महाराष्ट्र में ‘एनडीए’ को नुकसान के आसार क्यों और कहां!

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महाराष्ट्र में ‘एनडीए’ को नुकसान के आसार क्यों और कहां!

 

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– नवीन कुमार

 

पूरे देश में 400 के पार और महाराष्ट्र को लेकर चर्चा है। एनडीए का दावा है कि इस बार लोकसभा चुनाव में वह 400 के पार जाने वाला है जबकि इंडिया आघाडी (इंडिया गठबंधन) को विश्वास है कि एनडीए 400 के पार नहीं जा पाएगा। इस नंबर गेम के अलावा एनडीए के लिए महाराष्ट्र बहुत महत्वपूर्ण राज्य है। यह राज्य उत्तर प्रदेश के बाद दूसरा सबसे बड़ा राज्य है जहां लोकसभा की 48 सीटें हैं। यहां नंबर गेम में अगर एनडीए पीछे रह जाता है तो उसके 400 पार के सपने को झटका लग सकता है। इसलिए महाराष्ट्र में बीजेपी ने ऐसे काम किए जो भारतीय राजनीति में बिल्कुल अनोखा है। बीजेपी ने राज्य की ताकतवर पार्टी बाल ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी में विभाजन करा दिया। सत्ता की खातिर शरद की पार्टी के साथ पवार परिवार में भी विभाजन की रेखा खिंच गई।

विभाजन के बाद बीजेपी ने एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना और अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी को साथ करके राज्य में अपनी सरकार बना ली और इस गठबंधन के साथ 2024 का लोकसभा का चुनाव भी लड़ लिया। नतीजे तो 4 जून को आएंगे। लेकिन उससे पहले एनडीए और इंडिया आघाडी के नेताओं के अलावा राजनीतिक पंडित जिस तरह से आंकलन कर रहे हैं उससे महाराष्ट्र के परिणाम चौंकाने वाले आ सकते हैं। महाराष्ट्र क्यों चौका सकता है उसके पीछे कुछ तथ्य सामने आए हैं। कहा जाता है कि एनडीए और इंडिया आघाडी ने जिस तरह से गठबंधन बनाया है उसमें खासकर एनडीए में विश्वास, धोखा और सहानुभूति का असर ज्यादा दिख रहा है।

यह स्थिति इंडिया आघाड़ी में कम है। क्योंकि, इंडिया आघाडी ने जिस तरह से सीटों का बंटवारा किया और बाद में जिस तरह से चुनाव प्रचार किया उसमें एनडीए वाली स्थिति नहीं है। एनडीए में सीटों के बंटवारे में काफी खींचतान हुई थी और बीजेपी के साथ शिंदे गुट की शिवसेना और अजित गुट की एनसीपी में विश्वास की कमी देखी गई और चुनाव प्रचार में धोखा की भी परछाई देखी गई है। लेकिन इंडिया आघाडी में यह सब नहीं रहा है। इससे इंडिया आघाडी में एकजुटता ज्यादा रही है और एनडीए में अंतर्विरोध ज्यादा रहा है। इस अंतर्विरोध ने ही धोखे को बढ़ावा दिया है और उसका असर नतीजे पर दिख सकता है। इसलिए महाराष्ट्र से एनडीए को खतरा ज्यादा है। इस खतरे का आभास तो एनडीए को होगा। इसलिए बीजेपी अपने दावे पर अटल है और कह रही है कि एनडीए को 45 सीटें मिलने वाली है। हालांकि, इंडिया आघाडी एनडीए के इस दावे को गलत बताते हुए कह रहा है कि इस बार बाजी इंडिया आघाडी के पास है। इंडिया आघाडी को 30-35 सीटें मिलने वाली है।

एनडीए और इंडिया आघाडी सीटों को लेकर जो भी दावे कर रहे हों लेकिन एनडीए के पक्ष में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से महाराष्ट्र में 18 रैलियां की उससे तो यह स्पष्ट है कि एनडीए के लिए महाराष्ट्र कितना महत्वपूर्ण है। दूसरी तरफ इंडिया आघाडी के पक्ष में शरद और उद्धव ठाकरे ने भी चुनौतीपूर्ण रैलियां की। इससे इंडिया आघाडी में कांग्रेस को भी फायदा दिख रहा है। इसके आधार पर इंडिया आघाड़ी दावा कर रहा है कि इस बार एनडीए 2019 को नहीं दोहरा पाएगा। इसके पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि महाराष्ट्र की जनता को शिवसेना और एनसीपी में विभाजन नागवार गुजरा है। अजित गुट के दिलीप वलसे पाटील और छगन भुजबल जैसे वरिष्ठ नेता मान चुके हैं कि उद्धव और शरद के साथ सहानुभूति की लहर है।

इन नेताओं के अलावा राजनीतिक विश्लेषक और मैक्स महाराष्ट्र डिजिटल चैनल के कार्यकारी संपादक मनोज भोयर का कहना है कि बीजेपी ने शिंदे गुट और अजित गुट को एनडीए-महायुति में शामिल करके अपनी स्थिति जरूर मजबूत कर ली थी। लेकिन उद्धव और शरद ने जब रैलियां की तो उनसे लोग जुड़ने लगे यह मानकर कि ये लोग कमजोर हैं और इनकी मदद करनी चाहिए। इनके साथ इस तरह से सहानुभूति जुड़ी और चुनाव प्रचार के लिए जब 83 साल के शरद मैदान में उतरे तो यह सहानुभूति लहर की तरह दिखी। राजनीतिक विश्लेषक राजेंद्र थोरात मानते हैं कि जिस उद्धव को बीजेपी कमजोर मान रही थी वही अब बीजेपी के लिए चुनौती के रूप में खडे हो गए। राजनीतिक विश्लेषक अभिमन्यु शितोले कहते हैं कि इंडिया-महा विकास आघाड़ी ने जिस रणनीति के तहत चुनाव प्रचार को अंजाम दिया उससे एनडीए को महाराष्ट्र में झटका लगने वाला है।

