Supreme Court’s decision on demonetisation:नोटबंदी पर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला
भारत का सुप्रीम कोर्ट नोटबंदी के ख़िलाफ़ दायर 58 याचिकाओं पर कई हफ़्तों तक सुनवाई करने के बाद सोमवार को फ़ैसला सुनाने जा रहा है.
केंद्र सरकार ने साल 2016 में 8 नवंबर की शाम एकाएक 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद कर दिया था.
पीएम मोदी ने स्वयं देश के नाम जारी अपने संदेश में इस फ़ैसले का एलान किया था.
इसके बाद कई हफ़्तों तक देश भर में बैंकों और एटीएम के सामने पुराने नोट बदलकर नए नोट हासिल करने वालों की लंबी क़तारें देखी गयी थीं.
अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक़, सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने इस मामले में केंद्र सरकार, रिज़र्व बैंक और याचिकाकर्ताओं की दलीलों को विस्तार से सुनने के बाद बीते सात दिसंबर को अपना फ़ैसला सुरक्षित कर लिया था.
सुप्रीम कोर्ट की इस पीठ में जस्टिस एस बोपन्ना और वी रामसुब्रमण्यम भी शामिल हैं जिन्होंने पिछले दिनों केंद्र सरकार और आरबीआई से वो दस्तावेज़ पेश करने के लिए कहा था जिनके आधार पर नोटबंदी का फ़ैसला लिया गया था.
जस्टिस नज़ीर दो दिन बाद चार जनवरी, 2023 को सेवानिवृत्त होने वाले हैं.
नोटबंदी के अलग-अलग पहलुओं को चुनौती देने वाली इन 58 याचिकाओं पर सुनवाई शुरू करने से पहले केंद्र सरकार ने इन्हें अकादमिक मुद्दा क़रार दिया था.
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ‘यदि मुद्दा अकादमिक है तो अदालत का समय बर्बाद करने का कोई मतलब नहीं है. क्या हमें समय बीतने के बाद इसे इस स्तर पर उठाना चाहिए?’
इस पर याचिकाकर्ताओं के वकील की ओर से दलील दी गयी थी कि ‘इस मामले में आरबीआई क़ानून 1934 की धारा 26(2) का इस्तेमाल किया गया है.’
याचिकाकर्ताओं की ओर से सवाल उठाया गया था कि क्या इस क़ानून का इस मामले में इस तरह इस्तेमाल किया जा सकता है.
आरबीआई एक्ट की धारा 26(2) के तहत, ‘केंद्र सरकार आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की अनुशंसा पर भारतीय राजपत्र में एक अधिसूचना जारी करके बैंक नोटों की किसी भी सिरीज़ को आम लेन-देने के लिए अमान्य ठहरा सकती है. हालांकि, अधिसूचना में बताई गई संस्था में ऐसे नोट अधिसूचित अवधि तक मान्य रहेंगे.’
याचिकाकर्ताओं की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए वरिष्ठ वकील पी चिदंबरम ने कहा था कि आरबीआई एक्ट की इस धारा के तहत नोटबंदी की अनुशंसा आरबीआई से आनी चाहिए थी, लेकिन इस मामले में केंद्र सरकार ने आरबीआई को सुझाव दिया था जिसके बाद उसने इस फ़ैसले की अनुशंसा की.
उन्होंने कहा था कि इससे 1946 और 1978 में नोटबंदी करने के लिए सरकारों को संसद में क़ानून पारित करवाना पड़ा था.
चिदंबरम ने इस मामले में केंद्र सरकार पर नोटबंदी के फ़ैसले से जुड़े दस्तावेज़ों को कोर्ट के सामने नहीं रखने का आरोप भी लगाया है.
उन्होंने ये भी सवाल उठाया था कि क्या सेंट्रल बोर्ड की मीटिंग में नियमों के तहत न्यूनतम सदस्यों की संख्या वाली शर्त पूरी की गयी थी.
