

हां यह सेमीफाइनल और फाइनल की तैयारी है…
कौशल किशोर चतुर्वेदी
मध्य प्रदेश में दोनों राजनैतिक दल भाजपा और कांग्रेस चिंतन-मंथन और सृजन में लगे हुए हैं। देखा जाए तो प्रदेश में हाल ही में कोई सीधी चुनौती दोनों राजनैतिक दलों के सामने नहीं है लेकिन यह माना जा सकता है कि आने वाली चुनौतियों का सामना करने की तैयारी दोनों ही दल पहले से कर रहे हैं। सत्ताधारी दल भाजपा यह नहीं चाहती की सत्ता में बैठे उनके मंत्री, विधायक, सांसदों के कामों से दलदल में जाने की नौबत आ जाए। इसलिए प्रशिक्षण वर्ग जैसे आयोजन कर इन कर्ताधर्ताओं को ऐसी नसीहत दी जा रही है कि वह खुद को सेवक समझें शासक नहीं। कार्यकर्ताओं और संगठन के साथ समन्वय रखें क्योंकि बिना संगठन और कार्यकर्ताओं के सत्ता में बने रह पाना संभव नहीं है। प्रेम से बोलें, बोलने से पहले सोचें और सोचने के बाद भी क्या बोलना है यह तय करें ताकि स्थितियां विषम न बन पाएं। और यह भी साफ बता दिया गया है कि गलतियां एक बार होती है लेकिन सत्ता में रहकर बार-बार गलती की जा रही है जो कतई ठीक नहीं है और बर्दाश्त के लायक भी नहीं है। तो दूसरी तरफ सत्ता की दावेदारी करने वाला मध्य प्रदेश का दूसरा प्रमुख राजनैतिक दल कांग्रेस संगठन के सृजन में लीन है। राष्ट्रीय स्तर पर नियुक्त पर्यवेक्षक हर जिले में पहुंचकर पार्टी के कार्यकर्ताओं से फीडबैक ले रहे हैं। कांग्रेस भी बयान बाजी करने वाले नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाकर पार्टी को नए सिरे से सृजन की प्रक्रिया में है। कांग्रेस का उद्देश्य भी यही है कि ऐसे हाथों में जिलों और ब्लॉक की कमान पहुंचे जिससे कार्यकर्ता एकजुट हो सकें और पार्टी को मजबूती के साथ सत्ता में वापस लाने में प्राणप्रण से जुट जाएं। भाजपा का उद्देश्य जहां सत्ता में बने रहना है तो कांग्रेस का उद्देश्य सत्ता में वापसी करना है। और मध्यप्रदेश के लिए वर्ष 2027 और 2028 निर्णायक साल है जब दोनों ही दलों को परीक्षा की घड़ी से गुजरना है। 2027 में पंचायत चुनाव हैं जो भले ही सीधे दलों से संबद्ध न हों लेकिन दलों से इतर भी नहीं हैं। और 2028 में विधानसभा चुनाव हैं जो भले ही अभी दूर दिख रहे हों लेकिन कब पास आ जाएंगे यह पता ही नहीं चलेगा। सेमीफाइनल और फाइनल के इन्हीं मुकाबलों की तैयारी के लिए दोनों दलों ने निर्णायक तैयारी शुरू कर दी है।
भारतीय जनता पार्टी के प्रशिक्षण वर्ग के समापन सत्र को संबोधित करते हुए भाजपा के वरिष्ठ नेता व केन्द्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि सभी सांसद और विधायक हमेशा संगठन से जुड़े रहें, क्योंकि संगठन तब भी था, जब सत्ता नहीं थी। कार्यकर्ताओं को सम्मान दें और उनकी बात सुनें, क्योंकि भाजपा की असली ताकत जनता का भरोसा और कार्यकर्ताओं का परिश्रम ही है। जनता की सेवा हमारे डीएनए में है, हम जनसेवक हैं शासक नहीं है। जनता का भरोसा और कार्यकर्ताओं का परिश्रम ही भाजपा की असली ताकत है। जनता का भरोसा जीतें और हर संकट के समय सबसे पहले जनता के बीच पहुंचें। अपनी सोच को बड़ा रखिए, अपनी दृष्टि को बड़ा कीजिए। महापुरूषों की विचारधारा को आगे बढ़ाकर राष्ट्र निर्माण का कार्य करें। हमारा उद्देश्य सत्ता प्राप्ति नहीं, जनता की सेवा है, इसलिए हमने अपने विचारों से कभी समझौता नहीं किया। हमारी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं है, इसलिए भाजपा विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बनी। हमारे लिए राष्ट्र निर्माण और विचारधारा सबसे प्रथम है। तो यह भी याद दिलाया कि मध्यप्रदेश का आदर्श कार्यकर्ता है, कभी मर्यादाएं नहीं तोड़ता है। और देखा जाए तो राजनाथ सिंह की नसीहत भाजपा की पचमढ़ी में हुई तीन दिनी कवायद का सार था। उन्होंने सत्ताधारियों और संगठन के सूरमाओं को आईना दिखा दिया और यह बता दिया कि शासक नहीं, सेवक की तरह काम करें। सत्ता के नशे में न रहें और होश रहे कि बिना संगठन और कार्यकर्ताओं के सत्ता में रह पाना संभव नहीं है। तो संगठन को अहसास दिलाया कि मर्यादा जरूरी है। और विचारधारा ही हमारी पूंजी है। इससे सत्ता और संगठन ने दूरी बनाई तो नुकसान उठाने के लिए तैयार रहना पड़ेगा।
वहीं कांग्रेस ने इस बार संगठन चुनाव को लेकर नई पहल की है। 55 जिलों में नए जिला और ब्लॉक अध्यक्ष बनाए जाएंगे। पुरानों से परहेज किया जाएगा तो नए चेहरों में भी पार्टी यह तय करेगी कि सेवा करने में सर्वश्रेष्ठ कौन है? इसीलिए उम्र की सीमा हटा दी गई है और योग्यता ही चयन का प्रमुख मापदंड होगा। जो नेता 2023 में भाजपा छोड़कर कांग्रेस में आए थे, उन्हें फिलहाल संगठन में जगह नहीं मिलेगी। पांच साल की सेवा के बाद ही ऐसे नेताओं को मेवा पाने का हकदार माना जाएगा। इन फैसलों का उद्देश्य संगठन में नए और समर्पित कार्यकर्ताओं को पदों पर बिठाना है ताकि वह सत्ता में वापसी की राह तैयार कर सकें। पुराने मतभेद और गुटबाजी जैसे शब्दों की पार्टी में कोई जगह न बचे ताकि एकजुटता के साथ सत्ता में वापसी का रास्ता खुल सके।
तो चाहे भाजपा प्रशिक्षण वर्ग के नाम पर सत्ता और संगठन को विजन के साथ अनुशासन में रहने का पाठ पढ़ा रही हो या फिर कांग्रेस संगठन सृजन की राह पर चलकर पार्टी में अनुशासित और समर्पित पदाधिकारियों की नई पीढ़ी तैयार करने में जुटी हो। पर दोनों ही राजनैतिक दलों का लक्ष्य सत्ता ही है। और दोनों ही दल अपनी कमियों को दूर करने में जुटे हैं। ताकि सेमीफाइनल और फाइनल का मुकाबला एकतरफा जीता जा सके। तो भाजपा-कांग्रेस की यह कवायद बस यही कहती है कि हां यह सेमीफाइनल और फाइनल की तैयारी है…।