कुछ नयी कुछ पुरानी बातें : “तमस” के लेखक Bhisham Sahni को मैंने भोपाल पत्रकार भवन में पहली बार देखा था
रावलपिंडी पाकिस्तान में जन्मे भीष्म साहनी (८ अगस्त १९१५- ११ जुलाई २००३) आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रमुख स्तंभों में से थे। वे प्रगतिशील लेखक संघ और अफ्रो-एशियायी लेखक संघ (एफ्रो एशियन राइटर्स असोसिएशन) से भी जुड़े रहे। १९९३ से ९७ तक वे साहित्य अकादमी के कार्यकारी समीति के सदस्य रहे। भीष्म साहनी हिन्दी फ़िल्मों के जाने माने अभिनेता बलराज साहनी के छोटे भाई थे. भीष्म साहनी को हिन्दी साहित्य में प्रेमचंद की परंपरा का अग्रणी लेखक माना जाता है. वरिष्ठ साहित्यकार हरिओम राजोरिया उनसे हुई मुलाक़ात को याद कर रहे हैं —–
– हरिओम राजोरिया
तमस जैसा उपन्यास हानूश जैसा नाटक और बाँगचू , अमृतसर आ गया , चीफ़ की दावत जैसी कहानियां लिखने वाले भीष्म साहनी ( 8 अगस्त , 1915 – 11 जुलाई , 2003 ) जी का आज जन्मदिन है । भारत विभाजन की त्रासद घटनाओं का उन्होंने सजीव और सरल भाषा में चित्रण किया है । भाषा से चमत्कार पैदा करने और चौंकाने का गुण उनमें नहीं है , हां भंगिमा रहित साधारण भाषा में उन्होंने असाधारण कहानियां , उपन्यास और नाटक लिखे हैं । उनके द्वारा अनुदित तोलस्तोय के पुनरुत्थान तथा चिंगिज एत्मातोव के पहला अध्यापक उपन्यास सहित अन्य रूसी पुस्तकों के अनुवादों में भी उनका चेहरा आप देख सकते हैं । जैसी सरलता उनके गद्य में है वैसा ही सहज और सुंदर उनका व्यक्तित्व भी था । इतने शालीन और खूबसूरत बूढ़े मैंने कम ही देखे हैं । 1988 में प्रलेसं भोपाल ने फैज़ पर केंद्रित ” यादे फ़ैज़ ” आयोजन किया था । किसी साहित्यिक आयोजन में पहली बार मेरा जाना हुआ था । उस समय भोपाल में क्या देश में अपने जिले के लेखकों के अलावा किसी से मेरा परिचय नहीं था ।
विज्ञान का विद्यार्थी होने से साहित्य में भी अल्पज्ञ ही था । उस आयोजन में पहली बार त्रिलोचन , कैफ़ भोपाली , मज़रूह सुल्तानपुरी , शिवमंगल सिंह सुमन जैसे अनेक हिंदी – उर्दू के साहित्यकारों को मैंने बहुत पास से देखा और उनकी बातचीत तटस्थ दर्शक बनकर सुनीं । भीष्म जी के नाम से मैं तब भी भलीभांति परिचित था । मैंने भोपाल के उस पत्रकार भवन में पहली बार उन्हें देखा । मैं सीढ़ियों के ऊपर था और वे सीढियां चढ़ते हुए ऊपर आ रहे थे । कोई उत्साही छात्र उनसे बातें कर रहा था । भीष्म जी के चेहरे पर स्नेहिल भाव था वे धीरे धीरे ऊपर मेरे नज़दीक उस लड़के से बात करते हुए सीढ़ियां चढ़ रहे थे । वे जब मेरे पास से गुजरे तो मैंने दोनों हाथ जोड़कर उनसे नमस्कार किया । उन्होंने मुस्कुराकर मेरा अभिवादन स्वीकारा और मेरी ओर अपनत्व से देखा । उनका वह मुस्कुराता हुआ चेहरा आज भी आंखों के सामने आ जाता है । कस्बाई झिझक और अकेलेपन के बोध से भरा मैं उनसे कुछ बात न कर सका । इस आयोजन के मुख्य अतिथि इंद्र कुमार गुजराल जी थे पर वे किसी कारण से नहीं आ पाए थे तो भीष्म जी ने ही कार्यक्रम का उद्घाटन भाषण दिया था । उसके बाद हर सत्र में उन्हें नीचे फर्स पर बैठे पाया , अहंकार रहित मुस्कुराता हुआ मासूम चेहरा ।
इसके एक वर्ष बाद 1989 में गुना में प्रलेसं का पांचवां राज्य सम्मेलन हुआ तो भीष्म जी ने ही इस सम्मेलन का उद्घाटन किया था । अशोकनगर के साथियों ने भी इस समेलन में बहुत काम किया था , । तमस धारावाहिक के प्रदर्शन के बाद देशभर में भीष्म जी के नाम की धूम थी । भीष्म जी एक दिन रुककर चले गए थे ।
मैंने रेल्बे स्टेशन पर अन्य यात्रियों के साथ बैंच पर उन्हें यात्रियों के बीच बैठे देखा , पर उनसे बात न कर सका । उनके जाने के बाद राजनारायण बोहरे जी ने मुझे बताया कि भीष्मजी तुम्हारे बारे में पूछ रहे थे , उनसे दिल्ली में गिरजा कुमार माथुर जी ( अशोकनगर में जन्मे वरिष्ठ हिंदी कवि ) ने मेरा जिक्र किया होगा । उसके बाद एक दो बार और भीष्मजी को सुना पर कभी बात नहीं कर पाया ।
अशोकनागर इप्टा ने उनके तीन नाटक ” कबिरा खड़ा बाजार में ” , ” मुआवजे ” और ” चीफ़ की दावत “( कहानी का नाट्य रूपांतरण ) किये हैं । नाटकों को तैयार करते हुए भी उनकी रचना प्रक्रिया को समझने का प्रयास मैंने किया । कबिरा खड़ा बजार नाटक में कबीर के कुछ पदों की धुनें भी मैंने तैयार कीं थीं । उनके लेखन और व्यक्तित्व में दूरी नहीं थी । कबिरा खड़ा बाजार नाटक के कारण ही मैं और सीमा पास आये । इस नाटक में पहली बार अशोकनगर इप्टा के नाटकों में महिला पात्रों का प्रवेश हुआ था ।
भीष्मजी के 110 वें जन्मदिन पर उनके अवदान और स्मृति को सलाम । फोटो : हरगोविंद पुरी
– हरिओम राजोरिया