आरबीआई की ओर से कोर्ट में पेश हुए वरिष्ठ वकील जयदीप गुप्ता ने कहा था कि ‘ये धारा प्रक्रिया शुरू होने पर बात नहीं करती है. ये बस इतना कहती है कि प्रक्रिया इस धारा में रेखांकित किए गए अंतिम चरणों के बिना पूरी नहीं होगी.’
इसके साथ ही उन्होंने कहा कि ‘हमने इसकी अनुशंसा की थी.’
अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने इस फ़ैसले से जुड़ी वजहें समझाते हुए कहा था कि नोटबंदी कोई अकेला क़दम नहीं था बल्कि एक व्यापक आर्थिक नीति का हिस्सा था, ऐसे में ये संभव नहीं है कि आरबीआई और सरकार अलग-थलग रहकर काम करती रहें.
उन्होंने कहा था कि ‘वे (आरबीआई और केंद्र सरकार) एक-दूसरे के साथ सलाह-मशविरा करते हुए काम करते हैं.’
इससे पहले लिए गए नोटबंदी के फ़ैसलों पर आरबीआई के वकील जयदीप गुप्ता ने कहा कि इन मामलों में सरकार ने क़ानून बनाया था क्योंकि आरबीआई ने संबंधित प्रस्तावों पर हामी नहीं भरी थी.
उन्होंने आरबीआई की ओर से अदालत में दस्तावेज़ पेश न किए जाने से जुड़े आरोपों का भी खंडन किया.
आरबीआई ने ये भी बताया कि सेंट्रल बोर्ड मीटिंग के दौरान आरबीआई जनरल रेगुलेशंस, 1949 की कोरम (बैठक में एक निश्चित सदस्यों की संख्या) से जुड़ी शर्तों का पालन किया गया.
रिज़र्व बैंक ने बताया है कि इस बैठक में आरबीआई गवर्नर के साथ-साथ दो डिप्टी गवर्नर और आरबीआई एक्ट के तहत नामित पांच निदेशक शामिल थे. ऐसे में क़ानून की उस शर्त का पालन किया गया था जिसके तहत तीन सदस्य नामित होने चाहिए.
चिदंबरम की ओर से तर्क दिया गया था कि सरकार आरबीआई क़ानून की धारा 26(2) के तहत एक विशेष मूल्य के सभी नोटों को बंद नहीं कर सकती. उन्होंने कोर्ट से कहा कि आरबीआई क़ानून की धारा 26(2) की दोबारा व्याख्या करने का आग्रह किया जाएगा ताकि इस धारा में दर्ज शब्द ‘किसी भी’ को ‘कुछ’ के रूप में पढ़ा जाए.
इसका विरोध करते हुए जयदीप गुप्ता ने कहा कि इस तरह की व्याख्या सिर्फ़ भ्रम पैदा करेगी.
उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता इस अदालत से मांग कर रहे हैं कि यह केंद्र सरकार की उस शक्ति को छीन ले, जिसके ज़रिए वह आरबीआई के सुझाव पर अति मुद्रास्फीति जैसे मौकों पर चलन में मौजूद समूची मुद्रा को वापस ले सकती है.
उत्तर प्रदेश में कफ़ सिरप को लेकर अलर्ट जारी
गांबिया और उज़्बेकिस्तान में भारत में बने कफ़ सिरप को लेकर सवाल खड़े होने के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने सभी ड्रग इंस्पेक्टरों को कफ़ सिरप पर निरंतर निगरानी रखने के निर्देश दिए हैं.
अमर उजाला में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक़, राज्य सरकार ने सभी ज़िलों में थोक एवं फुटकर विक्रेताओं के यहां से नियमानुसार कफ़ सिरप के सैंपल लेने के निर्देश दिए हैं ताकि किसी कंपनी के कफ़ सिरप मानक के अनुसार न हों तो सुधार करवाया जा सके.
