

AIIMS Bhopal Created History: एम्स भोपाल में मध्य भारत की पहली कृत्रिम जबड़ा प्रत्यारोपण सर्जरी, 62 वर्षीय महिला को मिला नया जीवन
संस्थान ने मध्य भारत में पहली बार कृत्रिम जबड़ा प्रत्यारोपण सर्जरी (Artificial Jaw Replacement Surgery) को सफलतापूर्वक अंजाम दिया।। 3डी प्रिंटर से जबड़ा बनाकर 3 की जगह 1 घंटे में कर दिया जटिल ऑपरेशन, रिकवरी भी जल्दी हो गई … 3डी प्रिंटर से बना जबड़ा इस सर्जरी में एक खास तरह के कंप्यूटर से बने टाइटेनियम इम्प्लांट का इस्तेमाल किया गया, जिसने एक 62 वर्षीय महिला को नया जीवन दिया है। यह सर्जरी पूरी तरह से कंप्यूटर की मदद से प्लान की गई थी, जो मरीजों के लिए बेहतर और सटीक सर्जरी की दिशा में एक बड़ा कदम है। सर्जरी के बाद महिला मरीज की हालत में शानदार सुधार देखा गया है। अब वे बिना किसी परेशानी के बोल पा रही हैं और भोजन भी कर पा रही हैं।
62 साल की महिला को मिली नई उम्मीद
62 वर्षीय मरीज, मंसौर, मध्य प्रदेश की निवासी, पिछले कई वर्षों से जबड़े की गंभीर समस्याओं से पीड़ित थी। उनकी स्थिति ने उनके जीवन की गुणवत्ता को बुरी तरह प्रभावित किया था। उन्हें निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था: गंभीर जबड़े का दर्द: जो दैनिक गतिविधियों को असंभव बना रहा था। चेहरे की विकृति: जिसके कारण सामाजिक और मनोवैज्ञानिक समस्याएं उत्पन्न हो रही थीं। खाने और बोलने में असमर्थता: जिससे उनकी पोषण और संवाद की क्षमता प्रभावित हुई थी।
गंभीर जबड़े का दर्द: जो दैनिक गतिविधियों को असंभव बना रहा था। चेहरे की विकृति: जिसके कारण सामाजिक और मनोवैज्ञानिक समस्याएं उत्पन्न हो रही थीं। खाने और बोलने में असमर्थता: जिससे उनकी पोषण और संवाद की क्षमता प्रभावित हुई थी।
मरीज ने पहले एक निजी अस्पताल में दो बार पारंपरिक टाइटेनियम प्लेट्स के जरिए जबड़े का पुनर्निर्माण करवाया था, लेकिन दोनों प्रयास असफल रहे और प्लेट्स टूट गईं। इसके बाद उन्होंने देश के कई प्रमुख अस्पतालों में परामर्श लिया, लेकिन उनकी जटिल स्थिति के लिए कोई उपयुक्त समाधान नहीं मिला। पारंपरिक उपचार विधियां उनकी स्थिति को ठीक करने में असमर्थ थीं, जिसके कारण मरीज और उनके परिवार की उम्मीदें टूट चुकी थीं।
ठोस टाइटेनियम ब्लाक से बनाया इम्प्लांट
यह इम्प्लांट एक ठोस टाइटेनियम ब्लाक से बनाया गया, जो पारंपरिक 3डी प्रिंटेड इम्प्लांट्स से ज्यादा मजबूत और लंबे समय तक चलने वाला होता है। डा. सोनी ने बताया कि इम्प्लांट सही बैठे, यह सुनिश्चित करने के लिए हमने मरीज के जबड़े का 3डी प्रिंटेड माडल बनाया और उस पर इम्प्लांट की जांच की। यह केस बहुत ही जटिल था और हर कदम पर खास सावधानी बरतनी पड़ी। प्रो. मोहम्मद यूनुस (प्रमुख, ट्रामा एवं आपातकालीन चिकित्सा) और डॉ. सौरभ की देखरेख में डॉ. सोनी और उनकी टीम ने यह सर्जरी सफलतापूर्वक की।यह जटिल सर्जरी मप्र के मंदसौर की रहने वाली 62 वर्षीय एक महिला पर की गई। यह महिला लंबे समय से जबड़े के गंभीर दर्द, चेहरे की बनावट में बदलाव और खाने-पीने व बोलने में बहुत ज़्यादा परेशानी से जूझ रही थीं। इससे पहले उन्होंने एक निजी अस्पताल में दो बार पारंपरिक टाइटेनियम प्लेट्स से जबड़े का पुनर्निर्माण (रिकंस्ट्रक्शन) करवाया था, लेकिन दोनों बार प्लेट्स टूट गईं और सर्जरी सफल नहीं हो पाई। कई अस्पतालों में सलाह लेने के बाद भी उन्हें कोई राहत नहीं मिली, तब उन्होंने एम्स भोपाल के ट्रामा एवं आपातकालीन विभाग से संपर्क किया।
डॉ. बीएल सोनी (मैक्सिलोफेशियल सर्जन) के नेतृत्व में डॉक्टरों की एक खास टीम ने मरीज की स्थिति का गहराई से अध्ययन किया और एक नया खास समाधान ढूंढा।
इस प्रक्रिया में वर्चुअल सर्जिकल प्लानिंग (कंप्यूटर पर सर्जरी की योजना बनाना) और सटीक मिलिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया। डॉ. बीएल सोनी को कंप्यूटर की मदद से चेहरे के पुनर्निर्माण का दस साल से ज़्यादा का अनुभव है, उन्होंने मरीज की मेडिकल इमेजिंग और अस्पताल के ही साफ्टवेयर की मदद से इस इम्प्लांट को डिज़ाइन किया।
एम्स भोपाल कम चीर-फाड़ वाली और तकनीक-सक्षम इलाज के लिए लगातार काम कर रहा है, जिससे न केवल सर्जरी सटीक हो, बल्कि मरीज भी जल्दी ठीक हो सकें। यह केस हमारी नई सोच और मरीज-केंद्रित देखभाल की मज़बूत प्रतिबद्धता को दिखाता है। अब मध्य प्रदेश के जिन मरीजों को पहले ऐसी जटिल सर्जरी के लिए राज्य से बाहर बड़े अस्पतालों में जाना पड़ता था, वे ऐसे उपचार एम्स भोपाल में ही प्राप्त कर सकेंगे।
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