“Chithha” Hotstar OTT Dubbed Movie, Review: प्लीज अपने बच्चों के हाथ में मोबाइल मत दीजिये. इसे जानने के लिए देखिये “चिट्ठा”
आज फिर डिजनी हॉट स्टार पर बिना सोचेसमझे एक फिल्म लगा ली और फिल्म ने ऐसा बाँधा कि जैसे कोई पल भी छूट गया तो फिल्म में गुमशुदा बच्ची हम ढूँढ़ नहीं पायेंगे, बेहद संवेदनशील विषय और बेहतरीन अभिनय इस फिल्म की विशेषता हैं. इस फिल्म के समाप्त होने के बाद भी मैं देर तक उसी कुर्सी पर उसी स्थिति और उसी मन:स्थिति में बैठी रही जैसे इस समस्या का कोई तो अंत होगा, स्तब्ध सी निशब्द, एक स्त्री के रूप में एक माँ की और उस बच्ची की पीड़ा को सहती हुई. असहाय और असहनीय दर्द को झेलती हुई. उस संवेदना के तार को जोड़ती हुई जो ईश्वरन पलानी (सिद्धार्थ) ने जीवंत अभिनीत किया, सुंदरी के अभिभावक के रूप में. यह संवेदना का तार झनझनाता रहा आखरी तक और यही बाँधे रखता है पूरी फिल्म को.
बाल यौन शोषण पर बनी यह फिल्म जरुर देखने लायक तो है ही, ख़ास कर सामाजिक स्थितियों को समझने की दिशा में भी ध्यानाकर्षित करती है. चिट्ठा (2023) एक तमिल फ़िल्म (हिंदी में भी डब) है, जो बाल यौन शोषण के संवेदनशील मुद्दे को सावधानी से संभालती है. इस फ़िल्म को एसयू अरुण कुमार ने निर्देशित किया है और इसमें सिद्धार्थ, निमिशा साजयन और अंजली नायर ने काम किया है. दर्शकों और आलोचकों द्वारा “चिट्ठा” को वर्ष की सर्वश्रेष्ठ फिल्म के रूप में सराहा गया है। यह फिल्म एक रोमांचक अपराध ड्रामा फिल्म है जो बाल तस्करी और बाल उत्पीड़न जैसे महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दों पर जोरदार ढंग से बात करती है। जिस तरह से यह कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रकाश डालती है, जिस पर फिल्म उद्योग में स्क्रीन पर कभी जोरदार चर्चा नहीं की गई है।
फिल्म को बिना किसी अश्लील दृश्य के फिल्माया जाना बेहद महत्वपूर्ण बात है क्योंकि फिल्म बच्चों के बहुत ही मुश्किल विषय पर बात करती है. कहानी किसी सच्ची घटना पर आधारित लगती है. पलानी में दर्शाई गई कहानी एक स्कूल जाने वाली लड़की के अपहरण के इर्द-गिर्द घूमती है। “चित्ता’ अपहरण के कारण लड़की के परिवार और बच्ची के दुःख और बच्ची को बचाने के लिए परिवार के प्रयासों का वर्णन करती है। यह फिल्म दुर्व्यवहार के पीड़ितों के साथ कैसे व्यवहार किया जाए, इस पर एक नया दृष्टिकोण पेश करती है। बेहद संवेदनात्मक क्षण होते हैं वे जब कोई परिवार और व्यक्ति इस कष्ट से गुजर रहा होता है .
चिट्ठा का नायक, ईश्वरन (सिद्धार्थ) उर्फ ईसू एक ऐसा व्यक्ति है जिसे कम उम्र में अपने परिवार की देखभाल की ज़िम्मेदारी उठानी पड़ी है। ईश्वरन (सिद्धार्थ) पलानी का एक सरकारी कर्मचारी है जो अपनी आठ वर्षीय भतीजी सुंदरी से पिता-पुत्री रिश्ते की तरह जुड़ा हुआ है और अपने भाई के मरने के बाद से वह उसे पिता से भी ज्यादा और हमेशा उसकी सुरक्षा करता है। इस तरह वह अपनी भाभी (अंजलि नायर) और सेट्टई, अपनी आठ वर्षीय भतीजी सुंदरी की देखभाल करता है। इसी के साथ हम उसे अपने स्कूल की साथी और अब सहकर्मी शक्ति (निमिषा सजयन) के साथ भी प्रेम करते हुए देखते हैं.
ईश्वरन के कुछ करीबी दोस्त भी हैं, जिनमें से एक वाडिवेलु नाम का एक अंडरकवर पुलिसकर्मी है, जिसकी भतीजी पोन्नी और सुंदरी भी अच्छी दोस्त हैं। अपने प्रेमी के साथ अपनी बड़ी बहन की रोमांटिक बातचीत को समझने में असमर्थ, पोन्नी को लगता है कि स्कूल के पास एक वन क्षेत्र में हिरणों का झुंड मौजूद है और वह सुंदरी से पूछती है कि क्या वह स्कूल के बाद जानवरों को देखने जाने में दिलचस्पी लेगी।
दोनों लड़कियाँ ईश्वरन को छोड़कर अकेले क्षेत्र में जाने की योजना बना रही हैं। योजना के अनुसार पोन्नी और सुंदरी इलाके के लिए एक ऑटो रिक्शा में सवार होते हैं, लेकिन सुंदरी डर जाती है और रिक्शा से उतर कर पोन्नी को रिक्शा में ही छोड़ देती है, जो अकेले ही इलाके को देखने चली जाती है। अगले दिन यौन शोषण की शिकार पोन्नी को उदास और बीमार देखकर ईश्वरन उससे पूछता है कि उसे क्या हुआ. पोन्नी उसे कुछ नहीं बताती और बेहोश हो जाती है.
