राज- काज: BJP Leaders not Happy: लीजिए, भाजपा नेताओं के ‘मंसूबों पर फिर गया पानी’….

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राज-काज:BJP Leaders not Happy: लीजिए, भाजपा नेताओं के ‘मंसूबों पर फिर गया पानी’….

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BJP Leaders not Happy

 *BJP Leaders not Happy: लीजिए, भाजपा नेताओं के ‘मंसूबों पर फिर गया पानी’….* 

विधानसभा चुनाव के बाद एक बार फिर सत्ता में आने पर भाजपा के कई नेताओं को उम्मीद थी कि राजनीतिक नियुिक्तयों के जरिए उन्हें भी सरकार में हिस्सेदारी मिलेगी। कुछ को टिकट वितरण के समय आश्वासन मिले थे। सदस्यता अभियान के प्रारंभ में भी भरोसा दिलाया गया था कि जो ज्यादा सदस्य बनाएगा, नियुक्तियों में उन्हें प्राथमिकता दी जाएगी। लेकिन राज्य सरकार के एक आदेश से इन नेताओं के ‘दिल के अरमां आंसुओं में बह गए’। आदेश में गया कि प्रदेश के निगम-मंडलों के अध्यक्ष विभागों के आला अफसर नहीं, विभाग के मंत्री होंगे। आदेश निकलते ही मंत्रियों ने अपने विभाग से संबंधित निगम-मंडलों के अध्यक्ष का कार्यभार संभालना शुरू कर दिया। साफ हो गया कि फिलहाल निगम-मंडलों में राजनीतिक नियुक्तियां नहीं होने वाली। जल्दी नियुक्तयां होनी होती तो यह आदेश ही नहीं निकलता। इस आदेश ने भाजपा नेताओं की नींद उड़ा दी है। सरकार में हिस्सेदारी का इंतजार करने वाले नेताओं के ‘मंसूबों पर पानी फिर गया’। जब भी मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव समय आरक्षित रखते, दिल्ली में केंद्रीय नेतृत्व से मिलते और प्रदेश संगठन के प्रमुख नेताओं के साथ अलग बैठक करते, तो अटकलें लगने लगतीं कि राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर कवायद चल रही है। पर अब भाजपा के नेता खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं।

 *ये कर सके तो इतिहास में नाम दर्ज करा लेंगे ‘मोहन’….* 

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– मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव द्वारा हाल ही में की गई एक घोषणा पर अमल हो गया तो उनका नाम प्रदेश के इतिहास में दर्ज हो सकता है। यह है प्रदेश के संभाग, जिला, तहसील एवं थाना क्षेत्रों के भाैगोलिक एरिया का नए सिरे से परिसीमन। डॉ यादव ने इसके लिए मप्र प्रशासनिक इकाई पुनर्गठन आयोग (परिसीमन आयोग) का गठन कर दिया है। रिटायर्ड आईएएस मनोज श्रीवास्तव इसके पहले सदस्य बनाए गए हैं। तीन सदस्यीय आयोग के दो सदस्यों की नियुक्ति बाद में की जाएगी। इससे कोई इंकार नहीं कर सकता कि प्रदेश के कुछ जिले और संभाग बहुत बड़े हैं तो कई अत्यंत छोटे। इनके क्षेत्र भी बेतरतीब हैं। कुछ दूरियां ऐसी हैं कि एक ही जिले में लोगों को अपने काम के लिए सवा सौ किमी तक का सफर तय कर काम के लिए जिला मुख्यालय जाना पड़ता है। आयोग का गठन करते हुए मुख्यमंत्री ने इस तरह की विसंगतियों की ओर इशारा भी किया है। आयोग के गठन की वजह हालांकि बीना को जिला बनाने को लेकर भाजपा में चल रही अंदरूनी तनातनी को माना जा रहा है। वजह जो भी हो लेकिन मुख्यमंत्री ने एक अच्छा काम हाथ में लिया है। यदि वे इसे पूरा करने में सफल हो गए तो हमेशा याद किए जाएंगे। अब तक नए संभागों, जिलों, तहसीलों का गठन लोगों की मांग पर वोटों की राजनीति के लिए होता रहा है, पहली बार गंभीर प्रयास होता दिख रहा है।

