लंबे अरसे बाद मध्यप्रदेश विधानसभा का सत्र पूरी अवधि चला!

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लंबे अरसे बाद मध्यप्रदेश विधानसभा का सत्र पूरी अवधि चला!

– अरुण पटेल

 

मध्यप्रदेश विधानसभा का सत्र लम्बे अंतराल के बाद न केवल पूरी अवधि तक चला बल्कि विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने इस अवधि में बड़ी ही सूझबूझ से होने वाले हंगामे की स्थिति पर काबू पाते हुए दस विधयेक भी पारित कराए। सबको साथ लेकर सदन चलाने के कौशल व तोमर की शैली को पक्ष और प्रतिपक्ष दोनों के सदस्यों ने सराहा और उनकी तारीफ भी की। खाद संकट से लेकर सदन की पहली बैठक के 68 वर्ष पूर्ण होने पर भी सार्थक चर्चा कराई गई और ऐसा लगा मानो सदन के संचालन से सत्तापक्ष और विपक्ष लगभग संतुष्ट नजर आए। वैसे शोर-शराबा करना विपक्ष का एक हथियार है लेकिन सदन ने जो कामकाज निपटाया वह काबिले तारीफ है। मध्यप्रदेश विधानसभा का 16 से लेकर 20 दिसम्बर तक जो सत्र चला उसमें 22 घंटे 35 मिनट सदन की कार्रवाई चली और इस दौरान खाद संकट से लेकर जल जीवन मिशन में गड़बड़ी को लेकर सदन में गहमागहमी का माहौल रहा। लेकिन, निर्धारित शासकीय कार्य में कोई विशेष व्यवधान नहीं पड़ा।

इस सत्र में प्रथम अनुपूरक अनुमान एवं विभिन्न विधेयक भी पारित किए गए और पांच दिवसीय सत्र में विधायकों द्वारा 1766 सूचनाओं 888 तारांकित और 878 अतारांकित प्रश्न किए गए। सदन में स्थगन की सात सूचनायें प्राप्त हुईं और 471 ध्यानाकर्षण सूचनायें दी गयीं। दस समितियों के 41प्रतिवेदन भी प्रस्तुत किए गए। अक्सर यह देखने में आया है कि विधानसभा के सत्र तो आहूत होते हैं लेकिन पूरे समय तक नहीं चल पाते तथा हंगामें की भेंट चढ़ जाते हैं और हंगामें में सरकार अपना कामकाज तो निपटा लेती है। लेकिन, विधायक अपनी बात अपने ढंग से सदन में प्रस्तुत नहीं कर पाते और जनता से जुड़े मुद्दे शोरगुल की भेंट चढ़ जाते हैं।

आजकल संसद और राज्य विधानसभाओं में अक्सर कार्रवाई हंगामें की भेंट चढ़ जाती है। यह स्थिति अक्सर सत्ताधारी दल के लिए मुफीद होती है क्योंकि वह तो अपना कामकाज निपटा लेता है लेकिन यह फोरम जो कि सार्थक बहस और विचार-विमर्श के लिए होते हैं उनमें वही नहीं हो पाता जो कि होना चाहिये। मध्यप्रदेश में भी काफी अंतराल के बाद विधानसभा का कोई सत्र अपनी निर्धारित अवधि तक चला। शीतकालीन सत्र 16 से 20 दिसम्बर तक के लिए बुलाया गया था और शुक्रवार 20 दिसम्बर को सत्रावसान हो गया। इस सत्र के दौरान रात 10 बजे तक बैठक हुई। जगह-जगह से समाचार आ रहे थे कि किसानों को पर्याप्त मात्रा में खाद और बीज नहीं मिल रहा है, उनकी समस्या पर भी सदन में चर्चा हुई और 17 दिसम्बर को मध्यप्रदेश विधानसभा की पहली बैठक के 68 साल पूरे होने पर विशेष चर्चा भी कराई गई। भले ही कुछ हंगामें के दृश्य उपस्थित हुए हों लेकिन पूरा सत्र हंगामें की भेंट नहीं चढ़ पाया। इस दौरान 10 विधेयक और 2 अशासकीय संकल्प सर्वसम्मति से पारित किए गए।

