राज-काज: मुख्यमंत्री जी, क्या यह कार्रवाई नजीर बनने लायक….?

राज-काज: मुख्यमंत्री जी, क्या यह कार्रवाई नजीर बनने लायक….?

– इसमें कोई शक नहीं की ‘हरदा हादसे’ के बाद जिस गति से बचाव कार्य चला, इलाज के लिए स्वास्थ्य अमला और साधन पहुंचाए गए, घायलों के लिए ग्रीन कॉरीडोर बनाया गया, आग पर काबू पाने संसाधन भेजे गए, सेना की मदद ली गई, इसकी जितनी तारीफ की जाए कम है। यह तभी संभव हुआ जब मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने खुद मानीटरिंग की, अफसरों-नेताओं को जवाबदारी सौंप कर काम पर लगाया। मुख्यमंत्री ने कहा था कि हादसे के दोषियों के खिलाफ ऐसी कड़ी कार्रवाई की जाएगी जो भविष्य के लिए नजीर बनेगी।

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सवाल है कि अब तक जो कार्रवाई की गई, क्या वह नजीर बनने लायक है? क्या कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक को हटा देना और फैक्ट्री मालिक के खिलाफ प्रकरण दर्ज कर गिरफ्तार कर लेना पर्याप्त है? मुख्यमंत्री डॉ यादव ने गुना बस हादसे पर जैसी कार्रवाई की थी, उसे देखते हुए लोग इस भयावह हादसे के दािषयों के खिलाफ और कड़ी कार्रवाई की उम्मीद कर रहे थे। लेकिन उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया। अब तक ऐसा कुछ नहीं हुआ जो नजीर बनने लायक हो। कहीं इस हादसे का हश्र भी शिवराज सरकार के कार्यकाल में हुए ‘पेटलावद हादसे’ जैसा तो नहीं होगा, जिसमें 79 लोगों की मौत हो गई थी। मामले का आरोपी फैक्ट्री मालिक कोर्ट से बरी हो गया था। किसी अफसर को भी कोई सजा नहीं मिली थी।

जिज्ञासा! किस लोकसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे शिवराज….?
– पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लोकसभा चुनाव लड़ेंगे या नहीं और लड़ेंगे तो कहां से? यह जानने की जिज्ञासा हर किसी के मन में है। केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले के बयान के बाद शिवराज का चुनाव लड़ना तय माना जाने लगा है। अब उनके चुनाव क्षेत्र को लेकर कयासों का दौर जारी है। इस बीच भाजपा चुनाव समिति की बैठक में सरकार के वरिष्ठ मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने शिवराज का नाम छिंदवाड़ा सीट के पैनल में रखने का सुझाव दे दिया।

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तभी से चर्चा चल पड़ी कि क्या शिवराज छिंदवाड़ा से चुनाव लड़ेंगे? बता दें, प्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से सिर्फ एक छिंदवाड़ा ही कांग्रेस के पास है। यहां कमलनाथ के किले को ध्वस्त करना आसान नहीं है। विधानसभा में भाजपा ने बंपर जीत दर्ज की लेकिन छिंदवाड़ा जिले की सभी सीटों में कांग्रेस ही जीती। यह जानते हुए शिवराज छिंदवाड़ा से चुनाव लड़ने का जोखिम उठाएंगे, संभावना कम है। यदि भाजपा नेतृत्व ने फैसला ले लिया तो उनके सामने धर्मसंकट की स्थिति पैदा होगी। पार्टी में उन्हें दिग्विजय सिंह के प्रभाव वाली राजगढ़ सीट से भी चुनाव लड़ाने पर विचार चल रहा है। हालांकि शिवराज की नजर विदिशा और भाेपाल लोकसभा सीट पर है। वे इनमें से ही किसी सीट से चुनाव लड़ना पसंद चाहेंगे। वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिलकर अपना पक्ष रख चुके हैं।

शिवराज की तरह कमलनाथ के अगले कदम पर नजर….
– भाजपा में जिस तरह शिवराज सिंह चौहान को लेकर अटकलों का दौर जारी है, उसी तरह कांग्रेस में कमलनाथ को लेकर। भाजपा- कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर दोनों पार्टी नेतृत्व से नाराज हैं। शिवराज के राजनीतिक भविष्य को लेकर अटकलों के दौर चल रहे हैं और कमलनाथ के अगले कदम को लेकर। राजनीितक हल्को में कमलनाथ के भाजपा में जाने की चर्चा हैं। भाजपा में ही इस मसले पर मतभेद हैं।

