Story of a Ridiculous Communication: जब मंत्री के भाई बिना मिले खिसक लिए!

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Story of a Ridiculous Communication: जब मंत्री के भाई बिना मिले खिसक लिए!

राजीव शर्मा

हर आत्मा में परमात्मा है की तर्ज़ पर हर इलाक़े में कोई न कोई स्वयं भू इलाकेदार आज के संसदीय सत्ता तंत्र में भी विराजमान है .इनके विशेषाधिकार आज भी ख़त्म नहीं हुए। भले ही सरदार पटेल ने पाँच सौ से ज़्यादा रियासतों का विलय कर लिया हो या इंदिरा जी ने इनके प्रिवीपर्स छीन लिये हों.सच तो यह है कि आज़ादी के बाद इन नये पुराने सामंतों की संख्या सौ गुनी बढ़ गई है .प्रशासन की हर इकाई को इन सामंतों की सत्ता से समन्वय और संघर्ष की खो -खो खेलनी पड़ती है .जो क़ानून संसद या विधानसभा में बनते हैं उनसे बचने बचाने ही नहीं उन्हें धृष्टतापूर्वक तोड़ने मरोड़ने के दैनिक व्यायाम का नाम राजनीति है .

आज जो क़िस्सा आपको बताने का मन है वह मालवा के एक ज़िले का है जहाँ मुझे इस उम्मीद में अनुविभागीय अधिकारी पदस्थ किया गया था कि क़ानून का राज क़ायम हो .

 

मेरे कलेक्टर एक देव दुर्लभ क़िस्म के सज्जन थे जो सुशासन के लिये कृत संकल्पित थे और कई बार उस संकल्प की क़ीमत चुकाकर भी सुधरने को राज़ी नहीं थे .उस इलाक़े में दो कैबिनेट मंत्री थे दोनों के हितों में टकराव होता रहता था .

मेरी पदस्थापना काँच की दुकान में साँड़ के घुस आने जैसी थी .अब दुकान और साँड़ दोनों की बैण्ड बजनी थी और बजी भी .

हुआ यों कि वहाँ की गड़बड़ियों को रोकने का एक ही तरीक़ा था कि आप इन इलाकेदारो के ख़िलाफ़ स्पष्ट खड़े दिखाई दें .मैंने पूरी ताक़त से अवैध धन्धों को कुचलना शुरू किया .प्रशासन की निष्पक्षता जनता और सत्ता दोनों को महसूस होने लगी .मेरे बँगले में किसी को प्रवेश की अनुमति नहीं थी .एक मंत्री जी जो अपेक्षाकृत सौम्य और शालीन थे उनका कोई वैधानिक मुद्दा लेकर उनके भाई मेरे निवास पर आयेंगे, उनकी बात सुनने का निर्देश कलेक्टर ने दिया .

वे तय समय आये और उन्हें बैठाकर चर्चा प्रारंभ हो ही रही थी तभी दूसरे मंत्री जी के चरण सेवक एक शासकीय अधिकारी का फ़ोन आया .उस फ़ोन पर मिली सूचना से मुझे इतना क्रोध आया कि मैंने उस अधिकारी को तेज आवाज में डाँटना शुरू किया .उसे हड़काने का यह कार्यक्रम लंबा खिंच गया .उसकी पर्याप्त डाँट लगाकर जब मुक्त हुआ तब मंत्री जी के भाई की बात सुनने आगंतुक कक्ष में लौटा तो उन्हें ग़ायब पाया .गार्ड ने बताया कि वे तो जा चुके .मुझे समझ नहीं आया क्या हुआ .ख़ैर मैं ऑफिस चला गया वहीं हमारे कलेक्टर साब का फ़ोन आया .

तब समझ आया कि सौम्य शालीन मंत्री जी के सौम्य शालीन भाई क्यों बिना मिले खिसक लिये थे .हुआ यों कि जब मैं लैंड लाइन फ़ोन पर दूसरे मंत्री जी के चरण सेवक पर गरज बरस रहा था तो उसके छींटे इन सज्जन को भी स्पष्ट सुनाई दे रहे थे .इन्होंने ग़लतफ़हमी में उसे अपने लिये मान लिया और खिसकने में ही भलाई समझी .मुझे अफ़सोस हुआ कि मेरी असावधानी से मेरे वरिष्ठ को असुविधा हुई .आगे से मेरी कोई डाक कभी ग़लत पते पर नहीं गई .