IAS अफसर ने मांओं को कटघरे में खड़ा किया!
देश में महिला कल्याण और सशक्तिकरण के सबसे बड़े पैरोकार के रूप में पहचाने जाने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सामने अगर उनका ही मातहत एक वरिष्ठ अधिकारी महिलाओं को लेकर कोई आपत्तिजनक बयान दे, तो उसे आप क्या कहेंगे!
मध्यप्रदेश में यह शायद पहला मौका है, जब किसी अपर मुख्य सचिव ने अपने ही विभाग के कार्यक्रम में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ मंच शेयर करते हुए ऐसी बात कही जिससे बवाल मच गया। उन्होंने महिलाओं को लेकर जो टिप्पणी की, वो इतनी आपत्तिजनक थी कि विरोधी पार्टी कांग्रेस तो क्या सत्तासीन पार्टी भाजपा ने भी इसका विरोध किया।
‘लाड़ली लक्ष्मी योजना’ के दूसरे चरण की लॉन्चिंग में ACS अशोक शाह ने माइक से बोलते हुए जो कहा वो बेटी विरोधी, माता विरोधी और मध्यप्रदेश की मातृशक्ति की छवि खराब करने वाला माना गया। उन्होंने जो कहा उसका कोई तथ्यात्मक आधार भी शायद नहीं होगा! लेकिन, उन्होंने अपने भाषण में जिस तरह की बातें कही वो निश्चित रूप से समूची महिला बिरादरी की छवि धूमिल करने के लिए काफी है। मुख्यमंत्री जो मंच पर मौजूद थे, उन्होंने भी अपनी सरकार के इस बड़े अधिकारी के ‘उच्च विचार’ सुने ही होंगे! लेकिन, उन्होंने बड़प्पन दिखाते हुए कहा कि मैंने हल्ला होने के कारण उनकी बातों को नहीं सुना! लेकिन, जब बाद में उन्हें बात पता चली होगी तो अच्छा तो नहीं लगा होगा!
अब जानिए कि उन्होंने ऐसा क्या कहा जो महिलाओं के लिए बेहद लज्जास्पद था। उन्होंने महिलाओं को संबोधित करते हुए कहा ‘कृपया आप परिवार में इस बात पर विशेष ध्यान दें कि हमारी बालिकाएं पीछे क्यों रह जाती हैं! इसका कारण यह कि 2005 में सिर्फ 15% माताएं बेटियों को दूध पिलाती थीं। थोड़ी खुशी की बात की यह है कि आज 42% माताएं अपनी बेटियों को दूध पिलाती हैं। अगर जन्म के 6 महीने तक बेटियों को मां का दूध नहीं मिलता, तो वे हर दृष्टिकोण में पीछे रह जाती हैं। मैं ये नहीं कहता कि बेटों को दूध न पिलाओ, मैं ये कहता हूं कि बेटियों को भी पिलाना चाहिए, ये प्रण लेना पड़ेगा।’
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अब सवाल यह उठता है कि आखिर वे साबित क्या करना चाहते थे! उनके कहने का सीधा आशय तो यह हुआ कि समाज में मां अपनी बेटियों को स्तनपान नहीं करवाती, सिर्फ बेटों को ही करवाती है! उन्होंने एक आंकड़ा भी पेश किया कि 17 साल पहले सिर्फ 15% माताएं बच्चियों को स्तनपान करवाती थी, अब वो बढ़कर 42% हो गया। जबकि, किसी भी दृष्टि से देखा जाए, तो इस तरह की विचारधारा महिलाओं को अपमानित करती है। कोई अफसर मंच से महिलाओं का सामूहिक अपमान कैसे कर सकता है! जबकि, सब जानते हैं कि महिलाओं और बच्चियों के प्रति मुख्यमंत्री बेहद संवेदनशील हैं। जिस कार्यक्रम के मंच से उन्होंने ये बात कही वो भी ‘लाड़ली लक्ष्मी योजना’ का ही आयोजन था। वे यह मान रहे थे कि उनके इस बयान से मुख्यमंत्री खुश होंगे और उन्हें वाहवाही मिलेगी, लेकिन बिना सोचे समझे और सरकार की नीति का ध्यान रखें, उनका यह बयान स्वयं उनके, मुख्यमंत्री और सरकार के लिए उल्टा पड़ गया। इतने वरिष्ठ IAS अधिकारी और विभागीय मुखिया होने के बावजूद क्या उन्हें इस बात का जरा भी आभास नहीं था, कि यह बयान महिलाओं के लिए आपत्तिजनक और अपमानजनक माना जाएगा?
