये सभी आजकल भोपाल की तरफ सिर करके सो रहे है। देखना है कि इस बार साफा किसको बंधता है।

 

*स्कूली बच्चों के साथ खड़े हुए उमंग सिंघार* 

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इस बार शिक्षक दिवस पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और मध्यप्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार शिक्षकों के बजाए स्कूल के बच्चों के साथ खड़े दिखाई दिए। उन्होंने धार जिले के आदिवासी अंचल के स्कूलों की अव्यवस्था को देखा, बच्चों से उनकी परेशानी समझी और हाथों-हाथ सबका इलाज किया। वे दुखी हुए कि स्कूलों में न शौचालय है न खेल का मैदान और न खेल सामग्री। उन्होंने स्कूलों को अपनी तरफ से खेल सामग्री देने की घोषणा की। जब खबर सोशल मीडिया पर वायरल हुई, तो धार कलेक्टर ने भी पूरे मामले की जांच के निर्देश दिए! इस घटना से ये जरूर पता चलता है कि विपक्ष की आवाज बुलंद हो, तो उसे भी गंभी से रता से सुना जाता है!

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