पर्यटन
Kukur Dev Temple- Chhattisgarh: मंदिर के गर्भगृह के अलावा यहां के प्रवेश द्वार पर भी दोनों ओर कुत्तों की प्रतिमा है
भारत के छत्तीसगढ़ में एक ऐसा मंदिर है, जहां कुत्ते की पूजा की जाती है. इस मंदिर के निर्माण की कहानी भी बड़ी रोचक है और लोगों की इसमें गहरी आस्था है. यहां आने वाला हर शख्स मंदिर में सिर झुकाने जरूर आता है.इस अनूठे मंदिर की जानकारी दे रहें है लेखक श्री विक्रमादित्य सिंह ठाकुर ।
कुकुर देव मंदिर- छत्तीसगढ़
कुत्ता को छत्तीसगढ़ी भाषा में कुकुर कहा जाता है, पृथ्वी में संभवतः मनुष्य के बाद सर्वाधिक महत्व कुत्ते का है। कई घरों में तो कुत्ते को इतनी सुख सुविधाओं, लाड़ प्यार से रखा जाता है कि इससे आम आदमी को भी ईर्ष्या होती है। कुत्ते की अनेक विशेषताएँ है जो उसे आम पशुओं से अलग करती है। कुत्ते की स्वामी भक्ति तो विशेष रूप से प्रसिद्ध है।यदि आप भगवान दत्तात्रेय के रूप को ध्यानपूर्वक देखें तो आप उन्हें कभी भी अकेला नहीं पाएंगे । उनके पीछे एक गाय और आसपास चार कुत्ते देखे जा सकते हैं । गाय (पीछे की ओर खडी) : पृथ्वी एवं कामधेनु (इच्छित फल देनेवाली) चार कुत्ते : चार वेद के प्रतिरूप हैं।
भगवान् कृष्ण ने यह भी कहा है कि मैं प्रत्येक प्राणी के ह्रदय में बसता हूँ।
ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति।
भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारुढानि मायया৷৷18.61৷৷
भावार्थ : हे अर्जुन! शरीर रूप यंत्र में आरूढ़ हुए संपूर्ण प्राणियों को अन्तर्यामी परमेश्वर अपनी माया से उनके कर्मों के अनुसार भ्रमण कराता हुआ सब प्राणियों के हृदय में स्थित है ।
तो फिर क्या कुत्ता, क्या मनुष्य सब में वही परमेश्वर स्थित है।
हमारे धर्म शास्त्रों के अनुसार देवी-देवताओं का अपना एक विशेष वाहन होता है और कालभैरव का वाहन कुत्ता है। भैरव वाहन पर बैठे तो कभी दिखाई नहीं देते हैं, परन्तु उनके साथ में एक काला कुत्ता सदा रहता है। इस प्रकार कुत्ते का महत्व भारतीय संस्कृति में कम नहीं है।
वर्तमान में एक भारतीय महिला सांसद का कुत्ता प्रेम अत्यंत चर्चित हो रहा है।खैर अब विषय पर आते हैं।
हमारे देश में देवी-देवताओं के एक से बढ़कर एक मंदिर हैं।लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि भारत में एक ऐसा भी मंदिर है, जिसमें कुत्ते की पूजा होती है। इस मंदिर को कुकुरदेव मंदिर के नाम से जाना जाता है। यहां की अजीबोगरीब मान्यता और इस मंदिर के निर्माण की कहानी भी अत्यंत रोचक है।
कुकुरदेव मंदिर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब 132 किलोमीटर दूर बालोद जिला मुख्यालय से छह किलोमीटर दूर, बालोद से राजनांदगांव की ओर जाने वाली सड़क पर स्थित ग्राम मालीघोरी में बांई ओर स्थित है। इस मंदिर के गर्भगृह में शिव लिंग के साथ ही बग़ल में कुत्ते की प्रतिमा भी स्थापित है।
सावन के महीने में इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या काफी बढ़ जाती है, क्योंकि सावन का महीना भगवान शंकर की आराधना का होता है। दर्शनार्थी भगवान् शिव जी के साथ-साथ कुत्ते (कुकुरदेव) की भी वैसे ही पूजा करते हैं जैसे शिवमंदिरों में नंदी की पूजा होती है।
कुछ वर्ष पूर्व तक कि इस स्थान पर यह एक अकेला मंदिर था पर अब मंदिर के निकट अन्य देवी देवताओं जैसे भगवान शंकर, भगवान हनुमान जी, दुर्गामाता इत्यादि के छोटे छोटे मंदिर बनाए गए हैं। मंदिर के गर्भगृह के अलावा यहां के प्रवेश द्वार पर भी दोनों ओर कुत्तों की प्रतिमा है। स्थानीय निवासियों की ऐसी मान्यता है कि कुकुरदेव का दर्शन करने से न कुकुरखांसी होने का डर रहता है और न ही कुत्ते के काटने का खतरा रहता है।वस्तुतः, कुकुरदेव मंदिर एक स्मारक है। एक स्वामिभक्त कुत्ते की स्मृति में बंजारा परिवार द्वारा इसे बनाया गया था। ऐसी मान्यता कि सदियों पहले एक बंजारा अपने परिवार के साथ इस गांव में आया था, उसके साथ एक कुत्ता भी था।
गांव में एक बार अकाल पड़ गया तो बंजारे ने गांव के साहूकार से कर्ज लिया, लेकिन जब वह कर्ज वो वापस नहीं कर तब उसने अपना वफादार कुत्ता, साहूकार के पास गिरवी रख दिया। एक बार साहूकार के यहां चोरी हो गई। चोरों ने सारा माल जमीन के नीचे गाड़ दिया और सोचा कि बाद में उसे निकाल लेंगे, लेकिन कुत्ते को उस लूटे हुए माल के बारे में पता चल गया और वह साहूकार को गड़े हुए धन तक ले गया। कुत्ते की बताई जगह पर साहूकार ने गड्ढा खोदा तो उसे अपना सारा धन मिल गया।कुत्ते की स्वामीभक्ति से प्रसन्न होकर साहूकार ने उसे मुक्त करने का निर्णय लिया। इसके लिए उसने बंजारे के नाम एक पत्र लिखा और कुत्ते के गले में लटकाकार उसे उसके मालिक के पास भेज दिया। कुत्ता जैसे ही बंजारे के पास पहुंचा, बंजारे को लगा कि कुत्ता साहूकार के पास से भागकर आया है। इसलिए उसने गुस्से में आकर कुत्ते को पीट-पीटकर मार डाला। बाद में बंजारे ने कुत्ते के गले में लटकी साहूकार का पत्र पढ़ा तो उसे अत्यंत पश्चाताप हुआ। उसके बाद उसने उसी जगह कुत्ते को समाधि दे दी। और उस पर स्मारक बनवा दिया। स्मारक को बाद में लोगों ने मंदिर का रूप दे दिया, जिसे आज लोग कुकुर देव मंदिर के नाम से जानते हैं।
छत्तीसगढ़ संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग द्वारा मंदिर स्थल पर लगाए गए सूचना पटल के अनुसार इस मंदिर का निर्माण फणि नागवंशी शासकों द्वारा चौदहवीं- पंद्रहवीं शती ईसवी के मध्य किया गया था।
मंदिर की वर्तमान भौतिक स्थिति जर्जर है। यहाँ एक शिलालेख भी है ,जो अपठनीय है।