Mandsaur News -वैदिक काल से ही भारत में रंगमंच की सांस्कृतिक परंपरा है- -श्री प्रदीप शर्मा
मंदसौर से डॉ घनश्याम बटवाल की रिपोर्ट
मन्दसौर । रंगमंच केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं है बल्कि इसके माध्यम से समाज में संस्कृति का आदान-प्रदान होने के साथ-साथ सामूहिकता का भी विकास होता है । दुनिया भर में हुए शोधों में निकल कर आया है की कला क्षेत्र से जुड़े हुए लोगों के स्वास्थ्य का स्तर सामान्य लोगों की अपेक्षा बेहतर होता है । यह बात नाट्य शिक्षक व दार्शनिक श्री प्रदीप शर्मा ने राजमाता विजयाराजे सिंधिया शासकीय उद्यानिकी महाविद्यालय में आयोजित व्याख्यान माला में संवाद करते हुए कही।
केंद्रीय विश्वविद्यालय अनुदान आयोग( यूजीसी) भारत सरकार द्वारा चलाए जा रहे सांस्कृतिक अभियान के अंतर्गत यह व्याख्यान संवाद आयोजित किया गया ।
उद्यानिकी महाविद्यालय के छात्र छात्राओं से संवाद करते हुए श्री शर्मा ने बताया कि वैदिक काल से ही भारत और अन्य देशों में रंगमंच की परंपरा चली आ रही है । ऋग्वेद के अंदर भी लोक रंजन के लिए लिखी गई ऋचाओं का उल्लेख मिलता है तो महाभारत काल में भी राजा युधिष्ठिर के समय कलाकारों के लिए विशेष प्रकार के अनुदान दिए जाने का उल्लेख दूसरे खंड में अध्ययन के लिए उपलब्ध है । उत्तर वैदिक काल में भी जब समुद्रों के माध्यम से व्यापार व्यवसाय शुरू हुआ तो वस्त्र विन्यास, भाषा और संस्कृति का आदान-प्रदान भी नाटकों के माध्यम से होता रहा । ईरान के साथ व्यापार होने और वहां से व्यापारियों के साथ आने वाली नाट्य मंडलियों से यहां भारत में सांस्कृतिक प्रभाव पड़े तो भारत का भी ईरान पर प्रभाव पड़ा । 10वीं शताब्दी तक आते-आते दुनिया भर में रंगमंच पौराणिक आख्यानों, इतिहास और श्रृंगार से जुड़े हुए विषयों को लेकर अपने उत्कर्ष पर पहुंचा ।
व्याख्यान संवाद की अध्यक्षता करते हुए महाविद्यालय के डीन डॉ आईं. एस. तोमर ने कहा कि यूजीसी के माध्यम से विद्यार्थियों को नवाचार से जोड़ने के लिए सतत प्रयास किया जा रहे हैं । आज रंगमंच की सांस्कृतिक परंपरा और सामाजिक अवदान विषय पर आयोजित व्याख्यान और परस्पर संवाद निश्चित ही छात्र-छात्राओं के लिए ज्ञानवर्धक साबित हुआ है ।
इस अवसर पर महाविद्यालय स्टाफ और बड़ी संख्या में छात्र-छात्राये उपस्थित थे । व्याख्यान संवाद में डॉ खुर्शीद आलम खां नाहेप परियोजना के समन्वयक डॉ रूपेश चतुर्वेदी विशेष रूप से शामिल हुए ।