आयुक्त कोष एवं लेखा तथा AGMP का काम गड़बड़ियां पकड़ना, उनके जांचकर्ताओं को कोर्ट में पक्षकार बनाना ठीक नहीं

सरकारी दफ्तरों के गबन-घोटाले पकड़ने वालों को कोर्ट में नहीं बना सकेंगे गवाह

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आयुक्त कोष एवं लेखा तथा AGMP का काम गड़बड़ियां पकड़ना, उनके जांचकर्ताओं को कोर्ट में पक्षकार बनाना ठीक नहीं

 

भोपाल: प्रदेश के सरकारी विभागों में गबन, घोटाले, वित्तीय अनियमितताएं, कर्मचारियों द्वारा जानबूझकर या उनकी लापरवाही से होंने वाले आर्थिक नुकसान को उजागर करने वाले आयुक्त कोष एवं लेखा कार्यालय तका महालेखाकार (AGMP) कार्यालय के जांचकर्ता अधिकारियों और कर्मचारियों के प्रतिवेदन के आधार पर दोषी कर्मचारियों से वसूली के लिए अब सरकारी विभाग उन्हें अभियोजन साक्षी या गवाह नहीं बनाएंगे। वित्त विभाग ने बाकायदा इसके लिए सारे विभागों के आला अफसरों को निर्देश जारी किए है।

मध्यप्रदेश में आयुक्त कोष एवं लेखा के अंतर्गत स्टेट फाइनेंशियल इंटेलीजेंस सेल बनी हुई है। यह सेल इंटीग्रेटेड फाइनेंशियल मैनेजमेंट इन्फार्मेशन सिस्टम मे सभी सरकारी विभागों के आहरण और संवितरण अधिकारियों द्वारा किए गए भुगतानों के डाटा का विश्लेषण करती है। विभिन्न कार्यालयों में आंतरिक लेखा परीक्षण का काम आंतरिक लेखा परीक्षण के दलों द्वारा किया जाता है। एसएफआईसी के प्रकरणों में विभिन्न स्तरों से किये गए जांच प्रतिवेदन और आंतरित परीक्षण के प्रतिवेदन में गबन पाए जाने पर सरकारी विभाग उनके कार्यालय के अपचारी कर्मचारियों के विरुद्ध विभागीय जांच और पुलिस अन्वेषण में कोष एवं लेखा के अधिकारियों, कर्मचारियों को अभियोजन साक्षी बना रहे है।

मध्यप्रदेश की वित्तीय संहिता के प्रावधानों में भी स्पष्ट है कि विभागीय विधिक कार्यवाही, उत्तदायित्व का निर्धारण, शासन को हुई हानि की वसूली की कार्यवाही संबंधित विभाग, विभागाध्यक्ष कार्यालय द्वारा की जाना चाहिए।

इसी तरह महालेखाकार (AGMP) कार्यालय सरकारी विभागों के अंकेक्षण के बाद कानून और नियमों के आधार पर अपनी आपत्तियां दर्ज कर विभागो को उन पर प्रभावी कार्यवाही करने के लिए भेजता है। इन पर प्रभावी कार्यवाही करना विभाग के संबंधित अधिकारी का कर्त्तव्य है। आपत्ति सहीं न हो तो विभाग स्पष्टीकरण भेज सकता है। यदि आपत्ति सही है तो उसके आधार पर वसूली की कार्यवाही करना चाहिए।

अपर मुख्य सचिव वित्त मनीष रस्तोगी का कहना है कि आयुक्त कोष एवं लेखा और महालेखाकार कार्यालय अपने प्रतिवेदन में आर्थिक गड़बड़ियों की जानकारी देते है तो इन प्रतिवेदनों को आधार बनाकर उन्हें न्यायालय में अपना पक्ष प्रस्तुत करने के लिए जाना पड़े यह ठीक नहीं है। पुलिस अन्वेषण तथा विभागीय जांच संबंधी कार्यवाही विभाग के स्तर पर होंना चाहिए। प्रतिवेदनों में जांचकर्ता अधिकारियों और कर्मचारियों के कथन के रुप में मान्यता प्रदान कर पुलिस जांच और विभागीय जांच में उन्हें गवाह बनाने से सभी विभाग मुक्त रखे। रस्तोगी का कहना है कि यदि कोर्ट बुलाएगा तो वे जरुर जाएंगे लेकिन विभाग अपने स्तर पर उन्हें गवाह के रुप में प्रस्तुत नहीं करें।