Silver Screen:फिल्म की कहानी सच्ची हो तो ‘अमर सिंह चमकीला’ जैसी!

709

Silver Screen:फिल्म की कहानी सच्ची हो तो ‘अमर सिंह चमकीला’ जैसी!

IMG 20240510 WA0096

जब फ़िल्में बनना शुरु हुई, तब बरसों तक गढ़ी कहानियों पर फ़िल्में बनाई जाती रही। इसके साथ राजा-महाराजाओं के किस्सों और धार्मिक कथाओं के आधार पर फ़िल्में बनाई गई। पर, वक्त के साथ इसमें बदलाव आते रहे। दर्शकों का मनोरंजन करने के लिए नए-नए विषय खोजे गए। सामाजिक स्थितियों से उत्पन्न घटनाओं को कथानक का रूप देकर उसे फिल्माया जाने लगा। लेकिन, दर्शक की पसंद कभी एक जैसी नहीं रहती। कुछ दिनों में वह एक से कथानक जैसी फिल्मों से ऊबने लगता है। फिल्मकारों ने इसका भी उपाय खोजा और अलग-अलग क्षेत्रों में अपनी उपलब्धियों से लोगों की नजरों में छाए लोगों पर फ़िल्में बनाई। इस तरह की बायोपिक फिल्मों को पसंद किया गया। अब फिल्मकार उसमें भी रोचक किरदारों के साथ घटनाएं ढूंढने लगे। क्योंकि, कई बायोपिक को दर्शकों ने नापसंद किया। इसके बाद कुछ सालों से सच्ची घटनाओं पर आधारित फिल्मों का चलन बढ़ा। सच्ची कहानियों पर फ़िल्में बनाना आसान नहीं है। साथ ही यह अनिश्चय वाला प्रयोग है, फिर भी ये दर्शकों को पसंद आ रहा। इसलिए कि दर्शक घटना के सच से वाकिफ होना चाहते हैं।

IMG 20240510 WA0093

सच्ची घटनाओं पर बनी फिल्मों में गुंजन सक्सेना, छपाक के बाद ’12वीं फेल’ और ‘अमर सिंह चमकीला’ ने जिस तरह सफलता पाई, वो चमत्कृत करने वाली बात है। ’12वीं फेल’ ने एक औसत क्षमता वाले स्टूडेंट की जिद बताई जिसे अफसर बनना है। मुश्किल हालात के बावजूद वो आईपीएस बनता है। जबकि, ‘अमर सिंह चमकीला’ पंजाब के गायक पर बनी फिल्म है, जिसने 80 के दशक के इस गुमनाम हो चुके पंजाबी गायक को चारों तरफ फिर लोकप्रिय बना दिया। 80 के दशक का जो गायक अभी तक पंजाब तक सीमित था। वक़्त ने उसकी यादों को भी भुला भी दिया था, पर इस फिल्म के बाद वो देश-विदेश में पहचाना जाने लगा। फिल्म ‘अमर सिंह चमकीला’ को सिर्फ बायोपिक नहीं कहा जा सकता। ये पंजाब के लोक गायक अमर सिंह चमकीला के उत्थान और अंत से जुड़ी कहानी है। मुख्य किरदार निभाने वाले दिलजीत दोसांझ भी इस फिल्म से दर्शकों की आंख का तारा बन गए। इम्तियाज अली की इस फिल्‍म ने कहानी को बखूबी दर्शाया। इसमें पंजाब की परंपरा और लोगों के संगीत के शौक को फिल्माया। फिल्म की खास बात यह भी कही जा सकती है कि इसमें चमकीला की कमजोरियों को छिपाने की कोशिश नहीं की गई। उन पर गंदे गाने का आरोप लगा, तो उसे उसी तरह फिल्माया भी गया। यही वजह है कि ‘अमर सिंह चमकीला’ सच्ची कहानियों वाली फिल्मों के लिए मील का पत्थर बन गई।