गाम्बिया के बाद उज्बेकिस्तान ने भारत निर्मित कफ़ सिरप पर संदेह जताया है. यह सिरप ग़ाज़ियाबाद में बना था. ऐसे में खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग अलर्ट हो गया है, क्योंकि सर्दी के मौसम में अलग-अलग कंपनियों के कफ़ सिरप की खपत बढ़ गई है.
ऐसे में एफ़एसडीए के उप आयुक्त (ड्रग) एके जैन ने सभी ड्रग इंस्पेक्टरों से हर स्तर पर निगरानी करते रहने के निर्देश दिए हैं. उन्होंने निर्देश दिया है कि एक ही कंपनी के सैंपल अलग-अलग ज़िलों की दुकानों से लेते समय यह ध्यान रखें कि बैच नंबर अलग हो, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा बैच नंबर की जांच की जा सके. यदि कोई बैच नंबर मानकों के मुताबिक़ नहीं हो तो उसे ब्लैक लिस्टेड किया जाएगा.
उप आयुक्त ने दुकानदारों से अपील की है कि थोक दुकानों से कफ़ सिरप लेते समय बिल वाउचर दुरुस्त रखें.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अक्तूबर में हरियाणा की कंपनी मेडेन फ़ार्मास्यूटिकल लिमिटेड की ओर से बनाए गए चार कफ़ सिरप को लेकर अलर्ट जारी किया गया था. इसमें प्रोमेथाजिन ओरल सॉल्यूशन, कोफेक्समालिन बेबी कफ़ सिरप, मकॉफ़ बेबी कफ़ सिरप और मैग्रीप एन कोल्ड सिरप शामिल हैं.
इन चारों सिरप में डायथिलीन ग्लाइकॉल और एथिलीन ग्लाइकॉल की मात्रा सही नहीं पाई गई थी. सिरप में इन पदार्थों के होने से पेट दर्द, पेशाब न होने, किडनी की समस्या, मानसिक स्थिति गड़बड़ाने सहित अन्य तरह की समस्याएं होती हैं.
ऐसे में ड्रग इंस्पेक्टरों ने इन चारों सिरप पर भी नजर रखने का निर्देश दिया है. हालांकि, पहले हुई जांच में ये सिरप उत्तर प्रदेश के बाज़ार में नहीं मिले थे. बताया गया था कि ये सिरप सिर्फ निर्यात के लिए बनाए गए थे.
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण :सरकार को जीएसटी से मिले 1.49 लाख करोड़, 15 फ़ीसद बढ़त
भारतीय वित्त मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक़, पिछले महीने सरकार का जीएसटी कलेक्शन 15 प्रतिशत बढ़कर 1.49 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गया.
अंग्रेजी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक़, बीते नवंबर में टैक्स कलेक्शन से लगभग 1.46 लाख करोड़ रुपये हासिल हुए थे.
वित्त मंत्रालय ने एक बयान में कहा, “दिसंबर 2022 के दौरान सकल जीएसटी राजस्व 1,49,507 करोड़ रुपये है. इसमें सीजीएसटी 26,711 करोड़ रुपये, एसजीएसटी 33,357 करोड़ रुपये, आईजीएसटी 78,434 करोड़ रुपये (माल के आयात पर एकत्र 40,263 करोड़ रुपये सहित) और उपकर 11,005 करोड़ रुपये (माल के आयात पर एकत्र 850 करोड़ रुपये सहित) है.’
दिसंबर 2022 में राजस्व संग्रह पिछले साल की तुलना में 15 प्रतिशत अधिक है. पिछले साल इसी अवधि में जीएसटी कलेक्शन 1.30 लाख करोड़ रुपये रहा था. दिसंबर 2022 में माल के आयात से राजस्व आठ प्रतिशत बढ़ा, जबकि घरेलू लेन-देन से राजस्व (सेवाओं के आयात सहित) सालाना आधार पर 18 प्रतिशत बढ़ा.
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source:bbc.com/hindi