उनकी बात कितनी लज्जास्पद थी, इस बात का पता इससे चलता है, कि एमपी की पूर्व महिला मुख्यमंत्री और भाजपा की फायर ब्रांड नेता उमा भारती ने भी अशोक शाह के बयान की घोर निंदा की। उन्होंने तो मुख्यमंत्री को भी इस मामले की शिकायत की! लेकिन, मुख्यमंत्री ने अपनी ही सरकार के अफसर को बचाने की गरज से बात को टाल दिया कि हो-हल्ले की वजह से मैं ठीक से सुन नहीं पाया! पर, उमा भारती ने जो कहा वो सामाजिक दृष्टिकोण से सही भी है। उन्होंने कहा कि यह बात बेटी विरोधी, माता विरोधी और मध्यप्रदेश की मातृशक्ति की छवि खराब करने वाली बात है। उनका कहना था कि अधिकारियों को ऐसे बयानों के प्रति सचेत और जिम्मेदार रहना चाहिए। अमीर हो या गरीब, बेटा हो या बेटी, बच्चे के जन्मते ही हर मां अपने बच्चे को दूध पिलाती ही है। लाखों में एक केस में किसी कारण से ऐसा नहीं होता होगा। आखिर सारी महिलाएं भी किसी की बेटियां ही तो हैं, वो जिंदा कैसे रह गईं!
जबकि, कांग्रेस प्रवक्ता का कहना है कि एक अधिकारी महिलाओं के लिए इतना लज्जाजनक और अपमानजनक बयान कैसे दे रहे हैं। मुख्यमंत्री जी आपकी मौजूदगी में आपके विभाग के यह प्रमुख अधिकारी महिलाओं के लिए ऐसा बयान दे रहे हैं! जरा इनसे पूछिए कि यह जानने का विभाग के पास कौन सा पैमाना है, कि कौन सी मां बच्ची को स्तनपान कराती है और कौन सी नहीं! आंकड़ा ये कहां से लाए!
अशोक शाह 1990 बैच के IAS अधिकारी हैं और अगले साल जनवरी में रिटायर हो रहे हैं। लेकिन, नौकरी से जाने से तीन महीने पहले उन्होंने सरकार को एक नई मुसीबत में डाल दिया। अब सरकार को कई दिनों तक उनके इस बयान पर लीपापोती करना पड़ेगी और उनके बयान का सकारात्मक पक्ष सामने लाना होगा कि उनके कहने का मतलब ये नहीं, ये था! क्योंकि, विभाग भी सरकार का है और अफसर भी!
सबसे बड़ी बात तो यह कि जिस तरह मुख्यमंत्री आजकल अधिकारियों को उनकी गलती की सजा दे रहे हैं, क्या अशोक शाह पर भी कार्रवाई होगी! इंदौर के एक IAS अफसर को सिर्फ एक विकलांग व्यक्ति के साथ असंवेदनशीलता दिखाने पर हटा दिए गए!… तो क्या अशोक शाह का कथन उस श्रेणी का असंवेदनशील नहीं है! उन्होंने तो प्रदेश की उन सारी मांओं को कटघरे खड़ा कर दिया और उनको आंकड़ों में भी बांट दिया! जिन मांओं पर उंगली उठाई गई, क्या उनकी मां ने उनको स्तनपान नहीं कराया था!