IMG 20240510 WA0092

सच्ची कहानियों वाली फिल्मों के इतिहास को कुरेदा जाए तो युद्धकाल के हालात पर ऐसी फ़िल्में ज्यादा बनी है। फिल्म ‘गुंजन सक्सेना: द कारगिल गर्ल’ (2020) देश की पहली महिला एयरफोर्स पायलट के जीवन और युद्ध क्षेत्र की एक घटना पर बनी है। फिल्म में जाह्नवी कपूर की मुख्य भूमिका है। कथानक के अनुसार, यह 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान एक महिला फ्लाइंग ऑफिसर के शौर्य की कहानी है, जब उसने एक चीता विमान को विपरीत परिस्थितियों में युद्ध क्षेत्र में उतारा और कई सैनिकों को बचाया था। ‘शेरशाह’ (2021) भी युद्ध की स्थितियों में बनी सफल फिल्म रही। इसमें सिद्धार्थ मल्होत्रा ने कारगिल युद्ध के शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा किरदार निभाया। इस फिल्म में विक्रम बत्रा के युद्ध के मैदान में दिखाए अदम्य साहस का कथानक है। फिल्म में कियारा आडवाणी ने विक्रम बत्रा की प्रेमिका डिम्पल की भूमिका की है। ‘उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक’ (2019) एक एक्शन फिल्म है। इसका कथानक 2016 में पाकिस्तान-नियंत्रित कश्मीर (पीओके) में आतंकवादी लॉन्च पैड के खिलाफ भारतीय सेना के सर्जिकल स्ट्राइक पर रचा गया है। उरी में आतंकवादी हमले में 19 भारतीय सैनिक मारे गए थे। यह फिल्म ऑपरेशन के दौरान हुई 11 अराजक घटनाओं के बारे में बताती है। इसमें विक्की कौशल, यामी गौतम के अभिनय को सराहा गया था। सनी देओल की हिट फिल्मों में से एक ‘बॉर्डर’ (1997) की कहानी सत्य घटना से प्रेरित है। फिल्म में 1971 के भारत-पाक युद्ध के समय लड़े गए लोंगेवाला के युद्ध को फिल्माया गया। जिसमें राजस्थान के लोंगेवाला पोस्ट पर 120 भारतीय जवान सारी रात पाकिस्तान की टाँक रेजिमेंट का सामना करते हैं।

IMG 20240510 WA0097

2016 में आयी फिल्म ‘रुस्तम’ युद्धकाल की कहानी तो नहीं सुनाती, पर ये फिल्म नौसेना के एक अफसर रुस्तम (अक्षय कुमार) पावरी की पत्नी सिंथिया (इलियाना डिक्रूज) के विवाहेत्तर संबंधों पर बनी है। यह कहानी नौसेना के अफसर केएम नानावटी की सच्ची घटना पर बनाई गई है। 2022 में आई फिल्म ‘मेजर’ की कहानी मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले (26/11) में शहीद हुए 51 एनएसजी जवान मेजर संदीप उन्नीकृष्णन की जिंदगी पर आधारित है। फिल्म ‘द गाजी अटैक’ भारत-पाकिस्तान के बीच हुए 1971 के युद्ध की सच्ची घटनाओं पर बनी। गाजी एक पाकिस्तानी पनडुब्बी थी, जिसे भारत के जांबाजों ने नष्ट किया था। ‘मद्रास कैफे’ श्रीलंका के तमिल उग्रवादियों के खिलाफ भारतीय सेना के हमले पर बनाई गई। ‘परमाणु: द स्टोरी ऑफ पोखरण’ युद्धक फिल्म  है, पर ये भारत की परमाणु तैयारियों पर बनी है। फिल्म भारत के परमाणु बम के पोखरण में हुए परीक्षण की घटनाओं पर आधारित है। फिल्म में दिखाया गया है कि किन परिस्थितियों और मुश्किलों का सामना करते हुए परमाणु का सफल परीक्षण किया गया था। फिल्म ‘भुज: द प्राइड ऑफ इंडिया’ (2021) एक सत्य घटना पर बनाई गई। भारत-पाकिस्तान के बीच 1971 में युद्ध के दौरान गुजरात के भुज एयरबेस के रनवे को पाक सेना ने बमबारी करके तहस-नहस कर दिया था। उस वक्त भुज एयरबेस के तत्कालीन प्रभारी आईएएफ स्क्वाड्रन लीडर विजय कर्णिक और उनकी टीम ने गुजरात के मधेपुरा और आसपास के गांव की 300 महिलाओं की मदद से वायुसेना के एयरबेस का पुनः निर्माण किया था। फिल्म में विजय कर्णिक की भूमिका अजय देवगन की है।

