Daughter’s Right in Property : शादी के दहेज के बाद भी बेटी का पिता की संपत्ति में अधिकार!

बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक मामले में दिए फैसले में यह अधिकार स्पष्ट किया!

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Daughter’s Right in Property : शादी के दहेज के बाद भी बेटी का पिता की संपत्ति में अधिकार!

Mumbai : शादी में दहेज देने के बाद भी बेटी का पिता की संपत्ति में अधिकार बना रहेगा। बॉम्बे हाईकोर्ट की गोवा बेंच ने ‘टेरजिन्हा मार्टनिस डेविड बनाम मिगेल रोसारियो मार्टनिस व अन्य’ केस में यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। जस्टिस एमएस सोनक (MS Sonak) ने याचिकाकर्ता की बेटी की संपत्ति को बगैर उसकी सहमति के भाइयों को ट्रांसफर करने की डीड भी निरस्त कर दी। कोर्ट ने कहा कि इस बात के कोई सबूत नहीं है कि बेटियों को पर्याप्त दहेज दिया गया। यह मान भी लिया जाए कि बेटियों को दहेज दिया गया था, तो इसका मतलब यह नहीं है कि परिवार की संपत्ति पर उसका अधिकार नहीं है।

ये मामला परिवार की संपत्ति के बंटवारे से जुड़ा हुआ है। अपीलकर्ता अपने माता-पिता की सबसे बड़ी बेटी है और उसकी तीन बहनें और चार भाई हैं। अपीलकर्ता के मुताबिक उसके पिता की मृत्यु के बाद अपीलकर्ता को उसकी संपत्ति का उत्तराधिकारी घोषित किया गया था। हालांकि, उसकी मां और दो भाइयों ने मिलकर बहनों को बिना बताए उसकी पारिवारिक संपत्ति यानी दुकान को अन्य दो भाइयों को दे दी। इसके खिलाफ अपीलकर्ता ने मुकदमा दायर किया। और कहा कि दुकान पारिवारिक संपत्ति है। इसलिए दुकान पर उसका भी अधिकार है।

चार भाइयों और मां का कहना था कि शादी के समय चारों बेटियों को कुछ दहेज दिया गया था। इसलिए वे परिवार की संपत्ति पर अधिकार नहीं मांग सकती। भाइयों ने ये भी दावा किया कि दुकान पारिवारिक संपत्ति नहीं है, क्योंकि इसे तीनों भाइयों और पिता ने मिलकर खरीदा था। मामले में ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ता की याचिका खारिज कर दी थी। इसके खिलाफ अपीलकर्ता ने बॉम्बे हाईकोर्ट का रूख किया।

भाइयों का कहना है कि बहन का संपत्तियों पर कोई अधिकार नहीं वैसे भी लिमिटेशन एक्ट के तहत मौजूदा कार्यवाही रोक दी गई थी। क्योंकि, एक्ट में डीड पूरी होने के बाद मुकदमा तीन महीनों में दायर करना होता है। ट्रांसफर डीड 1990 में हुई है और मुकदमा 1994 में किया गया।

याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि उन्हें इसके बारे में 1994 में पता चला और बाद में इसे लेकर सिविल कोर्ट में कार्यवाही शुरू हुई। इस पर जस्टिस सोनक ने कहा कि अपीलकर्ता ने पहले ही बताया कि उन्होंने डीड के बारे में पता चलने के 6 सप्ताह में ही मुकदमा किया था। उन्होंने आगे कहा कि पिता के निधन के बाद बेटियों के अधिकारों को जिस तरह से खत्म किया गया, वैसे खत्म नहीं किया जा सकता। मामले में वैसे भी ये साफ नहीं हो सका कि चारों बेटियों को पर्याप्त दहेज दिया गया था या नहीं। कोर्ट ने ट्रांसफर डीड को रद्द कर दिया और कहा कि अपीलकर्ता का भी दुकान यानी परिवार की संपत्ति पर अधिकार है।