पलक्कड़ का मां हेमांबिका का अनूठा मंदिर, कांग्रेस के चुनाव चिन्ह का प्रेरणास्रोत

नवरात्रि और लोकसभा चुनाव के माहौल में जानिए केरल के इस अनोखे मंदिर के बारे में

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पलक्कड़ का मां हेमांबिका का अनूठा मंदिर, कांग्रेस के चुनाव चिन्ह का प्रेरणास्रोत

केरल से सुदेश गौड़

देशभर में लोकसभा चुनाव और नवरात्रि के पर्व को लेकर लोगों में भारी उत्साह है। दक्षिण भारत में भी नवरात्रि का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। आज केरल में स्थित देवी मां के एक ऐसे मंदिर के बारे में चर्चा की जा रही है जिसका धार्मिक महत्व के साथ ही राजनीतिक महत्व भी है। मां का यह मंदिर केरल के पलक्कड़ जिले की कल्लेकुलंगरा तहसील में है। सबसे खास बात यह है कि इस मंदिर में माता की मूर्ति नहीं बल्कि दोनों हाथ की पूजा की जाती है। हेमांबिका मंदिर में लोग दूर दूर से देवी मां के दर्शन को आते हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी की दादी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की भी इस मंदिर में विशेष आस्था थी।

*जनश्रुति पर आधारित मंदिर का इतिहास*

मंदिर का वर्तमान स्वरूप करीब 1500 साल पुराना बताया जाता है। इस मंदिर को लेकर जनश्रुति पर आधारित दो कहानियां प्रचलित हैं। पहली कहानी के मुताबिक, माता पार्वती एक राक्षस के हमले से बचने के लिए जब भाग रही थीं, उस दौरान वह फिसलकर तालाब में जा गिरीं। उन्होंने तालाब के अंदर से दोनों हाथ उठाकर भगवान शिव को बचाने के लिए पुकारा, भगवान शिव तत्काल आए और राक्षस का वध कर दिया। पानी के ऊपर उठे पार्वती के वो दोनों हाथ यहां मूर्ति के रूप में स्थापित किए गए और उन्हीं की पूजा की जाती है।
वहीं, दूसरी कहानी यहां के पंडित बताते हैं कि 1500 साल पहले कल्लेकुलंगरा का एक पुजारी लगभग 15 किलोमीटर दूर मलमपुझा के अकमलावरम मंदिर में रोज पूजा करने जाता था। जब वो बूढ़ा हो गया तब उसने इतनी दूर पैदल चलने में असमर्थता जताते हुए देवी मां से कुछ वैकल्पिक रास्ता निकालने की प्रार्थना की। एक दिन उन्होंने कल्लेकुलंगरा के तालाब में एक महिला को डूबते देखा, जिसके केवल दो हाथ दिखाई दे रहे थे। उन्होंने आगे बताया कि जब महिला को बचाने की कोशिश की गई तो वह एक मूर्ति बन गई। लोगों ने उन्हीं दो हाथों को वहां मूर्ति के रूप में स्थापित कर दिया।
भगवान परशुराम ने की थी स्थापना
मंदिर के पुजारी बताते हैं- हेमांबिका मंदिर देवी के 4 प्रमुख अंबिका मंदिरों में से एक है, जिनकी स्थापना भगवान परशुराम ने की थी। तीन और मंदिर हैं, एक मूकांबिका जो उडुपी में है, दूसरा लोकांबिका जो केरल के ही कोडूंगालूर में है और तीसरा बालांबिका मंदिर जो कन्याकुमारी में है। इन चारों मंदिरों को अंबीकलायम कहते हैं। केरल के अन्य बड़े मंदिरों की तरह यह मंदिर भी यहां राजा के अधीन था, जिसे बाद में मालाबार देवस्वम बोर्ड ने अपने अधिकार में ले लिया। इस बोर्ड का गठन 2008 में हुआ था और इसके अधीन अभी 1340 मंदिर हैं। आज भी इस मंदिर में राजा का राज्याभिषेक किया जाता है। हेमांबिका मंदिर को इमूर भगवती मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।

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*हेमांबिका मंदिर और कांग्रेस का संबंध*

कांग्रेस पार्टी का वर्तमान चुनाव चिह्न हाथ का पंजा के बजाय किसी जमाने में ‘गाय बछड़ा’ हुआ करता था। लेकिन आपातकाल के बाद कांग्रेस में मचे अंदरूनी घमासान के बाद पार्टी की टुकड़ों में बंट गई थी। तब चुनाव आयोग ने कांग्रेस के चुनाव चिह्न ‘गाय बछड़ा’ को निरस्त कर दिया था। इंदिरा गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस नए चुनाव चिह्न पर विचार कर रही थी। गांधी ने इस दौरान पंजे को चुनाव चिह्न के रूप में चुना। ये हाथ का पंजा इंदिरा गांधी ने इसी हेमांबिका मंदिर को ध्यान में रखकर चुना था। इमरजेंसी के बाद इंदिरा गांधी अपना जनाधार खो चुकी थीं और अलोकप्रियता के शिखर पर थीं। उसी दौरान वह केरल आई थीं और तत्कालीन मुख्यमंत्री के. करुणाकरण के साथ हेमांबिका मंदिर दर्शन के लिए गई थीं। पलक्कड़ के पुराने कांग्रेसी वी राघवन बताते हैं कि उस दौरान इंदिरा गांधी के साथ सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस पीएस कैलासम की पत्नी सौंदर्या कैलासम भी मौजूद थीं। सौंदर्या कैलासम ने उन्हें मंदिर की महिमा और विशेष मूर्ति के बारे में बताया था, जिससे इंदिरा काफी प्रभावित हुईं और यहीं से पंजे को चुनाव चिह्न बनाने का मन बना लिया। उनका ये कदम सफल साबित हुआ, 1980 के लोकसभा चुनाव में वो फिर विरोधियों को शिकस्त देकर दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुईं थी। जीतने के बाद 13 दिसंबर 1982 को इंदिरा गांधी यहां दोबारा आईं और उन्होंने मंदिर में एक बड़ा घंटा और दक्षिणा चढ़ायी थी। तब से इस मंदिर में कांग्रेस समर्थकों की आस्था बढ़ गई है।