संघ शताब्दी के साथ पारदर्शिता , शुद्धिकरण की चुनौतियां 

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संघ शताब्दी के साथ पारदर्शिता , शुद्धिकरण की चुनौतियां

आलोक मेहता 

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ शताब्दी वर्ष की पायदान पर अधिक सफल , पारदर्शी और संगठन के साथ राष्ट्र में बदलाव के लिए तत्पर दिख रहा है | सरसंघ चालाक मोहन भागवत ने दिल्ली में तीन दिनों के संवाद कार्यक्रम में संघ से जुड़े अनेक महत्वपूर्ण मुद्दों को स्पष्ट किया | विशेष रुप से सत्ता भाजपा और प्रधान मंत्री के साथ संबंधों , उम्र विवाद , हिन्दू राष्ट्र , धार्मिक मान्यता , मुस्लिमों इस्लाम के अस्तित्व , काशी मथुरा आंदोलन जैसे मुद्दों पर विरोधियों या समर्थकों के बीच रहे भ्रम के जाले साफ़ किए | राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इन सौ वर्षों में संघ ने बहुत उतार चढ़ाव देखे और चुनौतियों का सामना किया | लम्बे समय तक सामाजिक, सांस्कृतिक क्षेत्र में काम करना बहुत कठिन होता है | इस दृष्टि से विश्व में एक हद तक इसे अनूठा संगठन कहा जा सकता है | सबसे रोचक बात यह है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अन्यान्य कारणों से वर्षों तक अपनी गतिविधियों को प्रचारित करना तो दूर रहा, उन्हें गोपनीय रखने का प्रयास भी करता रहा | बचपन से मैंने उज्जैन, शाजापुर और इंदौर जैसे शहरों से लेकर बाद में राजधानी दिल्ली में संघ की शाखा की गतिविधियों को देखा और समझने का प्रयास भी किया | कम आयु में हिन्दुस्थान समाचार से अंशकालिक संवाददाता के रूप में जुड़ा और फिर 1971 से 1975 तक दिल्ली में पूर्णकालिक पत्रकार के रूप में जुड़ा रहा | हिन्दुस्थान समाचार में भी राजनैतिक गतिविधियों के समाचार संकलन का काम किया | इसलिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भारतीय जनसंघ, सोशलिस्ट, कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियों के नेताओं से मिलने के अवसर भी हुए |

1975 में इमरजेंसी के रहते हुए भी कई महीने हिन्दुस्थान समाचार के अहमदाबाद कार्यालय में कार्य किया | संस्थान के प्रधान संपादक और महाप्रबंधक श्री बालेश्वर अग्रवाल ने मुझे नियुक्त किया था | दिल्ली में समाचार विभाग में श्री एन. बी. लेले और श्री रामशंकर अग्निहोत्री के मार्गदर्शन में काम किया | इसलिए यह कह सकता हूँ कि सरसंघचालक श्री माधव सदाशिवराव गोलवलकर (गुरूजी) के कार्यकाल से लेकर वर्तमान सरसंघचालक श्री मोहन भागवत की कार्यावधि में संघ की गतिविधियों के प्रचार कार्य में हुए बदलावों को देखने समझने के अवसर मिले हैं | श्री बालेश्वर अग्रवाल संघ के वरिष्ठ प्रचारक होने के बावजूद संपादक के नाते कांग्रेस तथा अन्य पार्टियों में भी सम्मान पाते थे और एजेंसी को कांग्रेस सरकारों से सहयोग मिलता था | कांग्रेस के शीर्ष नेताओं से उन्होंने ही मेरा परिचय कराया , जिससे मुझे काम करने में सुविधा हुई |