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कैलाश विजयवर्गीय कह चुके हैं कि कमलनाथ के लिए भाजपा के दरवाजे बंद हैं, जबकि पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने उन्हें भाजपा में आने का न्यौता दे दिया है। इस बीच कमलनाथ ने दिल्ली जाकर सोनिया गांधी से मुलाकात की है। इसे उनके राज्यसभा जाने की इच्छा से जोड़कर देखा जा रहा है। अटकलें हैं कि कांग्रेस ने कमलनाथ को राज्यसभा भेज दिया तो काेई बात नहीं, वरना वे भाजपा में जा सकते हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी राज्यसभा सीट पक्की न होने के कारण कांग्रेस छोड़ी थी। सवाल है कि क्या कांग्रेस नेतृत्व कमलनाथ को राज्यसभा भेजकर बेटे नकुलनाथ को लोकसभा का प्रत्याशी बनाएगा? ऐसा न हुआ तो क्या कमलनाथ कांग्रेस छोड़ देंगे? सोनिया गांधी से मिलने के बाद कमलनाथ ने कांग्रेस विधायकों को अपने निवास में डिनर पर बुलाया है। इसे उनके केंद्र की राजनीति में जाने और राज्यसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है।

नकुलनाथ को ‘बड़बोलापन’ पर काबू पाने की जरूरत….
– कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ के बेटे सांसद नकुलनाथ एक बार फिर चर्चा में हैं। वजह है उनका ‘बड़बोलापन’। विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने छिंदवाड़ा जिले की सभी विधानसभा सीटों के प्रत्याशी खुद घोषित कर दिए थे। उन्होंने चुनाव में जीत का दावा करते हुए कमलनाथ के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने की तारीख भी घोषित कर दी थी और लोगों को शपथ समारोह में आने का निमंत्रण दे दिया था। उनके ये बयान सुर्खियाें में रहे थे।

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यह उनका ‘बड़बोलापन’ के सिवाय कुछ नहीं था, क्योंकि न तो प्रत्याशी घोषित करने का अधिकार उनके पास था और न ही कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाने और शपथ की तारीख तय करने का। अब उन्होंने लोकसभा चुनाव को लेकर भी कांग्रेस नेतृत्व की परवाह किए बगैर ऐसी ही घोषणा कर डाली। उन्होंने कहा कि छिंदवाड़ा से वे खुद चुनाव लड़ेंगे, कमलनाथ नहीं। कमलनाथ ने भी नकुल के चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। सवाल यह है कि क्या नकुलनाथ पार्टी से ऊपर हैं? क्या प्रत्याशी की घोषणा का अधिकार पार्टी के पास नहीं रहने देना चाहिए? यह सच है कि छिंदवाड़ा से कमलनाथ और नकुलनाथ में से ही कोई चुनाव लड़ेगा। यहां कांग्रेस से ज्यादा इस परिवार का ही असर है। फिर भी क्या नकुलनाथ को अपने इस ‘बड़बोलेपन’ पर काबू पाने की जरूरत नहीं है?

सागर में इस तरह छलका नरोत्तम की हार का दर्द….
– विधानसभा के इन चुनावों ने कई वरिष्ठ नेताओं को गहरा दर्द दिया है। नेताओं का यह दर्द चाहे जब छलक पड़ता है। इनमें से ही एक हैं प्रदेश के पूर्व गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा। भाजपा की पूर्ववर्ती सरकार में मुख्यमंत्री के बाद ये दूसरे नंबर के ताकतवर मंत्री थे, लेकिन चुनाव में पराजय का सामना करना पड़ गया। भाजपा नेतृत्व ने लोकसभा चुनाव तैयारी की दृष्टि से नरोत्तम को सागर संभाग का क्लस्टर प्रभारी बनाया है।

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सागर लोकसभा सीट के नेताओं की बैठक के दौरान अपने संबोधन में उन्होंने कही तो पते की बात लेकिन इसमें दतिया में उनकी हार का दर्द  छलक पड़ा। उन्होंने कहा कि ‘जब तक जीत का परिणाम आ न जाए, तब तक जीत के प्रति आश्वस्त नहीं होना चाहिए, वरना परिणाम विपरीत भी आ सकते हैं।’ उन्होंने कहा कि ‘इसमें कोई शक नहीं कि हम हर क्षेत्र में मजबूत हैं। मोदी जी का नेतृत्व, आकर्षक मुद्दे और कार्यकर्ताओं की मजबूती टीम जीतने के लिए पर्याप्त है। बावजूद इसके जब तक परिणाम ना आए तब तक जीत, जीत नहीं और हार, हार नहीं।’ दर्द के मारे अकेले नरोत्तम नहीं हैं। शिवराज सिंह चौहान और कमलनाथ को मुख्यमंत्री न बन पाने का दर्द है और गोपाल भार्गव, भूपेंद्र सिं जैसे नेताओं को मंत्री न बन पाने का। इसी का नाम तो राजनीति है, ‘कब कौन अर्श से फर्श पर और फर्श से अर्स पर’ आ जाए, कोई नहीं जानता।