

Kissa-A-IAS:IAS Surbhi Gautam : कभी अंग्रेजी नहीं आने पर मजाक बनी, फिर IAS बनी!
सपना वो नहीं, जो आप नींद में देखते हैं। सपना वो है, जो आपको सोने नहीं देता! 10वीं कक्षा में पढ़ते समय सुरभि ने IAS अधिकारी बनने का मन बना लिया था। तभी से वह परीक्षा की तैयारी में जुट गईं। सुरभि सतना जिले के अमदरा गांव की रहने वाली हैं। उनके पिता मैहर में सिविल कोर्ट में वकील हैं और उनकी मां अमदरा के हायर सेकेंडरी स्कूल में शिक्षिका। सुरभि ने 10वीं तक की पढ़ाई गांव के हिंदी मीडियम स्कूल से की। इस कारण अंग्रेजी ज्ञान उसके लिए बहुत मुश्किल था। यहीं इन्होंने 10वीं के बोर्ड की परीक्षा 93.4% नंबर अर्जित किए।
सामान्यतः लोगों के मन में धारणा होती है कि अंग्रेजी स्कूल में पढ़ने वाले लोग ही IAS- PCS बन सकते हैं, गांव के बच्चों या फिर हिंदी मीडियम वालों को तो इस बारे में सोचना ही नहीं चाहिए लेकिन सुरभि ने इन सारी भ्रांतियों को गलत साबित कर दिया। कॉलेज के बाद वे एक साल के लिए परमाणु वैज्ञानिक के रूप में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) में शामिल हुई। इसके बाद वह गेट, इसरो, सेल, एमपीपीएससी, दिल्ली पुलिस और एफसीआई जैसी कई परीक्षाएं दी और हर जगह अपनी उत्कृष्ट प्रतिभा दिखाई। उन्होंने ये सभी परीक्षाएं पहले ही प्रयास में पास कर लीं। उन्होंने ये सारी उपलब्धियां 21 साल की उम्र में पाई।
सुरभि जब पांचवी क्लास में थी, तब उसका बोर्ड का रिजल्ट आया जिसमें उनके मैथ्स में 100 में 100 नंबर आए थे। उनकी कॉपी देखकर टीचर ने सुरभि की तारीफ की और उन्हें मोटिवेट किया कि तुम आगे और भी अच्छा करने की क्षमता रखती हो। वो जिंदगी का पहला मौका था कि उन्हें किसी ने नोटिस किया। उसी पल वे समझ गईं कि अगर थोड़ी भी इंपॉर्टेंस पाना है या नज़र में आना है तो पढ़ाई ही एकमात्र तरीका है। उस दिन से सुरभि ने भीड़ से अलग अपनी पहचान बनाने के लिए पढ़ाई को जरिया बनाने की ठान ली।
सुरभि ने सफलता का शिखर छूने की कोशिशों को नहीं छोड़ा और अंततः अंग्रेजी पर को अपने लिए आसान बना लिया। 10वीं में सुरभि को गणित में 100 में से 100 नंबर मिले और वे मेरिट में आई। जब उसे 10वीं बोर्ड में 93.4% मार्क्स आए तब एक पत्रकार से इंटरव्यू में सहज ही कह दिया था कि मैं बड़ी होकर कलेक्टर बनूंगी और ये बात न्यूज़ की हेडिंग बन गई ‘कलेक्टर बनना चाहती है सुरभि’ और यह जीवन का एक अभिन्न अंग बनकर उसके मन में छप गई थी और उसने IAS क्रैक करके ही दम लिया। इस खबर का हेडिंग उसके लिए चुनौती बन गया।
12वीं तक गांव के ही स्कूल से ही पढ़ने के बाद सुरभि ने एमपी के स्टेट इंजीनियरिंग की परीक्षा पास की, मेरिट अच्छी थी इसलिए भोपाल इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला मिला। इंजीनियरिंग क्लास में पहुंची तो टीचर्स से छिपती घूमी, क्योंकि एक गांव की लड़की के लिए सब कुछ बहुत नया और अनोखा था खासकर अंग्रेजी में बात करना। सभी स्टूडेंट्स जहां अंग्रेजी में आंसर दे रहे थे, वहीं सुरभि सवाल का जवाब जानने पर भी अंग्रेजी न आने की वजह से नहीं दे पायीं।
लैब में एक्सपेरिटमेंट नहीं कर पायीं, क्योंकि उनके लिए सब नया था। हॉस्टल आकर वे खूब रोयीं और घर फोन करके कहा कि वापस आ रही हैं। इस पर मां ने बस इतना ही कहा कि अगर तुम वापस आ गई तो गांव की बाकी लड़कियों के लिए हमेशा के लिए रास्ता बंद हो जाएगा। तब सुरभि की आत्मा जागी और उन्होंने तय किया कि चाहे जो हो जाए वे अंग्रेजी पर कमांड करके ही रहेंगी। लेकिन, उन्होंने हिम्मत नहीं हारने के जज्बे और लगातार प्रयास करते रहने के दृढ़ संकल्प ने अंग्रेजी पर पकड़ मजबूत बनाई। इसके लिए हर दिन कम से कम 10 नए शब्द सीखे। इस प्रयास का नतीजा यह हुआ कि सुरभि ने पहले सेमेस्टर में टॉप किया और कॉलेज चांसलर अवार्ड हासिल किया। बाद में उन्होंने विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त कर गोल्ड मेडल प्राप्त किया।
इंजीनियरिंग करने के बाद उनकी जॉब टीसीएस में अच्छी सैलरी पर लग गईं। इसके बाद एक दिन सुरभि ने अपनी मां से कहा कि अब मैं कुछ नहीं करना चाहती, अब बहुत थक गई हूं। तब उसकी मां ने फिर उस उस न्यूज़ की याद दिलाई और कहा कि तुम्हारे जीवन का लक्ष्य कलेक्टर बनना है। अभी और मेहनत करो, तुम इस लक्ष्य को पा लोगी। मां की बात को आत्मसात कर सुरभि ने एक बार फिर उस न्यूज़ को पढ़ा और अपने मिशन में जुट गई।
उनकी मेहनत रंग लाई और साल 2016 में उन्होंने यूपीएससी क्रैक किया और ऑल इंडिया 50वीं रैंक हासिल की और IAS बनकर अपने गांव और परिवार का नाम रोशन किया। जिस सुरभि का लोग अंग्रेजी नहीं आने पर मजाक उड़ाया करते थे, वो आज लाखों लोगों के लिए मिसाल हैं। वे देश की सबसे कम उम्र की IAS अधिकारियों में से एक हैं। IAS के बाद उन्हें गुजरात कैडर मिला और सुरभि गौतम फ़िलहाल गुजरात के वीरमगाम जिले में अपर कलेक्टर और जिला विकास अधिकारी के रूप में कार्यरत है।