लगभग 55 वर्ष पहले दिल्ली के झंडेवालान स्थित कार्यालय में समर्पित पदाधिकारी और प्रचारक बेहद सादगी के साथ रहते थे | संघ की शाखा या बौद्धिक विचार विमर्श के कार्यक्रम सामान्यतः प्रचारित नहीं किये जाते थे | सरसंघचालक नागपुर से समय समय पर दिल्ली आये लेकिन कोई धूमधाम या प्रचार नहीं होता था | उस समय संघ कार्यालय में श्री चमनलाल जी के माध्यम से किसी वरिष्ठ पदाधिकारी से भेंट हो जाती थी | घ का कोई सदस्यता फार्म या औपचारिक रिकॉर्ड पहले कभी नहीं रहा | पदाधिकारियों और प्रचारकों के पास अधिकाधिक संपर्क के लिए लोगों के फोन या पते किसी रजिस्टर या डायरी में लिखे रहते थे | संघ की गतिविधियां पहले भी औपचारिक रूप से प्रसारित नहीं होती थीं, लेकिन नागपुर, पुणे, इंदौर, ग्वालियर, लखनऊ, अहमदाबाद और दिल्ली में संघ ने अपनी विचारधारा को समाज में पहुंचाने के लिए अपने समाचार पत्र और पत्रिकाएं प्रकाशित करना प्रारम्भ किया था | पंडित दीनदयाल उपाध्याय, अटलबिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण अडवाणी, के. आर. मलकानी, भानु प्रताप शुक्ल, देवेंद्र स्वरुप, रामशंकर अग्निहोत्री, माणक चंद वाजपेयी, यादवराव देशमुख, विष्णु पंड्या, शेषाद्रिचारी और अच्युतानन्द मिश्र जैसे वरिष्ठ प्रचारक इन पत्र पत्रिकाओं के संपादन और लेखन का काम भी करते थे |

इमरजेंसी में संघ पर प्रतिबन्ध लगा, तब देशभर में संघ के सैकड़ों लोगों की गिरफ्तारियां हुईं लेकिन अनेक ऐसे समर्पित प्रचारकों और स्वयं सेवको की कमी नहीं रही जो भूमिगत रहकर सूचनाओं और विचारों को विभिन्न क्षेत्रों में पहुंचाते रहते थे | मुझे स्मरण है कि उन दिनों गुजरात में श्री नरेंद्र मोदी भूमिगत रहकर समाचारों और विचारों की सामग्री तैयार कर गुपचुप बांटने का का स्वयं कर रहे थे | तब वह संघ के किसी पद पर नहीं थे | वह स्वयंसेवक के रूप में ही सक्रिय थे | अपना वेश बदलकर जेलों में बंद संघ, जनसंघ और सोशलिस्ट पार्टियों के नेताओं को सामग्री पहुंचाने का साहसिक कार्य वह कर रहे थे | नागपुर, लखनऊ और दिल्ली में भी संघ की पृष्ठभूमि वाले कुछ पत्रकार भूमिगत रहकर इसी तरह का प्रचार कार्य कर रहे थे | इमरजेंसी अधिक समय तक नहीं चली और 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनने पर लालकृष्ण अडवाणी सूचना प्रसारण मंत्री बने | इसलिए यह कहा जा सकता है कि संघ और जनसंघ के एक प्रमुख नेता पहली बार भारतीय सूचना प्रचार तंत्र के शीर्ष पद पर पहुंचे | | फिर भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपना प्रचार तंत्र उस दौर में भी विकसित नहीं किया | उस समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनसंघ के शीर्ष नेता श्री नानाजी देशमुख जनता पार्टी के साथ सहअस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण सेतु की भूमिका निभा रहे थे |