चुनाव प्रचार के दौरान की एक महत्वपूर्ण बात पर ध्यान देने की जरूरत है। शिवसेना और एनसीपी के विभाजन के बाद यह कहा जा रहा था कि इन्हें अपने नए चुनाव चिन्ह मशाल (शिवसेना उद्धव गुट) और तुताड़ी (एनसीपी शरद गुट) पर लड़ना आसान नहीं होगा। लेकिन मोदी ने अपनी हरेक रैली में नकली शिवसेना और नकली एनसीपी कहने के साथ ही इसके चुनाव चिन्ह भी बताते रहे हैं। उद्धव और शरद ने भी अपने विरोधी को जवाब देते हुए अपने चिन्ह का भी प्रचार किया। इससे यह हुआ कि मतदाताओं के बीच चुनाव चिन्ह को लेकर किसी तरह का भ्रम नहीं रहा। सहानुभूति बढ़ाने में उद्धव का नरम हिंदुत्व काम आया।

अल्पसंख्यक समुदाय के लोग उद्धव के जरिए इंडिया आघाडी की ओर झुके दिखे। इसके पीछे एक और बात बतायी जा रही है कि मोदी और एनडीए के नेताओं ने अपने कट्टर हिंदुत्व की वजह से अल्पसंख्यकों के आरक्षण के खिलाफ ही आवाज उठाई। यह सब सोशल मीडिया पर भी खूब छाया रहा। इसका भी मनोवैज्ञानिक असर मतदाताओं पर पड़ा है। तभी तो शिंदे गुट के सांसद गजानन कीर्तिकर ने यह कहकर हलचल पैदा कर दी कि महाराष्ट्र में इंडिया आघाडी को एनडीए से ज्यादा सीटें मिलेगी। उद्धव और शरद के उम्मीदवारों ने एनडीए को अच्छी टक्कर दी है। यह सच कहने पर बीजेपी और शिंदे गुट के नेताओं ने गजानन की आलोचना की और उन पर कार्रवाई करने की भी मांग की है। लेकिन शिंदे चुनाव नतीजे का इंतजार कर रहे हैं।

शिंदे गुट के अलावा अजित गुट से भी कुछ सच्चाई बयान हो रहे हैं। अजित गुट के वरिष्ठ नेता छगन भुजबल ने कहा कि 400 पार के नारे से एनडीए को नुकसान होगा। क्योंकि, इस नारे से दलित-आदिवासी डरे हुए हैं। ध्यान रहे कि इंडिया आघाडी ने 400 पार के नारे के पीछे का राज यह बताया कि मोदी संविधान बदलना चाहते हैं और देश के लोकतंत्र को खतरा है। भुजबल ने कहा कि महाराष्ट्र में उद्धव और शरद के प्रति सहानुभूति है। इससे एनडीए की राह आसान नहीं है। राजनीतिक विश्लेषक भोयर का कहना है कि इस बार सबसे ज्यादा मतदान आदिवासी इलाकों में हुआ है। यह भुजबल के 400 पार के नारे के बारे में दिए बयान को पुख्ता करता है। एक बात का और जिक्र करना जरूरी है कि एनडीए के घटक दलों के बीच धोखा की भी स्थिति रही है। वह भी उजागर होने लगा है।

शिंदे गुट के नेताओं ने अजित गुट के नेताओं पर खुले तौर पर आरोप लगाया कि उनके उम्मीदवारों के लिए प्रचार नहीं किया है। वैसे, वोट खरीदने के लिए धन बल का भी भरपूर प्रयोग हुआ है। ऐसी स्थिति में यह कहना मुश्किल है कि इंडिया आघाडी से ज्यादा सीटें एनडीए को मिल पाएगा क्या। अब जमीनी स्तर पर राजनीतिक विश्लेषकों ने जिस तरह से अध्ययन किया है उसमें भी मतदाताओं के मूड के आधार पर उनकी राय अलग-अलग है। एक और बात है कि मोदी और एनडीए मुद्दा विहीन रहे हैं जबकि इंडिया आघाडी ने संविधान बदलने और लोकतंत्र के खतरे के साथ किसानों, महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के मुद्दे को उठाया।

ऐसे में भोयर का आकलन है कि इंडिया आघाडी को 20 से अधिक सीटें और एनडीए को 28 सीटें मिल सकती हैं। थोरात का दावा है कि आघाडी को 30-35 सीटें मिल सकती है और बीजेपी को भारी नुकसान हो सकता है। राजनीतिक विश्लेषक विवेक भावसार का भी कहना है कि बीजेपी और शिंदे गुट मिलकर 20 सीटें हासिल कर सकती है और इंडिया आघाडी को फायदा दिख रहा है। उसके हिस्से में 28 सीटें आ सकती हैं। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इन राजनीतिक विश्लेषकों ने यह दावा किया है कि अजित गुट का खाता नहीं खुल पाएगा। आकलन जो भी हो सही नतीजे के लिए 4 जून का इंतजार तो करना ही पड़ेगा।