
रविवारीय गपशप: कुछ प्रशासनिक प्रसंग: जो होता है, अच्छे के लिए होता है
आनंद शर्मा
जीवन में अनेक बार ऐसा होता है कि आपका सोचा पूरा नहीं होता , ऐसी अवस्था में बजाय हताश होने के ये सोचना चाहिये कि हो सकता है , ईश्वर ने आपके लिए , आपसे बेहतर सोच रखा होगा । अपनी सरकारी नौकरी में कम से कम पोस्टिंग के सम्बन्ध में, ये बात मैंने सोलहों आने सही पायी है । नौकरी में इच्छायें देखी जायें तो वे असीमित होती हैं , घर के आसपास पोस्टिंग मिल जाये, जहाँ बच्चे पढ़ रहे हों वहां मिल जाये, जहाँ माँ बाप का इलाज चल रहा है वहां मिल जाये और जहाँ बीवी नौकरी कर रही हो वहां मिल जाये और इतने सारे विकल्पों में संयोग इक्कठे होते नहीं हैं, तब फिर सरकार या कहें ईश्वर की मर्ज़ी के अनुसार सब होता है , और धीरज से सोचो तो लगता है , यह सब अच्छे के लिए ही हुआ था ।
सीहोर में जब मेरी पदस्थापना हुई तो मेरे साथ ही साथ श्री अरुण तिवारी भी उस समय सीहोर में पदस्थ हुए । कलेक्टर श्री अजय सिंह थे, पदस्थापना के दुसरे दिन ही उन्होंने मुझे बुला कर पुछा “आप आष्टा एस.डी.एम. बनना चाहोगे ? मैंने हाँ कह दिया , पर दूसरे दिन आदेश देखा तो मुझे सीहोर का एस.डी.एम बनाया गया और श्री तिवारी आष्टा पदस्थ किये गए । मुझे अच्छा ना लगा , क्यूंकि परम्पराओं के अनुसार वरिष्ट अधिकारी मुख्यालय मैं पदस्थ किये जाते थे और श्री तिवारी मुझसे काफी वरिष्ट थे । अब इसका दूसरा पहलू भी देखें, कुछ समय बाद ही श्री तिवारी पदोन्नत हो कर अपर कलेक्ट सीहोर में हो गए , यानी यदि मैं तत्समय आष्टा चला गया होता तो इतने कम समय में वापस सीहोर कभी नहीं आ पाता , कोई और सीहोर का एस डी एम बनता और जो अमूल्य समय एक ही मुख्यालय पर पदस्थापना के समय मैंने श्री तिवारी जी के साथ बिताया वो आष्टा रहते हुए कभी नहीं हो पाता । आज भी श्री तिवारी जी के साथ मेरे घनिष्ट सम्बन्ध हैं और वे एक बड़े भाई की तरह अनेक अवसरों पर मुझे मार्गदर्शित करते रहते हैं । उन दिनों हमारे परिवार में मेरी छोटी बेटी भी आई , चूँकि सीहोर भोपाल से निकटतम दूरी पर था इसलिए बच्ची के जन्म पर होने वाली डाक्टरी जांच परीक्षा और परिचर्या में भोपाल की नज़दीकी से मुझे बहुत सुविधा हुई । इसी तरह जब मैं उज्जैन मैं पदस्थ हुआ तब मैं जिले में पदस्थ डिप्टी कलेक्टरों में सबसे वरिष्ठ था , और परंपरा के अनुसार मैं अपेक्षा कर रहा था कि मुझे एस.डी.एम. उज्जैन का चार्ज मिलेगा पर मुझे खाचरोद अनु विभाग का चार्ज दिया गया और श्री विनोद शर्मा उज्जैन में पदस्थ किए गये । अब संयोग देखिए , खाचरोद पदस्थापना में उन दिनों कुछ ज्यादा काम नहीं था और छह माह के कार्यकाल में मुझे इतना समय मिल गया कि मैं अपने छोटे भाई का विवाह कर सका । छह माह बाद उज्जैन में महाकाल मंदिर में भगदड़ हुई और दुर्घटना में कई लोग हताहत हुए , परिणामस्वरूप तत्समय प्रशासनिक कार्यवाही के चलते उज्जैन में पदस्थ लगभग सभी अधिकारी स्थानांतरित कर दिए गए और मैं उज्जैन अनुविभाग का एस.डी एम. बना दिया गया । सोचें कि यदि शुरू में ही मैं उज्जैन में पदस्थ कर दिया जाता तो इतनी ताकत तो खैर मेरे में थी ही नहीं कि मेरे रहने से यह दुर्घटना नहीं घटती , अलबत्ता सबके साथ मेरा भी स्थानांतरण तत्समय हो गया होता और फिर उज्जैन में जो महाकाल की सेवा का सौभाग्य मुझे मिला उससे में निश्चित ही वंचित रह जाता ।
जब मैं इंदौर में अपर कलेक्टर होकर स्थानांतरित हुआ तो श्री प्रकाश जांगरे पहले से ही अपर कलेक्टर इंदौर के पद कार्यरत थे । उनके बच्चे भोपाल में पढ़ रहे थे और भाभीजी एक स्कूल की संचालिका थीं तो इस कारण वे बड़े मन मार के इंदौर रहा करते थे और प्रयास करा करते थे कि भोपाल में किसी भी पद पर पदस्थापना हो जाये पर कुछ ना हुआ । एक दिन जांगरे साहब बड़े चिंतित स्वरों में बोले अब क्या करें कुछ समझ नहीं आ रहा है , ट्रांसफर वापस हो ही नहीं रहा है और कुछ दिनों बाद जांगरे साहब को भोपाल का सरकारी मकान खाली करना पड़ा और जिस दिन सामान ट्रक में भर के रवाना किया और ट्रक आधे रास्ते ही आया था और जांगरे साहब को खबर मिली कि उनका ट्रांसफर वापस भोपाल हो गया है । पर संयोग देखें इसी कारण से उनका भोपाल में इतना सुन्दर मकान रिटायरमेंट के पहले ही सुव्यवस्थित रूप से बन गया ।