IMG 20240510 WA0094

अक्षय कुमार की फिल्म ‘केसरी’ (2019) भी सारागढ़ी की प्रसिद्ध लड़ाई (1897) पर बनी है। इस युद्ध में 21 सिख सैनिकों ने 10 हजार पश्तून आक्रमणकारियों की सेना के खिलाफ बहादुरी और जोश के साथ लड़ाई लड़ी थी। ब्रिटिश भारतीय सेना की ’36 सिख रेजिमेंट’ के 21 जाट सिखों को सारागढ़ी में तैनात किया गया था। 2018 में आई ‘राजी’ जासूसी कथानक पर बनाई गई फिल्म है। इसमें आलिया भट्ट ने ‘राजी’ की भूमिका निभाई। वो भारतीय जासूस होती है, जिसकी शादी पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी से शादी कर है। ये एक सच्ची कहानी पर बनाई गई, जिसका कथानक 2008 में प्रकाशित हरिंदर सिक्का के उपन्यास ‘कॉलिंग सहमत’ पर आधारित है। फिल्म ‘सरबजीत’ (2016) पाकिस्तान की जेल में बंद भारतीय कैदी सरबजीत पर केंद्रित है। फिल्म में उसके और परिवार के जीवन को बखूबी दर्शाया गया। फिल्म में रणदीप हुड्डा और ऐश्वर्या राय मुख्य किरदार निभाए हैं।

IMG 20240510 WA0095

युद्ध के अलावा क्रिकेट और अन्य खेलों के कथानक पर भी कुछ फ़िल्में बनी। कुछ बायोपिक बनी तो कुछ किसी एक सच्ची घटना पर केंद्रित करके बनाया गया। विश्वकप क्रिकेट में 1983 में भारतीय टीम की जीत पर 2021 में बनी फिल्म ’83’ को कप्तान कपिल देव पर केंद्रित किया गया। इसमें रणवीर सिंह ने कपिल देव का रोल किया था। यह विश्व कप क्रिकेट में भारत की जीत पर बनी है। लेकिन, इस फिल्म को करीब चार दशक बाद बनाया गया, इसलिए दर्शक पचा नहीं पाए। 2016 में आई फिल्म ‘एमएस धोनी : द अनटोल्ड स्टोरी’ भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान की जिंदगी के उतार चढ़ाव को दिखाया गया। इस फिल्म में सुशांत सिंह राजपूत ने एमएस धोनी का किरदार बखूबी से निभाया है। इसी तरह की क्रिकेट वाली फिल्म ‘शाबाश मिथु’ (2022) भारतीय महिला क्रिकेटर मिताली राज की जिंदगी पर बनाया गया है। सचिन तेंदुलकर पर भी एक फिल्म बनाने की कोशिश हुई, पर ये महज वृत्तचित्र बनकर रह गई। आमिर खान की सफल फिल्मों में गिनी जाने वाली ‘दंगल’ (2016) भारतीय पहलवान गीता फोगाट, बबीता फोगाट और उनके पिता महावीर फोगाट के जीवन संघर्ष पर आधारित है। महिला पहलवान के शिखर तक पहुंचने वाली इस फिल्म ने बिजनेस भी अच्छा किया था। 2018 में रिलीज हुई अक्षय कुमार की ‘गोल्ड’ एक ऐतिहासिक स्पोर्ट्स ड्रामा फिल्म है। इसमें अक्षय कुमार ने तपन दास का किरदार निभाया है, जिसने 1948 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में भारत के लिए हॉकी में पहला स्वर्ण पदक जीता था। यह 1948 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में भारत की पहली राष्ट्रीय हॉकी टीम की यात्रा पर आधारित है।

Read More… Silver Screen:परदे पर जब रंग बिखरे तो कुछ जरूर बदला! 

सिर्फ युद्धकाल और खेल की सच्ची कहानियों पर ही फ़िल्में नहीं बनाई गई, साहसिक और सामाजिक घटनाओं पर भी फ़िल्में बनी और पसंद की गई। ऐसी ही एक फिल्म बनी ‘नीरजा’ जो बहादुर फ्लाइट अटेंडेंट नीरजा भनोट की सच्ची कहानी पर है। वे 1986 के पैन अमेरिकन फ्लाइट हाईजैक के दौरान यात्रियों की रक्षा करते हुए मारी गई थी। इसके बाद 2020 में मेघना गुलजार के निर्देशन में फिल्म ‘छपाक’ को विषय बनाया गया जो एसिड अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी अग्रवाल की जिंदगी पर आधारित फिल्म है। इस फिल्म में दीपिका पादुकोण ने लक्ष्मी का किरदार निभाया, जिसे दर्शकों ने पसंद किया। इस फिल्म के जरिए ही एसिड अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी अग्रवाल की कहानी घर-घर तक पहुंची। ‘छपाक’ में उनके साथ अभिनेता विक्रांत मैसी और रोहित सुखवानी मुख्य भूमिका में थे। ऐसी ही एक सामाजिक कहानी थी रानी मुखर्जी की ‘मिसेज चटर्जी वर्सेस नार्वे’ जो बेहद संवेदनशील सच्ची कहानी पर आधारित है। कुछ सच्ची प्रेम कहानियां भी ऐसी फिल्मों का आधार बना। फिल्म ‘मांझी: द माउंटेन मैन’ (2015) ऐसी ही सच्ची प्रेम घटना पर बनाई गई है। बिहार के गया जिले युवक दशरथ मांझी ने अपनी पत्नी के प्यार में पहाड़ काटकर रास्ता बनाया था। क्योंकि, पहाड़ की वजह से उनकी पत्नी अस्पताल नहीं पहुंच पाई और उसकी मौत हो गई। छेनी और हथौड़े के सहारे मांझी ने 55 किलोमीटर की दूरी को 15 किलोमीटर की दूरी में बदल दिया था।

