कानून और न्याय: ‘अधिवक्ता संरक्षण बिल’ समय की बड़ी आवश्यकता

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अधिवक्ता (संरक्षण) बिल आज समय की आवश्यकता है, जिसे अविलंब लाया जाना चाहिए। वकीलों के साथ हिंसक घटनाऐं निरंतर बढ़ती जा रही है। जौधपुर में एक अधिवक्ता की हत्या ने पुनः भारत में वकीलों की सुरक्षा की और ध्यान आकर्षित किया है। वकीलों के खिलाफ निरंतर हिसंक घटनाओं में वृद्धि ने अभिभाषकों की चिंता को बढ़ाया है। कई स्थानों पर वकीलों की हत्या तक हो रही है। हाल की घटनाओं ने अधिवक्ता (संरक्षण) बिल की महत्ता को पुनः स्थापित किया है। हाल के कुछ बरसों में वकीलों के खिलाफ अपराधों में वृद्धि हुई है।

इन घटनाओं ने एक बार पुनः अधिवक्ता (संरक्षण) बिल को पारित करने की और ध्यान आकर्षित किया है। जिस प्रकार चिकित्सकों और मरीजों के मध्य विश्वास कम हुआ है तथा आर्थिक महत्व में वृद्धि हुई है, ऐसा ही कुछ वकीलों तथा पक्षकारों के मध्य भी हुआ है। अब पहले वाली स्थिति नहीं रही है। ऐसा क्यों हो रहा है, इस स्थिति पर अभिभाषकों तथा उनके संगठनों को भी प्राथमिकता से ध्यान देना चाहिए।

हाल ही में दिल्ली, जौधपुर की नृशंस हत्याओं के मामले ने एक बार फिर भारत में वकीलों की सुरक्षा पर सवाल खड़ा कर दिया है। हाल के वर्षों में भारत में वकीलों के खिलाफ अपराधों में अचानक वृद्धि हुई है। आगरा, गुजरात के कच्छ, तेलंगाना में हाईकोर्ट के वकील दंपत्ति की हत्या जैसे कई उदाहरण है। मध्यप्रदेश के जबलपुर के तथा मुंबई में एडवोकेट पर हमला आदि ऐसे कुछ उदाहरण हैं, जो बताते हैं कि भारत में वकील कितने असुरक्षित हैं। ये अपराध पुलिस विभाग और प्रशासन की ओर से लापरवाह और ढीले रवैये को दर्शाते हैं। ऐसी घटनाओं के विरोध में देशभर की कई अदालतों के अधिवक्ता हड़ताल और न्यायिक कार्य को अनिश्चितकालीन बहिष्कार का आह्वान कर रहे हैं। वकीलों पर व्यक्तिगत और संस्थागत रूप से हमले लगातार हो रहे हैं। इससे स्वतंत्र रूप से सुरक्षित रूप से कानून का अभ्यास करने की उनकी क्षमता खतरे में पड़ गई है।

न्यायालयों में वकीलों की निडरता, स्वतंत्रता, शुचिता, ईमानदारी, समानता ऐसे गुण हैं जिनकी बलि नहीं दी जा सकती है। मौलिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के प्रति सम्मान बनाए रखने के लिए कानूनी पेशे की स्वतंत्रता जरुरी है। यदि अधिवक्ता स्वतंत्रत, निष्पक्ष, वस्तुनिष्ठ और अखंडता, स्वायत्तता और तटस्थता के साथ कार्य करने में असमर्थ होंगे तो न तो विधि शासन कायम रह सकता और न न्याय ठीक से प्रशासित हो सकता है।

प्रिंसिपल्स एवं विएना डिक्लेरेन ऑन हयूमन राइट्स, 1993 द्वारा कानूनी पेशे की स्वतंत्रता को एक लोकतांत्रिक प्रणाली की विषिष्ट विशेषता के रूप में दृढ़ता से स्थापित किया गया है जिसको संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) और यूनाइटेड नेशन जनरल असेंबली में कई राज्य संकल्प द्वारा समर्थन प्राप्त हुआ। यूनाइटेड नेशंस बेसिक प्रिंसिपल्स ऑनद रोल ऑफ लॉयर्स (यूएनबेसिक प्रिंसिपल्स) के अनुसार, कानूनी पेशे की स्वतंत्रता लोकतांत्रिक समाज में कानून के शासन को बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण आधार है। नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय अनुबंध के अनुसार, कानूनी पेशेवरों को उत्पीडित करने से मुवक्किल के अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है।

