Captain Amarinder Singh ने अपनी गलतियों से कुर्सी गँवाई

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चंडीगढ़: पंजाब की राजनीति में दो दिन भारी उथल-पुथल का दौर रहा। पहले दिन मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के इस्तीफे का बवाल रहा और दूसरे दिन नए मुख्यमंत्री के नाम को लेकर हंगामा मचा रहा। लेकिन, अचानक जिस कांग्रेस नेता को कुंजी सौंपी गई, वो भी चौंकाने वाला नाम रहा। राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित को इस्तीफा सौंपने के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह ने खुलकर कांग्रेस आलाकमान से अपनी नाराजगी जाहिर की। कैप्टन ने कहा कि मैंने सुबह ही इस्तीफा देने का फैसला कर लिया था। एक महीने में जिस तरह से तीन बार विधायकों की मीटिंग दिल्ली और पंजाब में बुलाई गई थी, उससे साफ था कि आलाकमान को मुझ पर संदेह है। ऐसे में मैंने पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने भविष्य की राजनीति के विकल्प खुले होने की बात कहकर पार्टी छोड़ने के भी संकेत भी दे दिए हैं।

कांग्रेस विधायक दल की बैठक से पहले ही कैप्टन अमरिंदर सिंह (Captain Amarinder Singh) ने पंजाब के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। 48 विधायकों के कथित तौर पर पार्टी आलाकमान को पत्र लिखकर उन्हें हटाने की मांग करने के बाद से ही इस्तीफे की अफवाह आने लगी थीं। इसके चलते पंजाब के पार्टी प्रभारी हरीश रावत ने कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाई। बैठक से पहले ही अमरिंदर सिंह ने राज्यपाल से मुलाकात कर इस्तीफा सौंप दिया।
कैप्टन अमरिंदर सिंह को अपना पद क्यों छोड़ना पड़ा, इसके पीछे भी कुछ कारण है।

आलाकमान अलर्ट

कैप्टन की रेटिंग उनके कार्यकाल के दो साल में ही गिरने लगी थी। 2019 की शुरुआत कैप्टन की लोकप्रियता 19% थी और 2021 की शुरुआत में ये गिरकर 9.8% हो गई। कैप्टन की गिरती लोकप्रियता ने भी पार्टी आलाकमान के कान खड़े कर दिए थे। कांग्रेस ने पिछले कुछ महीनों में कई राज्यों में राज्य इकाई के अध्यक्षों को बदला है। तेलंगाना में रेवंत रेड्डी, महाराष्ट्र में नाना पटोले और केरल में के सुधाकरन जैसे बेहद सक्रिय और लोकप्रिय नेताओं को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। माना जा रहा है कि पार्टी अब नए सिरे से तैयारी में जुटी गई है। इन सभी बदलावों के पीछे राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का सीधा हस्तक्षेप रहा। पंजाब में भी जून में नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब कांग्रेस चीफ बनाया गया। आलाकमान ये मानकर चल रहा था कि सिद्धू और अमरिंदर सिंह मिलकर काम करेंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं और अंत में कैप्टन को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा।

सिद्धू की चाल में उलझे

कैप्टन के धुर विरोधी कहे जाने वाले नवजोत सिंह सिद्धू ने यहां पर नंबर गेम खेला. नवजोत सिंह सिद्धू तीन मंत्रियों की ‘माझा ब्रिगेड’ तृप्त राजिंदर सिंह बाजवा, सुखबिंदर सरकारिया और सुखजिंदर रंधावा को कैप्टन के खिलाफ खड़ा कर दिया। कई मौकों पर, उन्होंने आलाकमान को पत्र भेजे और यहां तक कि सोनिया गांधी के साथ दर्शकों की मांग भी की। जून में तीन सदस्यीय खड़गे पैनल ने सभी विधायकों से मुलाकात के बाद जुलाई में सिद्धू को पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी (PPCC) प्रमुख नियुक्त किया था। लेकिन, दोनों खेमे एक साथ काम नहीं कर सके। आखिरकार पंजाब में कांग्रेस के 80 में से 40 विधायकों ने आलाकमान को पत्र लिखकर विधायक दल की बैठक बुलाने की मांग कर उन्हें हटवा दिया। कैप्टन ने कोशिश की, लेकिन वो विधायकों की संख्या को अपने पक्ष में पूरा करने में नाकामयाब रहे।

कैप्टन के कई पूर्व वफादारों ने भी उनका साथ छोड़ दिया। तृप्त राजिंदर बाजवा, सुखजिंदर रंधावा और सुखबिंदर सरकारिया जैसे नेता जिन्हें ‘माझा एक्सप्रेस’ के रूप में जाना जाता था, वे इस क्षेत्र से आते हैं। माझा एक्सप्रेस ने कैप्टन को बाजवा के खिलाफ गुटीय संघर्ष जीतने में मदद की थी। लेकिन, इस बार उन्होंने भी कैप्टन का साथ छोड़ दिया। उन्हें एहसास हो गया था कि अगर कैप्टन के साथ बने रहे तो वो हार सकते हैं।

राजा समझने की भूल

कैप्टन के खिलाफ सबसे बड़ी शिकायतों में से एक थी उनकी राजशाही वे आदतें। उन तक किसी का पहुंच पाना भी मुश्किल था। शायद ही वे कभी विधायकों या जनता से मिलते कभी देखा गया हो। वे मोहाली के पास अपने फार्महाउस से ही कामकाज संचालित करते थे। पार्टी विधायकों की अक्सर शिकायत रही कि कैप्टन ने उनके अनुरोधों और याचिकाओं पर कार्रवाई नहीं की। ज्यादातर नौकरशाहों पर भरोसा करते थे।