तब पोन्नी का पिता ईश्वरन पर पोन्नी से दुर्व्यवाहर करने का आरोप लगाता है. यहाँ इशु की बेकसुरी पर केवल उसकी भाभी कड़ी होती है ,जो बार बार यह कहती ही कि इसु एसा नहीं कर सकता . लेकिन बाद में वडिवेलु को पता चला कि ईश्वरन निर्दोष है और उससे माफी मांगता है। हम फिल्म में इन सभी पात्रों के साथ होने वाली त्रासदी को महसूस करते हैं, जहां पुलिस एक ऐसे इलाके पर चर्चा करती है जो लड़कियों के लिए बेहद असुरक्षित हो गया है। यहाँ हम उस लाचारी और असहाय स्थिति को भी महसूस करते हैं जब निर्दोष व्यक्ति आरोपों को झेलता है और सामजिक बहिष्कार का शिकार हो जाता है.
लेकिन इस सब के पहले यह फिल्म कम उम्र के चाचा और भतीजी के बीच के उस सुन्दर रिश्ते को बुनती है जो फिल्म की जान है, अरुण कुमार हमें ईसु और सुंदरी के बीच के खूबसूरत बंधन को दिखाते हैं। हम देखते हैं कि वह उसके प्रति कितनी स्नेही है और वह उसके प्रति कितना सुरक्षात्मक महसूस करता है। एक शुरुआती दृश्य में, हम उसे एक स्कूल के चौकीदार को डांटते हुए देखते हैं जब चौकीदार मजाक करता है कि लड़की खुद ही घर के लिए निकल गई है। हम महसूस करने लगते हैं कि एक त्रासदी आगे सामने आने वाली है, लेकिन तब तक फिल्म खूब संवेदना के साथ परिवार के स्नेह के अहसास से भरपूर है। बालाजी सुब्रमण्यम की सिनेमैटोग्राफी फ्रेम को सहज और सामजिक स्तर पर कसावट देती है।
फिल्म के उत्तरार्ध में फिर एक त्रासदी सामने आती है. लेकिन उस तरह से नहीं जैसा हम कल्पना करते हैं। हम देखते हैं कि कैसे संशय के भाव आते ही एक माँ द्वारा अपने बिस्तर पर अपनी बेटी के साथ सोने का विकल्प चुनने जैसी सरल-सहज सी बात का प्रभाव संदेह की भावना जगाता है जो निर्दोष इशु को खटकता है आगे जाकर विनाशकारी हो सकता है।
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और इन सब के साथ एक दिन सुंदरी आठ साल की बच्ची का भी अपहरण हो जाता है। एक छोटी लड़की को सिलसिलेवार बलात्कारी और हत्यारे द्वारा बंदी बनाए जाने का विचार ही स्थिति की भयावह प्रकृति को बताने के लिए पर्याप्त है, यह यहाँ भले ही स्पष्ट रूप से कुछ भी न दिखाता ,निर्देशक उसे दर्शकों को इस तरह के परिदृश्य को अपने दिमाग में चलने दिया जाए? उसकी यातना को हम दिमाग में महसूस करते है. हम इशु की मन:स्थिति को भी गहरे तक अनुभूत करते हैं और बलात्कार की शिकार लड़कियों के जले शव को देखने की पीड़ा को भाभी और इशू के चेहरे के भाव भर से समझ लेते हैं, रुला देनेवाले ये क्षण फिल्म को मार्मिक बना देते हैं. प्रदर्शन भी शीर्ष स्तर के हैं.
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शक्ति के रूप में निमिषा सजयन ने आत्मविश्वास से भरी शुरुआत की है। वह यह भी बताती है कि स्त्रियाँ अपनी उम्र में कभी ना कभी किसी ना किसी रूप में शोषण झेलती हैं. बाल कलाकारों ने डरी हुई भावना को गहराई से प्रभावित करने वाले तरीके से व्यक्त किया है. सबसे महत्वपूर्ण डायलोग के रूप में एक पंक्ति है “प्लीज अपने बच्चों के हाथ में मोबाइल मत दीजिये” यह एक बहुत बड़ी सीख देती है फिल्में क्योंकि बच्चे सुध बुध खो कर गेम्स के एडिक्ट हो जाते है जिससे बाल यौन उत्पीड़न की घटनाएं आम हैं।
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अपराधी कैसे चाल चलते हैं ,छोटे बच्चे कैसे लालच में फंसते हैं ,POCSO कानून का डंडा कैसे चलता है और पुलिस सिस्टम कैसे वर्क करता है। इन गंभीर इश्यू को हम फिल्म के जरिए देखते हैं। यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर कोई बातचीत नहीं होती। होनी चाहिए और बच्चों को बेड टच और गुड टच समझाया जाना चाहिए , उन चीजों जैसे रंगीन चूजे, लॉलीपॉप, मोबाइल के गेम ,खिलोने जैसे लालचों से कैसे बचाया जाए, इस पर भी विचार होना चाहिए. एस यू अरुण कुमार द्वारा निर्देशित, सिद्धार्थ अभिनीत फ़िल्म चिट्ठा (2023) को बाल उत्पीड़न के बारे में एक दिल दहला देने वाली थ्रिलर फिल्म कहा जा सकता है.इसे समाज में सभी को देखना चाहिए .
समीक्षा -डॉ स्वाति तिवारी