प्रादेशिक नेतृत्व (Regional Leadership) पर तलवार लटकाने से पार्टी और जनता का नुकसान

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प्रादेशिक नेतृत्व पर तलवार लटकाने से पार्टी और जनता का नुकसान

प्रादेशिक नेतृत्व (Regional Leadership) पर तलवार लटकाने से पार्टी और जनता का नुकसान;

राजनीतिक पार्टियों के परस्पर विरोध या मीडिया की अटकलों अथवा अफवाहों से अधिक खतरा सत्तारूढ़ दल के नेता और महत्वाकांक्षी वरिष्ठ मंत्रियों द्वारा ही मुख्यमंत्री को हटाए जाने की चर्चाओं से न केवल प्रशासन तंत्र कमजोर होता है , वरन कई जन हितकारी कार्यों की गति रुक जाती है | पार्टियों का केंद्रीय नेतृत्व भी यदि तलवार लटकाए रखना चाहता हो , लेकिन सार्वजनिक रूप से यही कहता है कि कोई बदलाव नहीं होने वाला है | इसी तरह किसी मुख्यमंत्री के अनूठे प्रयासों से सामाजिक आर्थिक लाभ को सराहते हुए अन्य राज्यों में अनुसरण के सकारात्मक रुख के बजाय केवल विरोध और आलोचना का रवैय्या सम्पूर्ण लोकतंत्र के लिए घातक है |

 

पिछले दिनों भोपाल की दो दिन यात्रा के दौरान भी मुझे इस तरह की स्थिति का अनुभव हुआ | एक सरकारी कार्यक्रम में जाना हुआ था , लेकिन व्यस्तता के बावजूद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से भी अनौपचारिक मुलाकात और उन्हें नर्मदा तथा नई शिक्षा नीति पर आई मेरी नई पुस्तकें भेंट करने के लिए समय माँगा था | उनके निजी सचिव ने सूचित किया कि केबिनेट मीटिंग तथा अन्य कार्यक्रम पहले से तय हैं , लेकिन सुबह निवास पर संक्षिप्त भेंट के बाद उनके प्रतिदिन वृक्ष लगाने के कार्यक्रम के रास्ते में गाडी में भी बातचीत हो सकती है | मेरे लिए तो और अच्छा अवसर था | सुबह नौ दस बजे से उनके निवास के विभिन्न प्रतीक्षा कमरों में एक मंत्री , वरिष्ठ अधिकारी ,कुछ विधायक , सुदूर इलाकों से आए पंचायतों के प्रतिनिधि , पार्टी कार्यकर्त्ता और कुछ बहुत बुजुर्ग सामान्य स्त्री पुरुष मिलने के लिए बैठे थे | सबको पानी , चाय या छाछ पेश की जा रही थी | लगभग आधे घंटे में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने अपने कक्ष में भेंट की , फटाफट बातें सुनी और संबंधित अधिकारियों को आवश्यक निर्देश दिए | जो लोग बहार निकलकर आए ,सबके चेहरों पर प्रसन्नता के भाव थे | कहीं किसी तरह की अस्थिरता की झलक नहीं थी | फिर मैं भी मिला तो प्रदेश की स्थिति आदि पर संक्षिप्त चर्चा हुई और पुस्तकों को देखकर वह प्रसन्न हुए | नर्मदा के प्रति उनके लगाव , अभियान और प्रदेश की जल प्रदाय योजना तथा नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन , लड़की पढ़ाओ , लड़की बढ़ाओ का उल्लेख हुआ |

फिर हम वृक्षारोपण के लिए निकले | रास्ते में भी प्रदेश के विकास पर चर्चा हुई | फिर भोपाल के स्मार्ट पार्क पहुंचे | कुछ अधिकारी तथा पैलेस आर्चेड कालोनी के रहवासी संघ के छह सात नागरिक उपस्थित थे | पहले शिवराजसिंह जी ने मुझे ससहभगि बना नीम का एक पौधा लगाया | फिर उन लोगों के साथ कचनार का पौधा लगाया | ग्यारह बजे भी 42 डिग्री की कड़कती धूप और जमीन पर बैठ पेड़ लगाने , फावड़े से मिटटी डालने में उन्हें किसी तरह की तकलीफ नहीं हुई | मुख्यमंत्री ने उनसे अन्य लोगों को भी पेड़ लगाने के अभियान में शामिल करने का आग्रह किया | तब मुझे बताया गया कि सवा साल से मुख्यमंत्री प्रदेश भर में पर्यावरण संरक्षण के लिए यही काम कर रहे है हैं और अन्य लोगों को भी प्रतिदिन दो पेड़ लगाने का आग्रह कर रहे हैं | भोपाल से बाहर किसी भी जिले , कस्बे , गांव में हो , सुबह का पहला कार्यक्रम यही होता है | इसी तरह रोज वह दो सामान्य बच्चियों का पूजन कर बेटी बचाओ , बेटी पढ़ाओ के अभियान को जन जन तक पहुंचाते हैं | मुख्यमंत्री के रूप में यह उनका चौथा कार्यकाल है | अब तक वह स्वयं करीब 445 पेड़ लगा चुके हैं और यही नहीं असम , पश्चिम बंगाल , , उत्तर प्रदेश , उत्तराखंड सहित विभिन्न राज्यों में चुनाव के दौरान पार्टी के प्रचार अभियान में भी वहां पौधे लगाते रहे | जब प्रदेश का मुखिया यह क्रम बनाता है , तो बड़ी संख्या में लोग इस अभियान से जुड़ जाते हैं | इस तरह के अभियान अन्य राज्यों में भाजपा ही नहीं किसी भी पार्टी की सरकारों के लिए प्रेरक होना चाहिए |

