“उड़ता मध्यप्रदेश” बनने का डर …!

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होशंगाबाद रोड पर सुरेंद्र लैंडमार्क के पास शराब की दुकान और पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती का आमना-सामना मंगलवार को हो गया। इसके बाद “नशा मुक्ति” का उमा का दर्द एक बार फिर जुबां पर आ गया। वहां बैठकर उन्होंने अपने मन की बात वहां मौजूद लोगों से कर ली। उसमें शराब दुकान चलाने वाला कोई शख्स भी शायद मौजूद रहा होगा, क्योंकि साध्वी ने यह कहा कि हमारा विरोध तुमसे नहीं बल्कि शराब की नीति से है।
उन्होंने सहानुभूति जताई अहाते में शराब पीने वालों के परिवार से और आक्रोश जताया व्यवस्था पर। आंखों देखी मक्खी निगली नहीं जाती। उमा की चिंता भी यही थी कि अहाता पर शराब पीने के बाद यह लोग अपने घर तक कैसे पहुंचते हैं? क्या यह लोग खुद वाहन चलाकर जाते हैं? यदि हां, तो फिर शराब पीकर वाहन चलाने का कानून तोड़ते हैं।

 



जिस पर पुलिस भारी जुर्माना लगाती है, तब पुलिस अहाते में बैठकर शराब पीने के बाद वाहन चलाने वाले शराबियों पर कार्यवाही क्यों नहीं करती? सवाल बिल्कुल जायज है। तो आगे यह भी चिंता कि अहाते में बैठकर शराब पीने वालों को घर पहुंचाने की व्यवस्था हो,तो पीने वालों को नशे में वाहन न चलाना पड़े। बात यह भी सही है। यदि शराब के नशे में वाहन चलाते हुए दुर्घटना में कोई मरता है, तब भी पीड़ा तो परिवार को ही भुगतनी पड़ती है।
तो चिंता उस शराबी की भी है कि शराब पीने से उसके लीवर, किडनी खराब होते हैं…तब भी परिवार ही प्रभावित होता है। पैसों की बर्बादी से भी घर की महिलाओं-बच्चों का जीवन बर्बाद होता है। यह भी परिवार को मुसीबत में डालता है। हर बात सही है। इसी बीच भीड़ में खड़े कुछ बोलने की कोशिश कर चुके व्यक्ति को उमा भारती अवसर देती है कि क्या बोल रहे थे बोलो…।
uma bharti
उधर से आवाज आती है कि दीदी आप मुख्यमंत्री बन जाओ। दीदी का जवाब कि मुझे आप अच्छे लग रहे हो, आपको ही मुख्यमंत्री बनाऊंगी। लोग हंसने लगते हैं और माहौल हल्का हो जाता है। व्यक्ति फिर तर्क रखता है कि आप ही मुख्यमंत्री बनकर शराब दुकानें बंद करा सकती हो दीदी। उमा भारती साफ करती हैं कि शिवराज जी ही यह काम करेंगे, चिंता मत करो।
बात यहां खत्म नहीं होती। वहां उपस्थित लोगों को संबोधित कर उमा जिम्मेदारी देती हैं कि अहाता में शराब पीकर घर जाने वालों की रिकार्डिंग करो। मैं तीन दिन बाद फिर आऊंंगी और रात भर यहीं रुकूंगी। यानि कि तीन दिन तक शराब दुकान और अहाता चलाने वालों की जान सांसत में रहेगी, तो पुलिस-प्रशासन और आबकारी अमले की धड़कनें भी बढ़ी रहेंगीं।
साथ ही प्रदेश में शराब की दुकान संचालित करने के एवज में करोड़ों रुपए सरकार को अर्पित करने वाले शराब ठेकेदारों को चैन की नींद नहीं सोने देगा दीदी का नशा मुक्ति अभियान। उमा भारती और सरकार रूपी दो पाटों के बीच में शराब ठेकेदार खुद को घुन की तरह पिसा हुआ महसूस कर रहा है। उमा का विरोध नीति को लेकर है, तो सरकार की नीति पर शराब ठेकेदार (मुनाफा हो या घाटा) अमल कर रहा है और भारी फीस राजस्व के बतौर चुकाने को राजी भी है और मजबूर भी।


फिलहाल मध्यप्रदेश में हास्यास्पद स्थिति शराब ठेकेदारों की बनी हुई है।तो पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती केंद्र और प्रदेश सरकार के रवैये से खुद को ठगा हुआ महसूस कर रही हैं। उनका दर्द है कि सवा महीने पहले केंद्र को अवगत करा दिया था, पर कुछ नहीं हुआ। फिर वह रामचरित मानस का वह दोहा भी सुनाती हैं कि “विनय न मानत जलधि जड़ गए तीन दिन बीति, बोले राम सकोप तब भय बिनु होई न प्रीति।” यह दर्द भी है और चेतावनी भी। कहीं यह आने वाले समय में फिर पत्थर की गूंज की आहट तो नहीं या फिर उससे एक कदम आगे कोई दूसरा दृश्य !
खैर उमा भारती के लिए नशा मुक्ति अब सामाजिक सरोकार का बड़ा मुद्दा बन गया है। मांग यही है कि कम से कम सारे अहाते बंद कर दिए जाएं। स्कूल के पास स्थित शराब दुकानें स्कूल का समय खत्म होने के बाद ही खोली जाएं। स्कूल, अस्पताल, मंदिर और अदालतों के आसपास दुकानें न हों। वह अहाते के सामने बैठकर पंजाब का उदाहरण भी देती हैं कि वहां पहले लोग शराब पीते थे। जब शराब का नशा कम पड़ने लगा, तो दूसरे नशों में पंजाब के लोग डूबकर बर्बाद हो गए। यानि कि उड़ता पंजाब बन गया। शायद उमा के मन में डर यही है कि हमारा ह्रदयप्रदेश कहीं “उड़ता मध्यप्रदेश” न बन जाए…! तीन दिन बाद देखते हैं कि उमा का अगला कदम तय रणनीति पर अमल का होगा या फिर इसमें कुछ बदलाव दिखेगा!