वरिष्ठ आईएएस के नकली हस्ताक्षर!

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क्या यह सही है कि मप्र के अतिरिक्त मुख्य सचिव स्तर के आईएएस अधिकारी को एक रहवासी समिति का सदस्य बनाने के लिए उनके फर्जी हस्ताक्षर किए गए हैं? मामला भोपाल में हाउसिंग बोर्ड द्वारा बनाए गए एक आवासीय परिसर का है। यहां प्रदेश के कई बड़े आईएएस, आईपीएस अधिकारियों ने फ्लैट खरीदे हैं। इस आवासीय परिसर की रहवासी समिति पहले से बनी थी। लेकिन कुछ लोगों ने एक दूसरी समिति का गठन कर लिया। समिति में प्रदेश के एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी को सदस्य बनाया गया। इस अधिकारी की पत्नी भी वरिष्ठ आईएएस हैं। रहवासी परिसर के सदस्यों के वाट्सअप पर अधिकारी की पत्नी ने दावा किया है कि समिति में सदस्य बनने के लिए उनके पति ने हस्ताक्षर नहीं किए हैं। यदि यह सही है तो मामला गंभीर है। नवगठित समिति में प्रदेश के दो रिटायर डीजीपी स्तर के अधिकारी, एक डीजीपी स्तर के अधिकारी का बेटा और कई आईएएस अधिकारी हैं। रहवासी समिति का रजिस्ट्रेशन ऑनलाईन होता है। इसमें सभी सदस्यों के हस्ताक्षर और आधार कार्ड अनिवार्य होते हैं। ऐसे में सवाल यह है कि क्या वाकई वरिष्ठ अधिकारी के हस्ताक्षर फर्जी बनाए गए हैं?

कभी यह आईपीएस सबका चहेता था
मप्र में 1987 केडर के आईपीएस अधिकारी शैलेश सिंह पहले से ही लूप लाईन में चल रहे थे। एक मामूली घटना के बाद राज्य सरकार ने उन्हें “डीप लूप लाईन” यानि पुलिस सुधार शाखा में पदस्थ कर दिया है। पुलिस मुख्यालय में पुलिस सुधार शाखा को अफसर सुधार शाखा के नाम से जाना जाने लगा है। इस शाखा में उन्हीं अधिकारियों की पदस्थापना की जाती है जिनसे सरकार नाराज होती है। बहुत कम लोग जानते हैं कि एक समय ऐसा था जब शैलेश सिंह मप्र के सबसे ईमानदार, होनहार व योग्य अधिकारियों में गिने जाते थे। पुलिस अधीक्षक दतिया से जब उन्हें हटाया गया तो दतिया की जनता ने तीन दिन बाजार बंद रखकर उनके प्रति आदर व्यक्त किया था। इसी तरह छिंदवाड़ा में शैलेश सिंह की एसपी के रूप में ऐसी पहचान बनी कि बड़े-बड़े नेता भी उनके नाम से घबराते थे। शैलेश सिंह जहां भी रहे उन्होंने अपनी कार्यशैली से अलग छाप छोड़ी। पिछले कुछ साल से उनकी सरकार से पटरी नहीं बैठ रही। शिवराज हों या कमलनाथ दोनों ने ही शैलेश सिंह से बराबर दूरी बना रखी है।

दो नंबर की कमाई, अवैध आशियाने!
भोपाल के लो डेनसिटी क्षेत्र में एक शानदार कॉलोनी बनाई गई है। इस कॉलोनी में प्रदेश के कई वरिष्ठ अधिकारियों सहित उद्योगपति और व्यवसायियों के महलनुमा बंगले तेजी से बन रहे हैं। ताजा खबर यह है कि इस कॉलोनी को बनाने वाले बिल्डर के मोबाइल का डाटा जांच एजेंसियों के पास पहुंच गया है। इस डाटा पर भरोसा किया जाए तो इस कॉलोनी में जितनी राशि में प्लॉट बेचे गए हैं उससे लगभग दुगनी राशि दो नंबर में दी गई है। यानि इस कॉलोनी में 2 नंबर के पैसे का बड़े पैमाने पर उपयोग किया गया है। मजेदार बात यह है कि नगर एवं ग्राम निवेश विभाग ने इस कॉलोनी में 10 हजार वर्गफीट पर 600 वर्गफीट निर्माण की अनुमति दी है। जबकि लगभग पूरी कॉलोनी में 10 हजार वर्ग फीट के प्लॉट पर 6 हजार वर्गफीट से ज्यादा का निर्माण किया जा रहा है। यानि प्रदेश के प्रभावशाली अफसर, उद्योगपति और व्यवसायी नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं, लेकिन किसी एजेंसी की हिम्मत इधर देखने की नहीं है।