जनता पार्टी आने के बाद संघ की गतिविधियों पर अख़बारों, पत्रिकाओं में लेख छपने लगे | इसी दौरान विजयादशमी के अवसर पर संघ को लेकर प्रमुख लोगों से बात करके रिपोर्ट या लेख लिखने का अवसर मुझे भी मिला | बाद में भी विभिन्न अवसरों पर संघ के सम्बन्ध में लिखने की सुविधा हुई | पहले सरसंघचालक संघ के प्रकाशन संस्थानों के आलावा किसी अन्य प्रकाशन के लिए इंटरव्यू नहीं दिया करते थे | मुझे भी सबसे पहले सरसंघचालक प्रो. राजेंद्र सिंह (रज्जु भैया) से विस्तारपूर्वक बातचीत कर इंटरव्यू (अक्टूबर 1997) प्रकाशित करने का अवसर मिला | इसके कुछ वर्ष बाद सरसंघचालक श्री के. सी. सुदर्शन से भी मुझे लम्बा इंटरव्यू (जून 2003) मिला | ये ऐतिहासिक इंटरव्यू मेरी एक पुस्तक ‘नामी चेहरों से यादगार मुलाकातें ‘ में प्रकाशित हैं | , उस दौर में तरुण भारत के नए संपादक रहे श्री एम. जी. वैद्य संघ के बौद्धिक प्रमुख होने के साथ पहले प्रचार प्रमुख भी बने | इसलिए यह कहा जा सकता है कि श्री वैद्य के प्रयासों से संघ की गतिविधियों की जानकारी समय समय पर लोगों को मिलने लगी | राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भारतीय जनसंघ और बाद में भारतीय जनता पार्टी की मातृसंस्था के रूप में देखा जाता है | लेकिन यह तो राजनीतिक संगठन मात्र रही है | समाज के अन्य क्षेत्रों में महिलाओं, विद्यार्थियों, मजदूरों, किसानों, शिक्षकों को जोड़ करके कई संगठन विभिन्न राज्यों में अपनी गतिविधियां बढ़ाते रहे | समाज सेवा और शिक्षा के क्षेत्र में सुनियोजित ढंग से संघ से सैकड़ों लोग जुड़ते रहे | इसी तरह धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में संघ के प्रचारक और स्वयंसेवक सक्रिय रहे | इसलिए जब कभी संघ के नेताओं से पत्रकार के नाते भेंट करने के अवसर मिले तो मेरा सवाल यही रहता था कि संघ अपने अच्छे सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यों को सार्वजनिक रूप से क्यों नहीं प्रचारित करता? तब संघ के नेताओं का यही उत्तर होता था कि हमें राष्ट्र और समाज के लिए समर्पित भाव से कार्य करना है और उन्हें प्रचार की भूख नहीं है | लेकिन 90 के दशक के बाद संघ ने अपने प्रचार तंत्र की ओर ध्यान दिया | श्री एम. जी. वैद्य के बाद श्री राम माधव, मदन मोहन वैद्य, और श्री सुनील आम्बेकर घोषित रूप से प्रचार प्रमुख के रूप में संघ की गतिविधियों को प्रचारित प्रसारित करने का दायित्व संभालने लगे | इसी तरह संघ के दरवाजे और खिड़कियां निर्धारित लक्ष्मण रेखा के साथ खुलने लगीं | राष्ट्रीय और प्रादेशिक स्तरों पर भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आने पर समाचार माध्यमों में संघ की अधिकाधिक चर्चा पक्ष विपक्ष में भी होने लगी | समाचार और कंप्यूटर क्रांति आने के बाद तो पत्र पत्रिकाओं, टेलीविज़न, वेबसाइट , यू टूब, फेसबुक और ट्विटर सहित हर संभव प्रचार माध्यमों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रमुख गतिविधियों की जानकारियां मिलने लगी हैं | यह कहना भी गलत नहीं होगा कि संघ का प्रचार तंत्र भारत में ही नहीं, विश्व के अनेक देशों तक फ़ैल गया है | इस बदलाव को संभव है कि संघ से जुड़ा एक वर्ग अधिक उचित न मानता हो, लेकिन सूचना क्रांति के दौर में संघ के कार्य सार्वजानिक रूप से चर्चित या विवादस्पद भी बने रह सकते हैं | आशा तो यही की जाएगी कि समय के बदलाव के साथ सामाजिक सुधार और भारत के विकास में संघ के सकारात्मक विचारों का लाभ भी समाज को मिलेगा |

बताते हैं कि संघ की शाखाएं 68,651 हो गई। संघ देश के सभी ब्लॉक तक पहुँचने और शाखाओं की संख्या को 100,000 तक ले जाने का लक्ष्य बना रखा है । भाजपा सरकार होने से उसे सिर्फ़ तार्किक रूप से ही फ़ायदा नहीं हुआ , बल्कि समाज में उसकी दृश्यता और स्वीकार्यता भी बढ़ती गई । अयोध्या में भव्य मंदिर निर्माण , कश्मीर से 370 की समाप्ति , परमाणु शक्ति सम्पन सुरक्षा के साथ पाकिस्तान चीन को करारा जवाब देने की क्षमता , आर्थिक आत्म निर्भरता के साथ हिन्दू धर्म , मंदिरों का विश्व में प्रचार प्रसार , समान नागरिक संहिता के लिए राज्यों में पहल जैसे संघ के लक्ष्य प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के बिना क्या पूरे हो सकते थे ?