 *इन विधायकों के ‘एक तरफ कुआ, दूसरी तरफ खाई’….* 

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– कहावत है, ‘भइ गति सांप, छछूंदर जैसी’। यह स्थिति बन गई है कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए दो विधायकों की। एक हैं छिंदवाड़ा जिले के अमरवाड़ा से विधायक कमलेश शाह। इन्होंने मंत्री बनने के लालच में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ का साथ छोड़ दिया था। इस्तीफा देने के बाद उप चुनाव जीत कर भाजपा विधायक बन गए लेकिन मंत्री नहीं बन पाए। दूसरी हैं सागर जिले के बीना की विधायक निर्मला सप्रे। इन्होंने भी लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस छोड़ी थी। इन्हें बीना को जिला बनाने का आश्वासन मिला था। मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने बीना को जिला बनाने की तैयारी कर ली थी लेकिन भाजपा के कद्दावर नेता, पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह रूठ गए। उन्होंने पहले से अपने क्षेत्र खुरई को जिला बनाने की तैयारी कर रखी थी। बीना और खुरई आपस में सटे हैं। दोनों को जिला बनाना संभव नहीं है। सूत्रों का कहना है कि भूपेंद्र अड़ गए। अंतत: मुख्यमंत्री डॉ यादव बीना तो गए लेकिन जिला बनाने की घोषणा नहीं की। उन्होंने वहां जाने से पहले ही परिसीमन आयोग बनाने की घोषणा कर दी। अर्थात जब आयोग की रिपोर्ट आएगी, तभी नए जिले बनेंगे। साफ है कि कमलेश शाह और निर्मला सप्रे से किए गए वादे पूरे नहीं किए जा सके। सवाल है कि अब ये दोनों करें तो क्या? क्षेत्र के लोगों को क्या जवाब दें? इनके ‘एक तरफ कुआ है, दूसरी तरफ खाई’।

 *जब मुख्यमंत्री के सामने निरुत्तर हाे गए ये पार्टी नेता….* 

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– भाजपा के प्रमुख नेताओं को पार्टी के संविधान और विचारधारा का कितना ज्ञान है, इसकी कलई मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के सामने ही खुल गई। अवसर था सदस्यता अभियान को लेकर हुई एक बैठक का। डॉ यादव ने अचानक वहां मौजूद कुछ प्रमुख पदाधिकारियों की परीक्षा लेने का मन बना लिया। पहले उन्होंने दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र के भाजपा विधायक और प्रदेश कार्यालय के प्रभारी महामंत्री भगवान दास सबनानी से पूछ लिया कि भाजपा की पंच निष्ठाएं क्या हैं? सभी को इनके बारे में बताईए। सबनानी निरुत्तर हो गए क्योंकि उन्हें इनके बारे में जानकारी ही नहीं थी। इसके बाद उन्होंने पार्टी के जिलाध्यक्ष सुमित पचौरी से यही सवाल दाग दिया। वे भी बगलें झांकने लगे क्योंकि उन्होंने भी यह नहीं पढ़ा था। बाद में मुख्यमंत्री डॉ यादव ने खुद इनके बारे में बताया। सबनानी और पचौरी भाजपा के जिम्मेदार पदों पर हैं, जब इन्हें ही पार्टी की पंच निष्ठाएं नहीं मालूम तो अन्य नेताओं, कार्यकर्ताओं की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। कांग्रेस में यह स्थिति होती तो बड़ी बात नहीं थी लेकिन भाजपा हमेशा विभिन्न शिविरों के जरिए पार्टी नेताओं-कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करती रहती है। वहां इतनी अज्ञानता चिंता का विषय होना चाहिए। खबर है कि इस घटनाक्रम के बाद भाजपा नेता और कार्यकर्ता पंच निष्ठाओं को तोते की तरह रटने में जुट गए हैं।

 *‘दादा’ पर टिप्पणी की, खुद को रोक नहीं पाया ‘पोता’….* 

– जब कोई स्वर्गीय दादा के बारे में अनर्गल टिप्पणी करेगा तो पोते का खून खोलना स्वाभाविक है। विंध्य में भाजपा के अंदर पैदा नए विवाद की वजह यही है। रीवा के सांसद जनार्दन मिश्रा ने पूर्व विधानसभा अध्यक्ष स्व श्रीनिवास तिवारी को गुंडागर्दी और भ्रष्टाचार की राजनीति करने वाला नेता कह दिया। यह भी कहा कि उनका पोता भाजपा में मर्ज हुआ है, भाजपा पोते में मर्ज नहीं हुई है। इसलिए पोते को बताना पड़ेगा कि उनके दादा ने क्या किया। संकेत श्री तिवारी के पोते सिद्धार्थ तिवारी की ओर था, जो भाजपा से ही विधायक हैं। वे मिश्रा को जवाब देने से खुद को रोक नहीं सके। सिद्धार्थ ने कहा कि किसी के दिवंगत हो जाने के बाद उन पर अभद्र टिप्पणी उचित नहीं है। सांसद का बयान बेहद निंदनीय है। उन्होंने कहा कि पता नहीं मुझे क्यों टारगेट किया जा रहा है। कोई नाराजगी है तो सीधे मुझसे बात करनी चाहिए। मेरे दादा ने अपने जीवन के 75 साल जनता की सेवा में बिताएं हैं। उन पर टिप्पणी का क्या औचित्य है? सिद्धार्थ ने यह भी कहा कि मैंने पार्टी फोरम में अपनी बात रख दी है। विंध्य भाजपा का यह पहला विवाद नहीं है। इससे पहले केदार शुक्ला और रीति पाठक के विवाद में शुक्ला पार्टी से बाहर हो गए। राजेंद्र शुक्ला और अभय मिश्रा विवाद में मिश्रा काे बाहर होना पड़ा। अब जनार्दन और सिद्धार्थ के विवाद में एक की बलि चढ़ सकती है।

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