

Congress State Incharge: नहीं टिक पा रहे कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी, 2 कारणों से चर्चित रहे भंवर जितेंद्र भी 13 माह में हटे
दिनेश निगम ‘त्यागी’ की रिपोर्ट
प्रदेश कांग्रेस प्रभारियों के पैर मप्र में टिक नहीं पा रहे हैं। पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व द्वारा इन्हें प्रदेश में कांग्रेस को मजबूत करने के उद्देश्य से भेजा जाता है लेकिन ऐसा करने की बजाय ये खुद पार्टी के अंदर पार्टी बन जाते हैं। शिकायतें होती हैं और इन्हें रवाना कर दिया जाता है। यही हश्र मौजूदा प्रदेश प्रभारी भंवर जितेंद्र सिंह का भी हुआ। विधानसभा चुनाव के बाद इन्हें प्रदेश कांग्रेस का प्रभार सौंपा गया था और लगभग 13 माह बाद ही ये हटा दिए गए। इससे पहले जेपी अग्रवाल, रणदीप सुरजेवाला और मुकुल वासनिक भी ज्यादा नहीं रह सके थे। इनका कार्यकाल भंवर जितेंद्र से भी कम रहा था। अलबत्ता दो प्रदेश प्रभारी मोहन प्रकाश और दीपक बाबरिया ही ज्यादा समय तक टिके थे। इनमें से बाबरिया के कार्यकाल में कांग्रेस प्रदेश की सत्ता में आई थी। उन्होंने संगठन को मजबूत करने के लिए कड़ी मेहनत की थी। हालांकि कई निर्णयों के लिए उनका मजाक भी
उड़ाया जाता था।
*0 दो कारणों से चर्चित रहे भंवर जितेंद्र*
– भंवर जितेंद्र के पास असम के साथ मप्र कांग्रेस का प्रभार था। यहां का चार्ज एडिशनल था। वे लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी के खास माने जाते हैं, इसलिए उनके टिकने की उम्मीद थी। माना जा रहा था के वे प्रदेश में कांग्रेस को मजबूत करने में मुख्य भूमिका निभाएंगे। कांग्रेस संगठन की दृष्टि से ज्यादा मजबूत नहीं हुई लेकिन दो कारणों से भंवर जितेंद्र चर्चा में रहे। प्रदेश कांग्रेस कार्यकारिणी के गठन के मामले में वे एक्सपोज भी हुए और मजाक का पात्र भी बने। वे जितनी बार भी प्रदेश के दौरे पर आते, घोषणा कर देते की अगले हफ्ते-दो हफ्ते में प्रदेश की टीम गठित हो जाएगी लेकिन यह अगला हफ्ता कभी नहीं आता था। इस संदभ में हर बार उनकी घोषणा गलत साबित हुई। कार्यकारिणी गठित होने के बाद जब दायित्व बांटा गया तो प्रदेश कांग्रेस के इतिहास में संभवत: पहली बार संगठन के दो प्रभारी प्रियव्रत सिंह और संजय कामले बना दिए गए। इसकी वजह भंवर जितेंद्र के क्षत्रिय प्रेम को माना जा रहा है। वर्ना सिर्फ संजय कामले ही प्रदेश कांग्रेस संगठन के प्रभारी होते। प्रियव्रत को भंवर के कारण जवाबदारी सौंपी गई।
*0 केंद्रीय नेतृत्व तक भेजी गई शिकायत*
– प्रदेश प्रभारी भंवर जितेंद्र के काम काज को लेकर कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व तक शिकायतें भेजी गईं। बताया गया कि प्रदेश के कुछ क्षत्रिय कांग्रेस नेताओं से भंवर जितेंद्र के संबंध हैं। कुछ से रिश्तेदारी भी है। इसकी वजह से वे एक पक्ष का समर्थन करते हैं। संगठन का प्रभार दो-दो पदाधिकारियों को देने की भी शिकायत हुई। यह भी कहा गया कि प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी संगठन को जमीन तक मजबूत करने की दिन-रात कोशिश कर रहे हैं लेकिन संगठन की टीम काम नहीं कर रही। इसकी वजह गुटबाजी ही है। भंवर जितेंद्र पर इसे हवा देने का आरोप है। ऐसा नहीं है कि शिकायत सिर्फ भंवर जितेंद्र की हुई। इससे पहले के कई प्रभारियों की शिकायतें आलाकमान तक पहुंचाई जाती रही हैं। इसमें पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रमुख भूमिका निभाते रहे हैं।
*0 बड़े नेताओं ने नहीं टिकने दिया प्रभारियों को*
– कांग्रेस के जिन बड़े नेताओं पर प्रदेश में पार्टी को मजबूत करने की जवाबदारी है, ये नेता ही प्रदेश प्रभारियों को टिकने नहीं देेते थे। पहले मोहन प्रकाश के खिलाफ ये नेता झंडा उठाए रहे, इसके बाद इन बड़े नेताओं ने दीपक बाबरिया को काम नहीं करने दिया। बता दें, प्रदेश में मंडलों और सेक्टर का गठन बाबरिया के प्रयास से हुआ और इनकी मेहनत की बदौलत ही कांग्रेस प्रदेश की सत्ता मेंं आ सकी थी। इसका फल उन्हें यह मिला था कि एक बड़े नेता द्वारा एक बार उन्हें कमरे तक में बंद कर दिया गया था। इसके बाद रणदीप सुरजेवाला, मुकुल वासनिक और जेपी अग्रवाल के पास प्रदेश कांग्रेस का प्रभार ज्यादा समय तक नहीं रहा। या तो बड़े नेताओं की शिकायत के कारण ही इन्हें हटाया गया या इन्होंने खुद प्रभार से मुक्त होने का आग्रह कर लिया। बड़ा सवाल यह है कि जब प्रभारियों के प्रदेश में पैर ही नहीं टिकेंगे तो कांग्रेस मजबूत कैसे होगी?
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