Read More… Silver Screen:अब पहले जैसी नहीं रही फिल्मों की नायिका 

‘एयरलिफ्ट’ (2016) फिल्म 1990 में इराक-कुवैत युद्ध में फंसे एक लाख 70 हजार भारतीयों को सुरक्षित निकालने की सच्ची कहानी है। कुवैत में बसे कुछ भारतीयों की मदद और भारत सरकार की पहल पर एयर इंडिया के विमान 59 दिनों में 488 उड़ानों के जरिए सभी भारतीयों को सुरक्षित स्वदेश लेकर लौटे थे। फिल्म में अक्षय कुमार एक सफल व्यवसायी की भूमिका निभाते हैं जो अपने परिवार और अन्य लोगों को भारत पहुंचने तक सुरक्षित रखने का प्रयास करता है। पटना के प्रसिद्ध गणितज्ञ आनंद कुमार के जीवन और परिश्रम को दर्शाने वाली फिल्म सुपर-30 (2019) बायोपिक से ज्यादा प्रेरणादायक फिल्म है। यह बायोग्राफिकल ड्रामा फिल्म गणित के शिक्षक आनंद कुमार के जीवन और उनके शैक्षिक कार्यक्रम पर आधारित है। वास्तव में तो ‘सुपर 30’ पटना में रामानुजन स्कूल ऑफ मैथमेटिक्स द्वारा स्थापित एक भारतीय शैक्षिक कार्यक्रम है। इसमें ऋतिक रोशन ने आनंद कुमार का किरदार निभाया। प्रियंका चोपड़ा की फिल्म ‘द स्काई इज पिंक’ (2019) फिल्म 18 साल की चर्चित लेखिका आयशा चौधरी के कम उम्र में किए गए अद्भुत कार्यों और उनकी जिंदगी पर आधारित है।

IMG 20240426 WA0144

सच्ची कहानियों पर बनी फिल्मों की सूची कभी ख़त्म नहीं होगी। फिल्म ‘रेड’ (2018) सच्ची कहानी पर आधारित है। इसमें अजय देवगन, सौरभ शुक्ला और इलियाना डिक्रूज ने काम किया हैं। यह फिल्म 80 के दशक में सरदार इंदर सिंह पर आयकर विभाग की वास्तविक छापेमारी पर आधारित है। 2018 में आई ‘केदारनाथ’ (2018) का कथानक सच्ची प्राकृतिक त्रासदी वाली फिल्म है। इसी में पनपती है एक प्रेम कथा। जून 2013 में उत्तराखंड में अचानक आई बाढ़ में 169 लोग मारे गए और 4021 लोग लापता हो गए। संजय लीला भंसाली की ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ (2022) गंगूबाई हरजीवनदास की सच्ची कहानी पर आधारित बनी फिल्म है। उन्होंने मुंबई के कमाठीपुरा में एक वेश्यालय चलाया, जिसने ग्राहकों के रूप में कई कुख्यात अपराधियों को भी आकर्षित किया। गंगूबाई की भूमिका आलिया भट्ट ने निभाई है। फिल्म ‘आर्टिकल-15’ (2019) बदायूं में 2014 में हुए कांड पर आधारित है जिसने उत्तर प्रदेश के जातिवाद का बेहद खराब दिखाया था। पिछड़े वर्ग की दो लड़कियां एक पेड़ से लटकी मिली थीं। लड़कियों के घरवालों का आरोप था कि सीबीआई की रिपोर्ट झूठी है। क्योंकि, लड़कियों के साथ ये कृत्य करने वाले ऊंची जाति के लोग हैं। वास्तविक घटनाओं पर फ़िल्में बनने का सबसे बड़ा फ़ायदा ये होता है कि दर्शक उसका क्लाइमेक्स जानता है फिर भी सारा घटनाक्रम जानने उसमें उत्सुकता बनी रहती है।