डॉ. आनंद राय को तगड़ा झटका
कुछ साल पहले तक मप्र में जय आदिवासी युवा संगठन, यानि जयस को कोई जानता नहीं था।शिक्षित आदिवासी युवा डॉ. हीरा अलावा ने झाबुआ, अलीराजपुर, धार आदि क्षेत्रों के आदिवासी युवाओं को एकत्रित कर जयस की स्थापना की। जयस को पहचान देने का काम गैर आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. आनंद राय ने किया। पिछले पांच साल में इस संगठन ने प्रदेश में अपनी शानदार उपस्थिति दर्ज करा दी है। पिछले विधानसभा चुनाव में इस संगठन की ताकत को देखते हुए कांग्रेस ने डॉ. हीरा अलावा को टिकट देकर विधानसभा पहुंचाया था। गैर आदिवासी होने के बाद भी संगठन के अधिकांश निर्णयों में डॉ. आनंद राय की अहम भूमिका रहती थी। लेकिन अब हालात बदल गए हैं। संगठन के ही कुछ प्रमुख पदाधिकारियों ने डॉ. आनंद राय पर लेनदेन के आरोप लगा दिए। डॉ. आनंद राय ने भी आरोप लगाने वालों को कानूनी नोटिस थमा दिया है। खबर है कि डॉ. हीरा अलावा और डॉ. आनंद राय के बीच खाई इतनी बढ़ गई है कि आखिर आनंद राय को जयस छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा है। डॉ. राय अपनी नई पारी पिछड़ा वर्ग महासंघ के प्रवक्ता के रूप में शुरू करने जा रहे हैं।

संघ की कृपा से आईएएस को राहत
संघ के एक पुराने पदाधिकारी की कृपा से प्रदेश के एक वरिष्ठ रिटायर आईएएस अधिकारी को बड़ी राहत मिली है। इस अधिकारी की पहचान हिन्दुत्ववादी व्यक्तित्व के रूप में रही है। उनके रिटायर होने से काफी पहले से अटकलें लगाई जा रही थीं कि रिटायर होते ही उन्हें भाजपा सत्ता या संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिल सकती है। यही कारण है कि उनके विरोधी पहले से सक्रिय हो गए। रिटायर होने से पहले ही उनकी शिकायतें जांच एजेंसियों तक पहुंचा दी गईं। मुख्यमंत्री से उनकी दूरी बढ़ाई गईं। अब खबर आ रही है कि संघ के एक बड़े नेता ने इस अधिकारी की पैरवी की है और उनकी योग्यता का लाभ लेने को भी कहा है। फिलहाल खबर आ रही है कि संघ के नेता के रूख को देखते हुए जांच एजेंसियों ने इस अधिकारी की फाईल हमेशा के लिए बंद कर दी है। अब देखना है कि भाजपा सरकार या संगठन इस अधिकारी का कितना उपयोग कर पाते हैं।

कम्प्यूटर की राह पर मिर्ची!
क्या वाकई मप्र में जो हाल कम्प्यूटर बाबा का हुआ वैसा ही मिर्ची बाबा का होगा? यह सवाल राजनीतिक गलियारों में तब से चर्चा का विषय बना, जब कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ एक विशेष अनुष्ठान करने मिर्ची बाबा के आश्रम में पहुंचे। आजकल मिर्ची बाबा भी कम्प्यूटर बाबा की तरह कांग्रेस के एजेंडे पर काम कर रहे हैं। पिछले दिनों ग्वालियर में उन पर हमला भी हुआ। इसके बाद उन्हें जान से मारने की धमकियां भी मिली हैं। लेकिन बाबा ने अपना एजेंडा नहीं छोड़ा है। वे लगातार राज्य सरकार पर हमलावर बने हुए हैं। लगभग ऐसा ही काम कुछ साल पहले कम्प्यूटर बाबा कर रहे थे। सरकार ने उनके इंदौर स्थित आश्रम पर बुलडोजर चलाया और बाबा को जेल में डाला तो बाबा आज तक सार्वजनिक मंच पर दिखाई नहीं दिए हैं। अब खबर आ रही है कि शासन-प्रशासन कम्प्यूटर बाबा की तरह ही मिर्ची बाबा पर निगाह टिका कर बैठा है।

और अंत में….
देश के जाने माने उद्योगपति गौतम अडानी अब मीडिया फील्ड में हाथ अजमाने जा रहा है। खबर है कि इस उद्योगपति की इच्छा देश के एक बड़े समाचार पत्र समूह को खरीदने की है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि गौतम अडानी ने लंबे समय से नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के खिलाफ कलम चलाने वाले पत्रकार संजय पुगलिया को अपने मीडिया हाउस का सर्वेसर्वा बनाकर ज्वाइन करा लिया है। गौतम अडानी और संजय पुगलिया की मप्र में सक्रियता बढ़ती जा रही है। खबर है कि मप्र में अडानी मीडिया का बड़ा सेंटर बनाने की फिराक में है। देखना है कि अडानी ग्रुप मीडिया क्षेत्र में कितना सफल रहता है?