केंद्रीय बजट 2024: आम आदमी के लिए कुछ ख़ास नहीं!

केंद्रीय बजट 2024: आम आदमी के लिए कुछ ख़ास नहीं!

चुनाव के तुरंत बाद आने वाले बजट से वैसे भी ज्यादा उम्मीद नहीं करनी चाहिए क्योंकि सभी राजनीतिक दलों के अधिकांश बडे़ नेताओं की यह आदत अब पूरी तरह पक चुकी है कि वे चुनाव के बाद आम जनता को भूल जाते हैं। होना तो यह चाहिए कि चुनाव के ठीक बाद का बजट चुनावी घोषणापत्र और चुनावी रैलियों के भाषणों का प्रतिबिंब होना चाहिए लेकिन होता इसका ठीक उल्टा है।

बजट से पहले मीडिया में भी विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों की बहुत सी उम्मीदें और विभिन्न वर्गों की आकांक्षाएं प्रकाशित होती हैं, अक्सर बजट उन उम्मीदों और आकांक्षाओं पर भी खरा नहीं उतरता। इस लिहाज से इस बजट में भी आम आदमी के लिए कुछ ख़ास नहीं है।
सबसे पहले, यदि मध्यमवर्गीय आयकरदाताओं की बात करें तो वित्त मंत्री ने उनके लिए स्टैंडर्ड डिडक्शन और कर की दरों में आटे में नमक जैसी थोड़ी सी छूट की आधी अधूरी घोषणा की है जिसका लाभ बहुत कम आयकरदाता ले पाएंगे क्योंकि यह केवल उन्हें ही मिलेगी जो नए कर ढांचे में आयकर देने का विकल्प चुनेंगे जिसमें हाउसिंग लोन आदि की छूट नहीं मिलती। हकीकत यह है कि ज्यादातर करदाता नए कर ढांचे में आयकर जमा नहीं करते क्योंकि उनके लिए हाउसिंग लोन, प्रोविडेंट फंड आदि की बचत पर मिलने वाली छूट, हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी आदि की छूट ज्यादा महत्त्वपूर्ण हैं। सरकार आम आदमी को इन छूट से वंचित करना चाहती है ताकि ज्यादा आयकर वसूल सके। यही कारण है कि छूट रहित कर ढांचे में आने के लिए सरकार आयकरदाताओं को कई साल से थोड़ी थोड़ी घास डालकर फुसला रही है। यही नहीं पिछले साल सरकार ने आयकर रिटर्न में यह प्रावधान भी कर दिए कि यदि किसी व्यक्ति ने दोनों कर प्रणाली में कोई एक नहीं चुनी तो कंप्यूटर उनकी रिटर्न नए कर ढांचे में प्रोसेस कर देगा। यदि वरिष्ठ वरिष्ठ नागरिको की बात करें, तो इस बजट में उनके लिए भी कुछ नहीं है। रेल किराए की पुरानी छूट तक की बहाली नहीं हुई।

वैसे भी आजकल सरकार बजट उद्योगपतियों और व्यापारियों के लिए बनाती हैं, दिखाने के लिए कुछ थोथे चने जैसे झुनझुने किसानों ,आदिवासियों, ग्रामवासियों और बेरोजगारों आदि के नाम भी घोषित कर देती है जिनका लाभ वहां तक नाम मात्र ही पहुंचता है। उदाहरण के लिए बजट में बेरोजगारों के लिए जो योजना घोषित हुई है उसमें भी कई किंतु परंतु हैं, मसलन उनकी आयु सीमा का वर्ग काफी छोटा है। न उससे कम उम्र के और न ज्यादा उम्र के युवा इसका लाभ उठा सकते हैं। साथ ही यदि बेरोजगार के परिवार में कोई सदस्य आयकर दाता है या सरकारी सेवा में है तो ऐसे परिवार के बेरोजगार योजना का लाभ नहीं ले सकते।

जहां तक ग्राम विकास और कृषि का प्रश्न है किसान संघों के नेताओं ने बजट को बेकार बताया है। राकेश टिकैत ने इसे दस में से डेढ अंक दिया है। कई कृषि विशेषज्ञ भी बजट से उत्साहित नहीं हैं। कृषि के विकास के लिए वित्त मंत्री ने जिन घोषणाओं का जिक्र किया है उनमें एक भी ऐसी रियायत नहीं है जिसे लेकर किसान कई साल से आंदोलन रत हैं और एक बार फिर से लंबे आंदोलन की चेतावनी दे चुके हैं। बजट में मनरेगा की राशि का घटना भी चिंताजनक है। एक तरफ सरकार मुफ़्त राशन बांट कर लोकप्रियता बटोर रही है और दूसरी तरफ मनरेगा में बजट नहीं बढ़ा रही। होना तो यह चाहिए कि मुफ़्त राशन लेने वाले हर व्यक्ति को सरकार मनरेगा की गारंटी दे ताकि लोग मुफ्तखोरी की बजाय कर्मयोगी बने। बजट में प्रधानमंत्री योजना के अंतर्गत केवल आदिवासी गांवों के विकास की योजना है। हम सब जानते हैं कि प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना का हस्र कितना खराब रहा है। पहले से चल रही आदिवासियों के कल्याण की और भी कई योजनाओं में घोटालों की भी लंबी सूची है। जिन प्रदेशों में आदिवासी गांव बहुत कम हैं उनके लिए बजट में कुछ नहीं है। हां, राजनीतिक कारणों से बिहार और आंध्र प्रदेश को वित्त मंत्री ने खूब तोहफे दिए हैं। आखिर सरकार की बैसाखी इन्हीं दो राज्यों में जो टिकी हैं।

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डॉ आर के पालीवाल (पूर्व चीफ कमिश्नर इनकम टैक्स)
डॉ आर के पालीवाल

पूर्व चीफ कमिश्नर इनकम टैक्स