कुम्हला गए ‘कमल’, Pradesh Congress को कड़वी दवा की जरूरत

कुम्हला गए ‘कमल’, Pradesh Congress को कड़वी दवा की जरूरत

भाजपा में ‘शिव’ और ‘विष्णु’ की जोड़ी ने फिर कमाल किया और ‘कमल’ एक बार फिर कुम्हला गए। हम बात कर रहे हैं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा एवं प्रदेश कांग्रेस(Pradesh Congress) अध्यक्ष कमलनाथ की। विधानसभा चुनाव के बाद शिवराज सिंह चौहान सम्हल गए। उन्होंने कांग्रेस से न सिर्फ सत्ता वापस हासिल की, अपवाद छोड़कर वे कमलनाथ को लगातार शिकस्त भी दे रहे हैं।

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एक लोकसभा एवं तीन विधानसभा सीटों के उप चुनाव नतीजे इसके ताजा प्रमाण हैं। इनसे साफ है कि कांग्रेस (Pradesh Congress)के परंपरागत और मजबूत पृथ्वीपुर एवं जोबट जैसे गढ़ ढह गए और अरुण यादव को टिकट न देकर खंडवा लोकसभा सीट में भी कुछ हासिल नहीं कर सके।

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रैगांव विधानसभा सीट कांग्रेस ने जीती तो इसकी वजह प्रदेश नेतृत्व नहीं, दमोह की तरह वहां के स्थानीय कारण रहे। नतीजों से साफ है कि कमलनाथ न पार्टी को सफल नेतृत्व दे पा रहे और मैनेजमेंट को लेकर उनके बारे में बनी धारणा भी धूल धूसरित है। नाथ यदि अब भी दोनों पदों (प्रदेश अध्यक्ष एवं नेता प्रतिपक्ष) पर डटे रहते हैं। अपनी असफलता स्वीकार नहीं करते। मप्र न छोड़ने की अपनी जिद पर कायम हैं तो मप्र में कांग्रेस की वापसी दिवास्वप्न बन कर रह सकती है। कांग्रेस आलाकमान को ही पंजाब की तर्ज पर कड़वी दवा का इस्तेमाल करना होगा। सवाल है कि क्या आलाकमान कमलनाथ के लिए अमरिंदर सिंह जैसा कड़ा रुख अपना पाएगा?

*फायदा कम, नुकसान ज्यादा*

– चार में से तीन सीटें हारने का मतलब यह कतई नहीं है कि कांग्रेस ने सिर्फ गंवाया, हासिल कुछ नहीं किया। कांग्रेस (Congress )को पृथ्वीपुर एवं जोबट में परायज का सामना करना पड़ा लेकिन उसने रैगांव सीट छीनी और खंडवा लोकसभा क्षेत्र में अपना वोट प्रतिशत बढ़ाया। लोकसभा चुनाव की तुलना में खंडवा में कांग्रेस का दस फीसदी से ज्यादा वोट बढ़ा। इसे नफा-नुकसान के तराजू पर तौलें तो कांग्रेस को फायदा कम और नुकसान ज्यादा हुआ। एक, चार में से वह सिर्फ एक सीट जीती और दो, सत्ता में आने के लिए यह फायदा पर्याप्त नहीं है। इसीलिए कांग्रेस खेमें में सन्नाटा है और भाजपा में जश्न का माहौल। कांग्रेस ने अन्य राज्यों के उप चुनाव में यहां से बेहतर प्रदर्शन किया है।

*भाजपा के मुकाबले कोई रणनीति नहीं*

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– रैगांव विधानसभा सीट भले भाजपा हार गई लेकिन उप चुनाव में उसने प्रारंभ से रणनीति बनाकर काम किया। भाजपा को मालूम था कि पृथ्वीपुर एवं जोबट उसकी कमजोरी है। इसलिए उसने पृथ्वीपुर में सपा से पिछला चुनाव लड़कर दूसरे नंबर पर रहे शिशुपाल यादव को पार्टी में लाकर टिकट दिया और जोबट में सुलोचना रावत को कांग्रेस से तोड़कर। पृथ्वीपुर में ब्राह्मणों से खतरा था तो गोपाल भार्गव जैसे कद्दावर मंत्री का डेरा डलवा दिया और जोबट सीट ज्योतिरादित्य सिंधिया के सिपहसलारों गोविंद सिंह राजपूत एवं राजवर्धन सिंह दत्तीगांव के साथ टीम को सौंप दी। खंडवा में खतरा भांप कर कांग्रेस का एक और विधायक तोड़ लाई। इसके मुकाबले कमलनाथ की टीम बिना किसी रणनीति के मैदान में दिखी। सभाएं भी उन्होंने इक्का-दुक्का ही लीं। नतीजा, भाजपा की बल्ले-बल्ले और कांग्रेस हक्की-बक्की।

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*पहली बार असफल नहीं हुए कमलनाथ*

– कमलनाथ पहली बार फेल नहीं हुए, प्रदेश में सत्ता हासिल करने के बाद से ही वे अलोकप्रिय हो रहे हैं और असफल भी। इसी का नतीजा है कि 22 विधायक ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़कर चले गए और कांग्रेस सत्ता से बेदखल हो गई। 28 सीटों के उप चुनाव में भाजपा ने 21 पर शानदार जीत हासिल कर सत्ता बरकरार रखी। मलेहरा के उप चुनाव में भी कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। दमोह सीट कांग्रेस जीती तो इसकी वजह भाजपा के कद्दावर नेता जयंत मलैया की भाजपा से नाराजगी थी। इधर पार्टी में सिंधिया के जाने के बावजूद कमलनाथ का अरुण यादव एवं अजय सिंह जैसे नेताओं के साथ छत्तीस का आंकड़ा है। अर्थात ऐसे कोई संकेत नहीं है कि कमलनाथ के नेतृत्व में कांगे्रस वापसी कर सकती है।
*कांग्रेस (Pradesh Congress) नेतृत्व को कर रहे हैं मजबूर*

– अरुण अरुण यादव कह चुके हैं कि उन्होंने साढ़े चार साल तक प्रदेश में कांग्रेस को खड़ा करने में मेहनत की और कमलनाथ ने हमारी बोई फसल आकर काट ली। सत्ता में आने के बाद से कमलनाथ लगातार असफल साबित हैं तो क्या उन्हें खुद प्रदेश की राजनीति से नहीं हट जाना चाहिए? कांग्रेस नेतृत्व के सामने अपना एक पद छोड़ने की पेशकश नहीं कर देना चाहिए? कमलनाथ जैसा बड़ा नेता क्यों पार्टी आलाकमान को मजबूर कर रहा है कि वह उन्हें प्रदेश की राजनीति से हटाकर केंद्र में ले जाए? यह सब कमलनाथ को खुद सोचना चाहिए वर्ना कांग्रेस नेतृत्व पंजाब के अमरिंदर सिंह जैसी कड़वी दवा कमलनाथ को भी देने के लिए मजबूर हो सकता है। प्रदेश कांग्रेस का एक बड़ा वर्ग इसकी जरूरत महसूस कर रहा है।

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dinesh NIGAM tyagi
दिनेश निगम ‘त्यागी’