सदन के सुव्यवस्थित व कुशल संचालन का श्रेय खुले दिल से सत्तापक्ष व प्रतिपक्ष के विधायकों ने नरेंद्र सिंह तोमर को दिया, जिन्होंने सामंजस्य बनाते हुए न केवल महिला सदस्यों को प्रश्न पूछने के लिए मंगलवार का दिन आरक्षित कर दिया बल्कि इसके साथ ही दोनों पक्षों को अपनी-अपनी बात रखने का भरपूर मौका भी दिया। जहां तक मध्यप्रदेश विधानसभा का सवाल है सत्र में बैठकों की संख्या निरंतर घटती जा रही थी, जिसको लेकर सत्तापक्ष व विपक्षी सदस्यों ने चिंता भी जताई। वास्तव में पिछले पांच-छः साल का कालखंड देखा जाए तो कोई भी विधानसभा का सत्र निर्धारित अवधि तक नहीं चला, भले ही सरकार का काम निपट गया तो लेकिन हंगामें भी होते रहे।

2018 का वर्ष देखा जाए तो 128 दिन सदन की बैठकें होनी थी लेकिन 79 दिनों में भी कामकाज निपटा लिया गया। मार्च-अप्रैल 2020 में बजट सत्र 17 दिन के लिए बुलाया गया था लेकिन दो दिन में ही समाप्त हो गया था। हंगामें के बीच भले ही जरुरी सरकारी कामकाज हो गया हो लेकिन आम जनता के जीवन से जुड़े सवाल अनुत्तरित ही रह गये। 2021 में 23 दिन में से सिर्फ 15 दिन ही सदन की बैठकें हुईं, 2023 में भी 17 दिन बैठकें होना थी लेकिन 15 हो पाईं। जुलाई 2024 में 14 दिन का सत्र मात्र पांच दिन में ही समाप्त हो गया। हालात ऐसे बने की अधिकतर विधेयक बिना चर्चा के ही ध्वनिमत से पारित हो गये। वैसे इस सत्र में गुरुवार 19 सितम्बर को ही सरकारी कामकाज पूरा हो गया था। लेकिन, शुक्रवार को चूंकि अशासकीय संकल्प का दिन होता है और खासकर यह दिन विधायकों के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है इसलिए विधानसभा अध्यक्ष तोमर ने शुक्रवार को भी सदन को जारी रखा और अशासकीय संकल्प प्रस्तुत किए गए, उसके बाद बैठक स्थगित हो गयी।

पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने विधानसभा अध्यक्ष का एक वर्ष का कार्यकाल पूरा होने पर कहा कि सदन की गरिमा विधायकों की उपस्थिति से बढ़ती है और आज जो स्थिति है वह इसका प्रमाण है। सामान्यतः विधानसभा में एक बैठक में दो ध्यानाकर्षण प्रस्ताव लेने की परम्परा रही है और बाकी प्रस्ताव कार्यसूची में तो आ जाते हैं लेकिन उन पर सदन में चर्चा नहीं होती, हालांकि यह पता चल जाता है कि किस विधायक ने क्या मुद्दा उठाया।

सदन में प्रथम अनुपूरक बजट के पास होने के साथ ही जन विश्वास, निजी स्कूल फीस निर्धारण नियंत्रण विनियमन सहित दस विधेयक पारित हुए जबकि 41 प्रतिवेदन प्रस्तुत किए गए थे। तोमर ने महिला सदस्यों के लिए मंगलवार का दिन आरक्षित करने का नवाचार भी किया। नल-जल योजना को लेकर सदन में सरकार घिरती हुई नजर आई और पक्ष-विपक्ष के सदस्यों ने मंत्री की जमकर घेराबंदी की। लोक निर्माण मंत्री राकेश सिंह का कहना था कि लम्बे अंतराल के बाद यह संभव हुआ कि विधानसभा की सभी निर्धारित तिथियों में कार्रवाई हुई। विधानसभा अध्यक्ष ने कार्रवाई सुचारु रुप से संपन्न कराई और कहीं भी कोई अमर्यादित आचरण नहीं हुआ।

... और यह भी

नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने अपने विधायक साथियों के साथ संविधान की प्रति लेकर विधानसभा के सत्र के अंतिम दिन प्रदर्शन किया और आम्बेडकर के अपमान को मुद्दा बनाते हुए सदन के बाहर विधानसभा परिसर में नारेबाजी की। सदन में भी सभी कांग्रेस विधायक नीला गमछा पहनकर आये। नेता प्रतिपक्ष सिंघार ने मीडिया से चर्चा करते हुए आरोप लगाया कि भाजपा संविधान निर्माता का अपमान कर रही है।