क्यूबा के अनुच्छेद 16 के अनुसार सरकारें यह सुनिश्चित करेंगी कि वकील अपने सभी पेशेवर कार्यों को बिना किसी धमकी, बाधा, उत्पीड़न या अनुचित हस्तक्षेप के करने में सक्षम हो तथा अपने देश और विदेश दोनों में स्वतंत्र रूप से यात्रा करने और अपने मुवक्किल के साथ परामर्श करने में सक्षम हो। साथ ही मान्यता प्राप्त पेशेवर कर्तव्यों, मानकों और नैतिकता के अनुसार की गई किसी भी कार्रवाई के लिए अभियोजन या प्रशासनिक,आर्थिक या अन्य प्रतिबंधों का सामना नहीं करना पड़ेगा या उन्हें धमकी नहीं दी जाएगी। मानवाधिकार रक्षकों पर संयुक्त राष्ट्र उद्घोषणा 9 दिसंबर 1998 के अनुच्छेद 12 के अनुसार राज्य ऐसे समस्त आवश्यक कदम उठाएगा, जो सक्षम अधिकारिकताओ द्वारा सभी को उनके वर्तमान घोषणा पत्र से संबंधित विधिक अधिकारों के क्रियान्वयन के फलस्वरूप पैदा हुई हिंसा, खतरे, प्रतिकार, प्रतिकूल, भेदभाव, दबाव अथवा अन्य किसी मनमानी कार्यवाही के विरुद्ध संरक्षण को सुनिश्चित करें।

कानून के शासन को बनाए रखने और संकट के समय में न्यायाधीशों और वकीलों की भूमिका पर आईसीजे जिनेवा घोषणा के सिद्धांत 7, 2011 में कहा गया है। सरकार की सभी शाखाओं को वकीलों को हिंसा, धमकियों, प्रतिशोध, वास्तविक या कानूनी भेदभाव, दबाव और अन्य मनमाने कार्य से बचाने के लिए उपाय करना चाहिए। बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने 2 जुलाई 2021 को अधिवक्ता संरक्षण विधेयक,2021 का ड्राफ्ट तैयार किया। इस ड्राफ्ट विधेयक का प्रमुख लक्ष्य वकीलों और उनके परिवारों को मारपीट, अपहरण, अवैध कारावास जैसे अपराधों के खिलाफ सुरक्षा सुनिश्चित करना है।

अधिवक्ता (संरक्षण) विधेयक, 2021 में अधिवक्ता सुरक्षा और वकीलों के लिए वित्तीय सहायता के प्रावधान भी शामिल हैं। इसके अलावा, यदि कोई उनके अधिकारों का उल्लंघन करने की कोशिश करता है। साथ ही यह वकीलों को मुआवजा भी देने का उल्लेख करता है। बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने कई राज्यों से वकीलों की सुरक्षा के संबंध में एक कानून बनाने का अनुरोध किया है, लेकिन उनके अनुरोध और हजारों वकीलों की मांगों को अनसुना कर दिया गया है।

बीसीआई ने पहले ही 2021 में अधिवक्ता संरक्षण कानून का एक ड्राफ्ट कानून केंद्रीय कानून मंत्रालय को सौंप दिया था। लेकिन, अब तक कोई केंद्रीय कानून नहीं है। जोधपुर में एक वकील की हत्या के विरोध में राज्य के वकीलों द्वारा बहिष्कार के बीच बीसीआई ने राजस्थान सरकार से वकीलों और उनके परिवारों की सुरक्षा पर एक कानून बनाने में शीघ्रता का अनुरोध किया था। राजस्थान सरकार ने प्रस्ताव पर सहमति व्यक्त की। राजस्थान एडवोकेट्स प्रोटेक्शन बिल, 2023 पारित किया। अब राजस्थान वकीलों को सुरक्षा प्रदान करने वाले कानून बनाने वाला देश का पहला राज्य है। अन्य राज्यों को भी इस कानून को लागू करने पर शीघ्रता से विचार करना चाहिए। वकीलों की सुरक्षा तभी सुनिश्चित की जा सकती है जब केंद्र सरकार और अन्य राज्य सरकारें भी कानून बनाएं। मध्यप्रदेश सरकार भी इस मांग को स्वीकार करने का आश्वासन तो कई बार दे चुकी है। लेकिन, दुर्भाग्य से अभी तक इस दिशा में कुछ नहीं हुआ है।

