निजी विश्वविद्यालय विनियामक आयोग के इंस्पेक्शन पर सवाल, आयोग ने 14 साल से नहीं किया भौतिक सत्यापन

निजी विश्वविद्यालय प्रबंधन आयोग को नहीं सौंपते डेटा

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निजी विश्वविद्यालय विनियामक आयोग के इंस्पेक्शन पर सवाल, आयोग ने 14 साल से नहीं किया भौतिक सत्यापन

भोपाल। शासकीय उच्च शिक्षण संस्थानों को बेहतर बनाने के लिए जहां सरकार हर संभव प्रयास कर रही है। वहीं निजी विश्वविद्यालय विनियामक आयोग की उदासीनता के चलते निजी विश्वविद्यालय प्रबंधन ,आयोग की आंखों में धूल झोंकने का कोई मौंका नहीं छोड़ते है। प्रदेश में मौजूदा समय में 44 निजी विश्वविद्यालय संचालित हो रहे हैं। आयोग पिछले 14 साल से प्रदेश में संचालित हो रहे निजी विश्वविद्यालयों का भौतिक सत्यापन नहीं किया है। आयोग द्वारा भौतिक सत्यापन नहीं करने से निजी विश्वविद्यालय प्रबंधन बेलगाम होकर अपने- अपने विश्वविद्यालयों में प्रोफेशनल कोर्सो में सीटों की संख्या बढ़ाकर काली कमाई को अंजाम देने में जुटे हुए हैं। निजी विश्वविद्यालयों पर लगाम कसने के लिए आयोग केवल समय- समय पर फीस शुल्क की समीक्षा करके अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेता है। जबकि नियम यह है कि आयोग को प्रतिवर्ष विश्वविद्यालयों का निरीक्षण कर निरीक्षण प्रतिवेदन रिपोर्ट अपनी बेवसाइट पर अपलोड करें। निजी विश्वविद्यालय के खुलने के एक साल बाद ही आयोग विश्वविद्यालयों की जांच करता है। लेकिन प्रदेश में कई ऐसे विश्वविद्यालय है जिनके खुलने के कई साल बाद भी आयोग ने जांच नहीं किया।

निजी विश्वविद्यालय आयोग को नहीं सौंपते डेटा-

रेगुलटरी कमीशन ने निजी विश्वविद्यालयों पर नकेल कसने के लिए कई सारे नियम बनाए हैं। लेकिन आयोग द्वारा सख्ती नहीं बरतने पर भी विश्वविद्यालय प्रबंधन इसका सीधा लाभ उठाने में लगे हुए हैं। प्रत्येक निजी विश्वविद्यालय को प्रवेश सत्र समाप्त होने के 15 दिन बाद रेगुलटरी कमीशन को कक्षावार, संकायवार और प्रवेशित छात्रों की सूची आयोग को उपलब्ध कराना होता है। समय बीत जाने के बावजूद भी विश्वविद्यालय आयोग को संकायवार और कक्षावार की जानकारी का डेटा नहीं देते हैं। विश्वविद्यालय प्रबंधन केवल संपूर्ण फीस की एक फीसदी राशि आयोग को सौंपकर अपने कर्तव्य से इतिश्री कर लेते हैं। उच्च शिक्षा विभाग से जुड़े सूत्रों का कहना है कि अगर आयोग अपनी शक्ति का उपयोग करे तो निजी विश्वविद्यालयों में चल रहे गोरखधंधे का पर्दाफाश हो जाएगा।

टीचरों को सबसे ज्यादा नुकसान-
विश्वविद्यालय विनियामक आयोग द्वारा प्रतिवर्ष निजी विश्वविद्यालयों की जांच नहीं करने से विश्वविद्यालय जहां मोटी कमाई कर लेता है। वहीं सबसे ज्यादा नुकसान वहां पढ़ाने वाले प्राध्यापकों को उठाना होता है। उच्च शिक्षा विभाग का नियम है कि प्रोफेशनल कोर्स जैसे एमबीए और बीएड के प्राध्यापकों को यूजीसी की गाइडलाइन के तहत प्राध्यापकों के खातों में वेतन दिया जाए। निजी विश्वविद्यालय प्रबंधन कागजों पर प्राध्यापकों को वेतन गाइडलाइन के तहत देता है लेकिन प्राध्यापकों को प्रबंधन कैस में बहुत ही मामूली वेतन देता हैं।

बैक डेट में देते हैं प्रवेश-
उच्च शिक्षा विभाग से जुड़े लोगों का कहना है कि आयोग को संकायवार की जानकारी निजी विश्वविद्यालय प्रबंधन नहीं देता है। प्रोफेशनल कोर्सो में निर्धारित सीट से ज्यादा प्रवेश देकर विश्वविद्यालय प्रबंधन छात्रों से मोटी रकम वसूलकर अपने कारोबार को अंजाम देने में जुटे है। अभी हाल में ही ग्वालियर अंचल में फर्जी मान्यता लेकर संचालित करने वाले निजी महाविद्यालयों के खिलाफ एसटीएफ ने प्रकरण दर्ज किया है।