संघ भाजपा और सरकार के संबंधों को लेकर सितम्बर 2018 में सरसंघचालक मोहन भागवत ने ‘ भविष्य का भारत और संघ का दृष्टिकोण ‘ विषय पर दिल्ली में हुई एक व्याख्यान माला में स्पष्ट रुप से कहा था – ” संघ ने अपने जन्म से ही स्वयं तय किया है कि रोजमर्रा की राजनीति में हम नहीं जाएंगे | राज कौन करे यह चुनाव जनता करती है | हम राष्ट्र हित पर अपने विचार और प्रयास करते हैं | प्रधान मंत्री और अन्य नेता स्वयंसेवक रहे हैं | लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वे नागपुर के निर्देश पर चलते हैं | राजनैतिक क्षेत्र में काम करने वाले कार्यकर्त्ता या तो मेरी आयु वर्ग के हैं या मुझे वरिष्ठ और राजनीति में अधिक अनुभवी हैं | इसलिए उनको अपनी राजनीति चलाने के लिए किसी की सलाह की आवश्यकता नहीं है | यदि उनको सलाह की आवश्यकता होती है तो हम अपनी राय देते हैं | उनकी राजनीति पर हमारा कोई प्रभाव नहीं और सरकार की नीतियों पर भी कोई प्रभाव नहीं | वे हमारे स्वयंसेवक हैं | उनके पास विचार दृष्टि है | अपने अपने कार्यक्षेत्र में उन विचारों का उपयोग करने की शक्ति है | ” कल्पना कीजिये नरेंद्र मोदी संघ में रहकर सरसंघचालक हो सकते थे और मोहन भागवत प्रधान मंत्री भी हो सकते थे | लेकिन उनके लक्ष्य तो समान ही होते | हाँ कौन कितना कहाँ सफल हो सकता है इसलिए सबकी भूमिका परिवार तय करता है | फिर उस दायित्व को सफलता से निभाना है | ” अब अगस्त 2025 में भागवतजी ने एक बार फिर इन बातों को स्पष्ट किया |

शीर्ष स्तर पर संघ के प्रमुख नेता भारत में जन्मे लगभग 98 प्रतिशत लोगों को भारतीय हिन्दू मांनने की बात पर जोर देते रहे हैं , जिसमें सिख , मुस्लिम , ईसाई , बौद्ध आदि शामिल हैं और वे किसी तरह की धार्मिक मान्यता उपासना करते हों | सरसंघचालक प्रो राजेंद्र सिंह ने 4 अक्टूबर 1997 को मुझे एक इंटरव्यू में स्पष्ट शब्दों में कहा था – ” हम यह मानते हैं कि भारत में जो मुसलमान हैं उनमें सी केवल दो प्रतिशत के पूर्वज बाहर से आए थे , शेष के पूर्वज इसी देश के थे | हम उन्हें यह अनुभूति कराना चाहते हैं कि तुम मुसलमान हो पर भारतीय मुसलमान हो | हमारे यहाँ दर्जनों पूजा पद्धतियां है , तो एक तुम्हारी भी चलेगी | इसमें हमें क्या आपत्ति हो सकती है | लेकिन तुम्हारी पहचान इस देश के साथ होनी चाहिए | ”

हाँ निचले स्तर पर कुछ अतिवादी नेता हाल के वर्षों में कटुता की भाषा इस्तेमाल करने लगे | यह निश्चित रुप से न केवल मोदी सरकार की बल्कि भारत की छवि दुनिया में ख़राब करते हैं | उन्हें मोदी का असली दुश्मन कहा जा सकता है |