निवारण समिति विधेयक में अगला महत्वपूर्ण प्रावधान एक निवारण समिति के गठन का है। अधिवक्ताओं और बार एसोसिएशनों की शिकायतों के निवारण के लिए प्रत्येक स्तर अर्थात जिला, उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में तीन सदस्यीय समिति प्रदान की गई है। इस समिति का मुखिया उस स्तर की न्यायपालिका का प्रमुख होता है। इसमें यह प्रावधान है कि एक ऐसे वकील के विरूद्ध कोई मुकदमा नहीं चलाया जाना चाहिए जो श्रद्धा पूर्वक कार्य कर रहा हो। अधिवक्ता उनके मुवकीलों के बीच संचार का सम्मान किया जाना चाहिए और गोपनीयता की रक्षा की जानी चाहिए। अधिवक्ता को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। धारा 11 में प्रावधान है कि ‘‘कोई भी पुलिस मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के विशिष्ट आदेश के बिना किसी वकील को गिरफ्तार नहीं करेगा और न ही किसी वकील के खिलाफ मामले की जांच नहीं करेगा।

जब किसी व्यक्ति द्वारा किसी पुलिस थाने के प्रभारी अधिकारी को किसी अपराध की सूचना दी जाती है, तो पुलिस अधिकारी ऐसे अधिकारी द्वारा रखी जाने वाली पुस्तक में सूचना के सार को लिखेगा और उसे मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को संदर्भित करेगा। अन्य संबंधित सामग्री के साथ जानकारी निकटतम मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को, जो मामले की प्रारंभिक जांच करेगा और संबंधित मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अधिवक्ता को नोटिस जारी करेगा और उसे या उसके वकील या प्रतिनिधि को सुनवाई का अवसर देगा। सुनवाई के बाद अगर सीजेएम को पता चलता है कि एडवोकेट के आधिकारिक कर्तव्यों के निर्वहन से उत्पन्न कुछ दुर्भावनापूर्ण कारणों से एडवोकेट के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है, तो सीजेएम एडवोकेट को जमानत देगा।

बिल में एक बड़ा प्रावधान सामाजिक सुरक्षा का है। बिल का प्रस्ताव है कि राज्य और केंद्र सरकार को प्राकृतिक आपदाओं या महामारी जैसी अप्रत्याशित परिस्थितियों में देश के सभी जरूरतमंद अधिवक्ताओं को वित्तीय सहायता प्रदान करने के प्रावधान करने होंगे। हर महीने कम से कम पंद्रह हजार रुपये प्रदान किए जाएंगे। वकीलों के खिलाफ बढ़ रहे इन अपराधों के कारण अधिवक्ताओं के बीच अधिवक्ताओं के संरक्षण अधिनियम बिल को पारित करने की मांग तेजी से की जा रही है। अभी भी बिल प्रस्तावित है। अधिवक्ता (संरक्षण) बिल 2021 की प्रस्तावना में कहा गया है कि यह बिल अधिवक्ताओं की सुरक्षा और पेशेवर कर्तव्यों के निर्वहन में उनके कार्यों के लिए है। यह बिल के उद्देश्यों और कारणों को बताता है। यह बिल अधिवक्ताओं के लिए सामाजिक सुरक्षा और जीवन के लिए न्यूनतम आवश्यकता सुनिश्चित करने के लिए भी कहता है।

इस प्रस्तावित बिल की धारा 3 और 4 सजा और मुआवजे के बारे में बात करते हैं। इसमें वकीलों पर होने वाले आपराधिक गतिविधि पर पहली बार कृत्य करने पर सजा 6 महीने से शुरू होकर 5 साल तक जाती है और बाद के अपराध के लिए 10 साल तक। जुर्माना पचास हजार रुपये से शुरू होता है और एक लाख रुपये तक जाता है। पश्चातवर्ती अपराधों के लिए दस लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। यह बिल अदालत के वकीलों के खिलाफ किये गए अपराधों के लिए मुआवजा देने का भी अधिकार देता है। एसपी से ऊपर के स्तर के अधिकारी द्वारा जांच और पुलिस सुरक्षा की बात भी यह बिल करता है। केन्द्रीय सरकार को तुरंत इस बिल पर वैधानिक कार्यवाही करवाकर संसद में इसे पारित करवाना चाहिए।

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विनय झैलावत

लेखक : पूर्व असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल एवं इंदौर हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता हैं