Town Hall Case : जयपुर के टाउन हॉल मामले में राजघराने के दावे पर सुप्रीम कोर्ट की कड़क टिप्पणी!  

सुप्रीम कोर्ट ने कहा 'संपत्ति का विलय कैसे संभव, फिर तो पूरा जयपुर ही आपका हो जाएगा!' 

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Town Hall Case : जयपुर के टाउन हॉल मामले में राजघराने के दावे पर सुप्रीम कोर्ट की कड़क टिप्पणी!  

New Delhi : सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को जयपुर राजघराने की याचिका पर सुनवाई हुई। जयपुर के ऐतिहासिक टाउन हॉल (पुरानी विधानसभा) को लेकर चल रहे विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने राजमाता पद्मिनी देवी समेत जयपुर राजपरिवार के सदस्यों की याचिका पर राज्य सरकार को नोटिस जारी किया। राजस्थान हाईकोर्ट ने इसे सरकारी संपत्ति मानते हुए राजघराने के दावों को खारिज कर दिया था। राजघराने के सदस्यों ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। टाउन हॉल के अलावा चार मुख्य इमारतों को भी सरकारी संपत्ति घोषित किया गया है।

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने राज्य सरकार से कहा कि जब तक मामला अदालत में लंबित है तब तक कार्रवाई को आगे नहीं बढ़ाया जाए। मामले पर अब दो महीने बाद सुनवाई होगी। याचिकाकर्ताओं के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने दलील दी, कि यह मामला कानूनी पेचीदगियों से भरा है।

उन्होंने इस मामले में संविधान के अनुच्छेद 362 और 363 में पूर्व शासकों और रजवाड़ों के विशेषाधिकार का जिक्र किया। हरीश साल्वे ने जोर दिया कि रजवाड़ों के विभिन्न कॉन्ट्रैक्ट हैं और आप इन राज्यों के इतिहास को तो जानते हैं। यह एक संधि तब हुई थी जब संघ (यूनियन) तो पक्ष भी नहीं था, यह तो जयपुर और बीकानेर जैसे शासकों के बीच हुई थी।

इस पर कोर्ट ने कहा कि तो आप ‘भारत संघ’ को बिना पक्ष बनाए कैसे किसी संपत्ति का विलय कर सकते हैं? ऐसे में तो पूरा जयपुर आपका हो जाएगा। अगर ऐसा होता है तो राजस्थान का हर शासक सभी सरकारी संपत्तियों पर अपना दावा करेगा। ये रियासतें कहेंगी कि सारी संपत्तियां उनकी ही हैं। कोर्ट ने कहा कि अगर आप कहते हैं कि ‘भारत संघ’ इस कॉन्ट्रैक्ट का पक्षकार नहीं था तो संविधान का अनुच्छेद 363 भी लागू नहीं होगा। राजघराने के पक्षकार साल्वे ने कहा कि हम यथास्थिति चाहते हैं। राज्य के वकील ने जवाब देने के लिए 6 सप्ताह की मोहलत मांगी है और दलील दी कि कोई अंतरिम आदेश पारित नहीं किया जाए। कोर्ट ने नोटिस जारी किया जिसे राज्य के वकील ने स्वीकार कर लिया है।

 

मामला बरसों पुराना, जिसका हल नहीं निकला 

साल 1949 में महाराजा सवाई मानसिंह (द्वितीय) और भारत सरकार के बीच हुए समझौते के तहत टाउन हॉल समेत कुछ संपत्तियां सरकारी उपयोग के लिए दी गई थीं। इसके बाद जब साल 2022 में गहलोत सरकार के ने जब संपत्ति पर म्यूजियम बनाने का फैसला किया तो शाही परिवार ने आपत्ति जताई। 2014 से 2022 तक कई नोटिस और शिकायतों के बावजूद कोई समाधान नहीं निकला।

इसके बाद शाही परिवार ने सिविल कोर्ट में मुकदमा दायर कर संपत्ति पर कब्जा, रोक और मुआवजे की मांग की। राज्य सरकार ने अनुच्छेद 363 का हवाला देकर मुकदमा खारिज करने की मांग की, जिसे ट्रायल कोर्ट ने ठुकरा दिया। लेकिन हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलट दिया था और राज्य सरकार के हक में फैसला सुनाया था। हाईकोर्ट के फैसले को राजघरानों के सदस्यों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।