Journeys of Mystery and Fear: रहस्य और रोमांच से भरी ननिहाल की यात्रा , मुझे ही क्यों दिखी वह!
नीति अग्निहोत्री
यह घटना ननिहाल की है तब मैं लगभग पंद्रह वर्ष की थी । दो महीने की गर्मी की छुट्टियां ननिहाल में बिताते थे । माताजी की तीन बहनें और चार भाई सब नानी जीवित थीं तब तक गर्मी वहीं इकट्ठे होकर बिताते थे । बहुत ही आनंद आता था और रात्रि के समय कोई ताश खेलता तो कोई कैरमबोट और हम बच्चे छिपा छाई खेलते थे ।
नाना जी हाइकोर्ट जज थे और अवकाश प्राप्ति के बाद वकालत करने लगे थे। नाना जी ने मुवक्किलों के लिए एक नया कमरा बनवाया जो मुख्य घर की बगल में ही था। वहांं मोटेऔर बड़े गद्दे नाना जी ने डलवाए थे स्वयं के लिए और मुवक्किलों के लिए दरी बिछा दी थी बैठने के लिए। उस कमरे को नई बैठक बोलते थे। रात्रि में वहां कोई सोना तो क्या जाना भी पसंद नहीं करता था । किसी की हिम्मत नहीं होती कि वहां रात्रि में किसी आवश्यक कार्य से भी चला जाए।
थोड़ा समझने लगे तो पूछा कि उस कमरे से डरने का कारण क्या है तो मौसी ने बताया कि वहां रात्रि में जोर -जोर से किसी के सांस लेने की आवाज आती है और अजीब सी आवाजें आती हैं । पहले घर बहुत बड़े होते थे और आंगन व बारामदे भी बहुत बड़े होते थे । हम सब गर्मियों में वहीं पलंग लगा कर सो जाते ।
एक बार जोरदार पानी ,आंधी और तूफानी हवाएं चलने लगीं। हम काफी लोग थे तो जाकर उस नई बौठक में सो गए । मैं सबके बीच में सोई डर के मारे । उस बैठक में नाना जी सात से नौ अपने दोस्तों के ताश समय गुजारने के लिए अपने मित्रों के साथ ताश खेलते थे । रात्रि को मेरी आंख खुली तो लगा कोई बैठक में चल कर आया है । फिर ताशों के फड़फड़ाने की आवाज आई । मैंने डर के मारे आंख नहीं खोली । फिर किसी के चलने की आवाज आई ।
Journeys full of Mystery and Adventure 4:आधी रात ,मेहंदी लगे हाथ और सुनसान सड़क
मैं दम साधे पड़ी रही । जब आवाजें बंद हो गईं तो मैंने आंखें खोली तो देखा कि बैठक का जो बाहर की निकासी का दरवाजा है वहां एक करीब पंद्रह सोलह साल की लडकी कोने में पीला टॉप और हरी स्कर्ट पहन कर खड़ी है । पहले दरवाजे अलग सांकल वाले होते थे और बीच की झिरी में से सड़क की ट्यूब लाइट का प्रकाश आ रहा था और वह साफ -साफ नजरआ रही थी । आंखों की जगह केवल गड्ढे ही दिख रहे थे । मेरे मुंह से आवाज ही नहीं निकले कि किसी पास वाले को जगा लूं । मैं हिल -डुल भी नहीं रही थी कि कहीं उसको मालूम न पड़ जाए कि मैं जग रही हूं । मैं आंखें मूंदे पड़ी रही और फिर न जाने कब नींद आ गई।
सबेरे मैंने सबको बताया और पूछा कि वह कौन थी ? मालूम पड़ा कि नाना जी ने वह मकान किसी अंग्रेज से खरीदा था ,क्योंकि रातों-रात अंग्रेजों को भारत छोड़ कर जाना पड़ा था । उस अंग्रेज की चौदह -पंद्रह साल की लड़की ने उस जगह आत्महत्या कर ली थी । अब तो ननिहाल जाना वर्षों से नहीं हुआ ,परन्तु वह रात्रि अभी तक नहीं भूल पाई हूं ।
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