लेकिन दूसरी स्थिति विपरीत है | भोपाल में ही कला साहित्य प्रशासन और मध्यम वर्गीय उद्यमियों से मिलने का अवसर भी मिला | इनमे से दो तीन ने जानना चाहा कि क्या शिवराजजी के नेतृत्व में ही 2023 का चुनाव लड़ा जाएगा और क्या जल्दी ही मुख्यमंत्री बदलने वाले हैं ? मेरा उत्तर था कि वैसे भाजपा में नेतृत्व कभी कोई निर्णय ले सकता है , लेकिन जहाँ तक मेरी जानकारी और समझ है , शिवराजजी को कोई खतरा नहीं है | वे जमीनी पकड़ वाले नेता हैं और शीर्ष नेताओं को उन पर पूरा विश्वास है | तब एक सज्जन ने दिलचस्प बात कही | उनका कहना था कि दो दिन पहले वह प्रदेश के एक वरिष्ठ मंत्री से बहुत छोटे काम से मिले और किसी अधिकारी की शिकायत की | तब मंत्री महोदय ने कहा कि ” देखो शायद अगले हफ्ते दिल्ली की बैठक में मुख्यमंत्री बदलने का फैसला हो गया तो यह छोटा काम ही नहीं अधिकारी को हटा दिया जाएगा | ” इस बात से यह बात पक्की हुई कि प्रतिपक्ष से अधिक उनके अपने लोग सरकार की अनिश्चितता का माहौल अधिक बनाते हैं | फिर प्रशासन में भी प्रतिबद्धता या विरोधी खेमे बनने से कई विकास कार्यों का क्रियान्वयन सही ढंग और समय पर नहीं हो पाते |

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हाँ , कांग्रेस , भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टियों में मतभेद , असंतुष्ट नई बात नहीं है | लेकिन महीनों तक अंदर बाहर तलवार लटकाए रखने से सरकार , पार्टी और जनता को प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष नुकसान होता है | मध्य प्रदेश ही नहीं राजस्थान , छत्तीसगढ़ , कर्णाटक , हिमाचल प्रदेश , हरियाणा जैसे राज्यों में भी इस तरह की अस्थिरता लाने के लिए उन सत्तारूढ़ दलों को ही घाटा हो रहा है | राजस्थान और छत्तीसगढ़ की अनिश्चितता के लिए तो प्रादेशिक नेताओं से अधिक कांग्रेस के शीर्ष नेता ही उत्तरदायी हैं | वह हर दो चार महीने में प्रदेश के असंतुष्ट या मंत्री को जल्द ही मुख्यमंत्री बदलने का आश्वासन दे देते हैं | यही नहीं विधान सभा चुनाव से पहले और परिणाम आने पर ढाई ढाई साल में मुख्यमंत्री बदलने का वायदा बंद कमरों में कर देते हैं | लेकिन जब अशोक गेहलोत और भूपेश बघेल जैसे नेता सत्ता में आने के बाद विधायक दल , आला कमान के कुछ नेताओं से ही नहीं प्रतिपक्ष के नेताओं से भी संपर्क बढ़ा लेते हैं | वे संगठन के लिए समुचित चंदा आदि भी जमा कर देते हैं | तब उन्हें हटाना कठिन हो जाता है | लेकिन प्रशानिक मशीनरी लचर हो जाती है | भारतीय जनता पार्टी तो अनुशासित पार्टी मानी जाती है | इसलिए भाजपा के मुख्यमंत्रियों को उनके ही सहयोगी या केंद्र के कुछ नेताओं द्वारा संकट बनाए रखने के प्रयास दूरगामी हितों के लिए खतरे की घंटी है |

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Author profile
ALOK MEHTA
आलोक मेहता

आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।

7  सितम्बर 1952  को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद  वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर  नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।

भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।

प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान,  राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।